चाहे मैरिड लाइफ प्रवेश के पहले शरीर को सुडौल और आकर्षक बनाने की भावना हो या दांपत्य जीवन में पति की अच्छी प्रेमिका बनने की इच्छा से सुडौल एवं फुर्तीला शरीर बनाने की इच्छा हो या फिर संतानवती होने के बाद शरीर को बेडौल होने से बचाने की भावना, सबसे सहज एवं श्रेष्ठ उपाय होता है योगासन का अभ्यास.
वयः सन्धि अर्थात् यौवनावस्था के आरंभ काल में शारीरिक एवं भावनात्मक विकास द्रुत गति से होता है. इसी अवस्था में मासिक स्राव का आरंभ एवं वक्षों का विकास होता है. यह अवस्था ऐसी होती है कि अगर इसमें शरीर रोगग्रस्त हो जाता है तो किशोरियों के डिम्बकोष पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, साथ ही उनमें एस्ट्रोजन नामक स्त्री-हार्मोन का उत्पादन भी बाधित होता है. परिणामस्वरूप स्त्री का समुचित विकास नहीं हो पाता.
शादी के बाद की तैयारी है ये आसन
स्त्रीत्व के समुचित विकास से वंचित किशोरियों में यौवन एवं दांपत्य तथा उन्नत संतान की प्राप्ति की योग्यता नहीं रह जाती. इसलिए यह आवश्यक है कि वयः सन्धि के प्रति किशोरियां सचेष्ट हों और स्वस्थ एवं विकसित यौवन की प्राप्ति हेतु यथोचित प्रयत्न करना आवश्यक होता है.
स्वस्थ एवं विकसित यौवन के लिए योगाभ्यास सर्वश्रेष्ठ उपाय माना जाता है. वयः सन्धि के अनुकूल यम, नियम, आसन, प्राणायाम, आदि को करते रहने से शरीर गठित, स्वस्थ एवं सुन्दर बनता है तथा यौवनाएं गर्भाशय एवं योनिगत अनेक बीमारियों से बची रह सकती हैं.
वयः सन्धि की अवस्था में मेरूदण्ड एवं शरीर के कई महत्त्वपूर्ण अवयव विकासोन्मुख होते हैं, इसलिए शारीरिक दृढ़ता एवं हल्कापन की प्राप्ति हेतु कुछ आसनों का अभ्यास अवश्य करते रहना चाहिए. आसनों के अभ्यास के लिए अन्य दिनचर्याओं के बीच सुबह या शाम का कोई एक निश्चित समय निकाल लेना चाहिए. आसनों के अभ्यास से वक्ष, रीढ़, कटिप्रदेश, जननांगों एवं जंघाओं का विकास होता है तथा शरीर संतुलित, कमर पतली तथा मन एकाग्र हो जाता है. इसके लिए निम्नांकित आसनों का अभ्यास निम्नानुसार कीजिए-
शलभासन- इस आसन को करने के लिए पेट के बल लेट जाइए एवं दोनों हथेलियों को जंघा के नीचे दबा लीजिए. अब सांस को जोर से खींचते हुए एक पैर घुटने समेत ऊपर उठाइये तथा उसी स्थिति में लाकर पैर को जमीन पर रख दीजिए. इसी प्रकार अब दूसरे पैर को ऊपर उठाकर दस सेकेण्ड रखने के बाद फिर आराम की स्थिति में आ जाइये. अब क्रम से पांच बार बायें और पांच बार दाहिनी ओर तथा पुनः उतनी ही बार दोनों पैरों को मिलाकर एक साथ ऊपर उठाने का प्रयास कीजिए.
भुजंगासन- शलभासन के पश्चात दोनों हथेलियों को कंधों के नीचे जमीन पर इस प्रकार स्थिर कीजिए कि हथेली वक्ष के बगल में एवं कुहनियां बगल में स्थित हों. अब सांस लेते हुए सिर, छाती एवं पेट, हथेलियों के बल ऊपर उठाइये. इससे कमर से ऊपर का भाग सांप के फन की आकृति-सा बन जाएगा. दस से पन्द्रह सेकेन्ड तक इस अवस्था में सांस रोककर स्थिर रहने के बाद सांस छोड़ते हुए धीरे-धीरे पेट, छाती एवं सिर जमीन पर स्थिर करने की क्रिया कीजिए. कम से कम दस बार इस भुजंगासन का अभ्यास कीजिए.
धनुरासन- भुजंगासन के बाद धनुरासन का अभ्यास कीजिए. भूमि की ओर मुंह करके औंधे लेट जाइए. स्नायुओं को शिथिल कर दीजिए. दोनों हाथ बगल से सटाकर रखिए. पैरों को उठाकर पीछे की ओर मोडि़ए. हाथ ऊपर उठाइए और टखनों को भली-भांति पकडि़ए. सीना और सिर ऊपर की ओर उठाइए तथा सीने को फुलाइए. हाथ सीधे और कड़े बनाइए. पैरों को भी कड़ा कीजिए.
अब सांस खींचकर अन्दर रोकिये और सिर को पीठ के पीछे मोड़ते हुए हथेलियों से पैरों को इस प्रकार खींचिए कि सम्पूर्ण शरीर का भार ठोढ़ी अथवा नाभि पर केन्द्रित हो जाए अर्थात नाभि से ऊपर एवं नीचे का भाग जमीन से उठा हुआ हो. दस से पन्द्रह सेकेन्ड तक इस अवस्था में रहने के पश्चात सांस छोड़ते हुए पूर्व अवस्था में वापस आइए. इस क्रिया को भी कम से कम दस बार दुहराइये.
नियमित रूप से मन लगाकर अगर किशोरियां अभ्यास करती रहें तो निश्चित रूप से उनके यौवन का संतुलित विकास होगा. इन आसनों के अभ्यास से मासिक धर्म की अनेक कठिनाइयां भी दूर होंगी.
(नोट : यह लेख आपकी जागरूकता, सतर्कता और समझ बढ़ाने के लिए साझा किया गया है. यदि किसी ला ईलाज बीमारी के पेशेंट हैं तो अपने डॉक्टर से सलाह जरूर लें.)
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