बदलती लाइफ स्टाइल और साक्षरता के चलते बड़े महानगरों में कामकाजी महिलाओं की संख्या तेजी से बढ़ी है. जॉब और करियर की तलाश में लड़कियां जहां अकेले रहने को मजबूर हुई है वहीं घरों में काम करने वाली महिलाओं संख्या भी बढ़ी है. लेकिन इस संख्या के बढ़ने के साथ लड़कियों और महिलाओं के साथ छेड़छाड़ और यौन उत्पीड़न के मामले भी बढ़ रहे हैं. घर की चारदीवारी में ही जब स्त्री सुरक्षित नहीं रही तो बाहर तो वह और भी
ज्यादा असुरक्षित हो गई है.
अब हर महिला होती है शिकार-
हालांकि ऐसा नहीं है कि पहले महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न और छेड़छाड़ के मामले नहीं थे. लेकिन पहले छेड़छाड़ और उत्पीड़न का शिकार स्टेनो और नर्से ही ज्यादा हुआ करती थी क्योंकि उनका कार्य ही कुछ ऐसा था, जहां पुरुषों को उनके साथ छेड़छाड़ का मौका आसानी से मिल जाता था, लेकिन आज तो एक महिला पुलिसकर्मी, महिला डॉक्टर, आई.ए.एस. महिला तक यौन उत्पीड़न की चपेट में आ जाती हैं.
मजबूर है लड़कियां-
आखिर किस तरह से होता है यौन उत्पीड़न? इसमें शामिल हैं अश्लील फिकरेबाजी, द्विअर्थीसंवाद, शारीरिक स्पर्श, कभी चूमना. इन सबसे एक लड़की को जिस मानसिक यातना से गुजरना पड़ता है वह वही जानती है. गुस्सा से वह
मन ही मन उबलती है लेकिन पितृ सत्तात्मक समाज में कुछ कर नहीं पाती. कभी-कभी स्थिति असहनीय हो जाने पर वह नौकरी तक छोड़ देती है लेकिन दूसरी जगह की भी कोई गारंटी नहीं होती कि वहां उससे अभद्र व्यवहार न होगा.
घर से निकलने वाली लड़कियां ध्यान रखें ये बातें-
देखा जाए तो दिल्ली से लेकर देश के हर राज्य के गांवों में लड़कियों के साथ यौन हिंसा और छेड़छाड़ और रेप के मामले जिस तेजी से बढ़े हैं ऐसे में लड़कियों और महिलाओं को ही अपनी सुरक्षा के लिए आगे आना होगा. घर से बाहर निकलने वाली लड़की को ज्यादा संवेदनशील नहीं होना चाहिए, क्योंकि ऐसे में उनका स्वयं का जीवन दूभर हो सकता है. उसे अलर्ट रहना चाहिए और दुर्व्यवहार की शिकायत पुलिस से करने में बिल्कुल नहीं डरना चाहिए.
नई भूमिका में आना होगा लड़कियों को-
कामकाजी महिलाओं और लड़कियों को अपना नया रोल अत्यंत समझदारी से निभाना होगा. पुरुष की प्रकृति को समझते हुए ही उसे अपना आचार-व्यवहार रखना चाहिए. एक जरूरी बात यह है कि फैशन की अंधी दौड़ में सैक्सी दिखने के चक्कर में ऑफिस या और कहीं भी कार्य पर ऊल-जलूल शरीर प्रदर्शन करने वाले कपड़े पहनकर भी नहीं जाना चाहिए. शालीन और गरिमामयी युवती को तुलनात्मक रूप में पुरूष कम ही छेड़ने की हिम्मत करेगा.
न्याय के लिए लड़ना होगा-
युवतियां कई बार महज समाज के डर से चुपचाप उत्पीड़न सहती रहती हैं जो सरासर गलत है। जब बाहर कार्य करने निकलती हैं तो उन्हें दिलेर बनना चाहिए, दब्बू नहीं. गलत बातों को सहना गलती करने से कम नहीं. कामकाजी युवतियों को यह नहीं भूलना चाहिए कि अब अपनी रक्षा, अपनी देखभाल उन्हें स्वयं करनी है. बाप, भाई, पति, पुत्रा सिर्फ एक हद तक ही उन्हें सुरक्षा प्रदान कर सकते हैं. उनका बॉडीगार्ड बनकर सदा उनके साथ हर जगह मौजूद रहना संभव नहीं। नारी शक्ति का अजस्त्रा स्रोत है. अपना मनोबल बढ़ाएं. याद रखें कि गलत कार्य करने वाला भीतर से बेहद डरपोक व कायर होता है.