हिन्दू धर्म में तीन प्रमुख देवता हैं. ब्रह्मा, विष्णु और महेश यानी शिव. इन तीनों में से भगवान विष्णु और भगवान शिव की पूजा तो सभी करते हैं लेकिन आपने किस को ब्रह्माजी की पूजा करते हुए नहीं देखा होगा.
पूरे भारत में ब्रह्माजी का एक ही ख्यात मंदिर है जो राजस्थान के पुष्कर में है. पूरे भारत में इसी मंदिर पर ब्रह्माजी की पूजा की जाती है. लेकिन हिन्दू धर्म में ब्रह्माजी की पूजा क्यों नहीं की जाती है? क्या आप इस बारे में जानते हैं.
ब्रह्माजी का परिचय
सनातन धर्म के अनुसार ब्रह्माजी सृजन के देव हैं. इन्हें सृष्टि का सर्जक बताया गया है. इनके चार मुख हैं जो चार दिशाओं में देखते हैं. इन्हें धर्म पिता भी कहा जाता है. हिन्दू धर्म के चारों वेद ब्रह्माजी को समर्पित हैं.
ब्रह्माजी की पत्नी कौन है?
ब्रह्माजी की पत्नी को लेकर अक्सर विवाद रहता है कहा जाता है कि उन्होंने अपनी ही बेटी से विवाह किया था लेकिन ऐसा नहीं है. ब्रह्माजी की पाँच पत्नी थी जिनका नाम सावित्री, गायत्री, श्रद्धा, मेधा और सरस्वती है. इनमें कई बार सरस्वती को ब्रह्माजी की पुत्री बताया जाता है लेकिन ज्ञान की देवी सरस्वती ब्रह्मा जी की पत्नी थीं.
ब्रह्माजी की पूजा क्यों नहीं होती
हिन्दू धर्म में ब्रह्माजी पूजनीय हैं लेकिन फिर भी उनकी पूजा नहीं की जाती है, न ही उनके मंदिर हैं. आखिर ऐसा क्यों है? इसके पीछे एक श्राप है जो उन्हें उनकी पत्नी सावित्री ने दिया था.
एक कथा के मुताबिक राजस्थान के पुष्कर में ब्रह्माजी को एक यज्ञ करना था. इस यज्ञ में ब्रह्माजी को अपनी पत्नी सावित्री के साथ बैठना था लेकिन सावित्री को यज्ञ स्थल पर पहुंचने में देर हो गई. यज्ञ का समय निकला जा रहा था.
ऐसी स्थिति में ब्रह्माजी ने स्थानीय ग्वाल बाला गायत्री से शादी की और यज्ञ में बैठ गए. गायत्री राजस्थान के पुष्कर की ही रहने वाली थी और वेदज्ञान में पारंगत थी. ब्रह्माजी ने विवाह किया और सावित्री फिर देर से यज्ञ में पहुंची.
सावित्री ने जब ब्रह्माजी को किसी और महिला के साथ यज्ञ में बैठ हुआ देखा तो वे अत्यंत क्रोधित हुई. क्रोध में सावित्री ने ब्रह्माजी को श्राप दिया और कहा कि पृथ्वी लोक में कहीं तुम्हारी पूजा नहीं होगी.
सावित्री का क्रोधित स्वरूप देखकर सभी देवता डर गए और उन्होंने सावित्री से श्राप वापस लेने की विनती की. जब सावित्री का गुस्सा ठंडा हुआ तो सावित्री ने कहा कि इस धरती पर सिर्फ पुष्कर में आपकी पूजा होगी, यदि कोई दूसरा मंदिर बनाएगा तो उसका विनाश हो जाएगा.
यहीं कारण है कि सिर्फ पुष्कर में ही ब्रह्माजी का मंदिर है और सिर्फ वहीं पर ब्रह्माजी की पूजा की जाती है.
ब्रह्माजी के पुत्र
ब्रह्माजी के पुत्रों की संख्या 59 बताई जाती है जिसमें प्रमुख पुत्र विष्वकर्मा, अधर्म, अलक्ष्मी, आठवसु, चार कुमार, 14 मनु, 11 रुद्र, पुलस्य, पुलह, अत्रि, क्रतु, अरणि, अंगिरा, रुचि, भृगु, दक्ष, कर्दम, पंचशिखा, वोढु, नारद, मरिचि, अपान्तरतमा, वशिष्ट, प्रचेता, हंस, यति हैं.
ब्रह्मा के अवतार
विष्णुपुराण और ब्रह्मवेवर्त पुराण में ब्रह्मा के सात अवतारों का वर्णन है. ये अवतार महर्षि वाल्मीकि, महर्षि कश्यप, महर्षि बछेस, चंद्रदेव, बृहस्पति, कालीदास, महर्षि खट हैं. रामायण में जामवंत को भी ब्रह्मा का अवतार माना गया है.
भगवान ब्रह्मा भी हिन्दू धर्म के प्रमुख देवता है. उनका नाम त्रिदेव में लिया जाता है. इस सृष्टि के सर्जक के रूप में उन्हें पहचाना जाता है लेकिन एक श्राप के चलते उनकी पूजा नहीं होती है और न ही उनके मंदिर हैं. केवल पुष्कर में ही ब्रह्माजी का मंदिर है.
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