योग हर उम्र के लोगों के लिए जरूरी है. बीते एक दशक में समाज में योग को लेकर एक आकर्षण बढ़ा है. हालांकि कई लोगों में यह धारणा घर कर गई है कि बूढ़े लोग योग नहीं कर सकते क्योंकि उनका शरीर अब युवाओं या बच्चों की तरह लचीला नहीं रह गया है. ये माना जाता है कि वृद्धावस्था तक आते-आते शरीर का लचीलापन खत्म हो जाता है. संधियों या जोड़ों में एक प्रकार का कड़ापन आ जाता है जिस कारण पद्मासन, पादहस्तासन आदि का अभ्यास एक प्रकार से असंभव सा हो जाता है. लेकिन ये धारणा गलत है.
ठीक से समझें योग का मतलब
यह भ्रामक धारणा इस गलत धारणा से बनती है कि योग का मतलब ही योगासन है और योगासन शब्द सुनने पर हमारे मन में पद्मासन या शीर्षासन आदि का अभ्यास करने वालों के चित्र उभर आते हैं. हमारे वृद्ध जन योगाभ्यास के लिए प्रायः तैयार नहीं होते. हमें इस धारणा को सुधारना है. योग में आसन तो हैं पर योग केवल आसन ही नहीं है. योग के और भी अंग हैं जैसे प्राणायाम, ध्यान इत्यादि जिनका अभ्यास वृद्धावस्था में भी बड़ी सरलता से किया जा सकता है.
बुजुर्गों के लिए ज्यादा कारगर
देखा जाए तो वृद्धावस्था योगाभ्यास के लिए ज्यादा बेहतर है, क्योंकि यही उम्र है जब इन सब बातों के लिए ठीक से समय और अवकाश मिल जाता है. गृहस्थी के सामान्य झंझटों से मुक्त रहते हैं और व्यस्तता कम रहती है. जो लोग कई तरह के कठिन आसनों के अभ्यास से डरते हैं उन्हें यह सुनकर तसल्ली मिलेगी कि कुर्सी पर बैठे-बैठे भी आजकल योग का अभ्यास किया जा सकता है.
दरअसल, महर्षि पंतजलि ने आसन के संबंध में इतना ही कहा है कि ’स्थिरं, सुखं आसनम्‘ यानी थोड़ी देर तक आराम से बैठने की आदत डालना ही आसन है. जो लोग घुटनों के दर्द के कारण पदमासन में नहीं बैठ सकते, वे साधारणतयाः हम जिस प्रकार भोजन करने के लिए फर्श पर बैठते हैं, वैसे भी बैठकर प्राणायाम, ध्यान इत्यादि का अभ्यास कर सकते हैं. इसे सुखासन कहते हैं.
इन रोगों में देता है लाभ
वैसे तो वृद्धावस्था में योग की अधिक आवश्यकता है. वृद्धावस्था में हाई बीपी, शूगर, हार्ट, टी.बी. जैसे रोगों से शरीर ग्रस्त हो जाता है. यही नहीं मानसिक रूप से भी अकेलापन रहता है ऐसे में योग को सहारा बनाना ज्यादा आसान है. जगद्गुरू शंकराचार्य ने भी कहा है- ’वृद्ध स्तावत् चिन्ता मग्ना‘ यानी वृद्धावस्था में तरह-तरह की चिंताओं में हमारा मन डूबा रहता है. यहां तक कि कुछ लोगों को आधी रात तक नींद नहीं आती और कुछ लोग सुबह दो बजे ही जग जाते हैं. फिर नींद न आने के कारण रात का शेष समय बिताना उनके लिए बहुत कठिन हो जाता है. कोई कोई स्लीपिंग पिल्स का आश्रय लेते हैं.
जरूर लें योग का सहारा
जिन वृद्धजनों के पास अधिक अवकाश है वे अपने घर के करीब ही किसी योगाचार्य से मिलकर योग के बारे में चर्चा करें. सुखासन में बैठ कर प्राणायाम करना और ध्यान करना सीखें. आप के पास जितना अधिक समय है उतना अच्छा. यदि किसी कारणवश आप वृद्धावस्था में भी अति व्यस्त हैं तो भी आप आधा घंटा तो अपने शरीर और मन के स्वास्थ्य के लिए ले ही सकते हैं लेना ही चाहिए न?
नॉर्थ रेलवे जोन के मेडिकल ऑफिसर डॉ. बी. आर. मारून लिखते हैं- ध्यान की अवस्था में हमारी पीनियल ग्रंथि अधिक सक्रिय होती है और मेलाटोनिन हारमोन का अधिक निर्माण करती है. इस से हम बुढ़ापे के कई रोगों से बच सकते हैं.
(नोट : यह लेख आपकी जागरूकता, सतर्कता और समझ बढ़ाने के लिए साझा किया गया है. यदि किसी बीमारी के पेशेंट हैं तो अपने डॉक्टर से सलाह जरूर लें.)