पर्यावरण में होने वाले बदलावों का असर मानव सहित जीव-जंतुओं पर भी पड़ता है. जो भी जीव नेचर में आने वाले चैंजेस के साथ तालमेल स्थापित कर लेते हैं, उनकी प्रजाति पर मंडराने वाले खतरे भी कम हो जाते हैं.
हाल ही में किए गए एक शोध में वैज्ञानिकों ने पाया कि पक्षियों के अंडों का आकार उन्हें घोसलों में से गिरने से बचाता है. हालांकि इस मामले को लेकर वैज्ञानिकों के अलग-अलग मत हैं. वैज्ञानिक टिम वर्कहेड का मानना है कि अंडों के आकार में विविधता ही उन्हें सुरक्षित रखने में मददगार होती है.
मुर्रे पक्षी के अंडों पर की गई रिसर्च
वैज्ञानिक वर्कहेड ने अंडों के आकार में विविधता को समझने के लिए मुर्रे और उसके संबंधी पक्षियों के अंडों के आकार का अध्यन किया. ये सभी पक्षी चट्टानों की कगारों पर अंडे देते हैं. मुर्रे के अंडे नाशपाती के आकार के होते हैं. इनके अंडों का रंग नीला चितकबरा होता है. खासबात यह है कि यह पक्षी छोटी सी जगह पर एक साथ ही अंडे देते हैं. ऐसे में इन अंडों को ढलान पर टिकने में इनके आकार से ही मदद मिलती है.
क्या रहा शोध का नतीजा
वर्कहेड और उनकी टीम ने मुर्रे के अंडे देने के लिए चट्टान जैसी जगह का निर्माण अपनी लैब में ही किया. लैब में मुर्रे के साथ ही एक दूसरे पक्षी का अंडा भी रखा गया. रिसर्च में सामने आया कि ढलान वाली जगह से कुछ देर बाद ही दूसरे पक्षी का अंडा नीचे गिर गया, जबकि मुर्रे का अंडा स्थिर बना रहा.
इसके बाद चट्टान की ढलान को और बढ़ा दिया गया, ढलान बढ़ाए जाने के बाद भी मुर्रे का अंडा स्थिर बना रहा. वैज्ञानिकों ने इसके लिए यह तर्क दिया कि यह अंडा एक तरफ से नुकीला होता है. जिसके चलते जब भी संतुलन बिगड़ता है तो यह सीधा न लुढ़ककर गोल-गोल घूमता है.
तीस प्रजातियों पर की गई रिसर्च
वैज्ञानिकों ने इसी तरह की रिसर्च पक्षियों की 30 प्रजातियों के अंडों पर भी की. इस रिसर्च में यह निष्कर्ष निकाला कि अंडों के आकार में दो तिहाई विविधता अंडा देने की जगह के कारण आती है. यही नतीजा अन्य वैज्ञानिकों की रिसर्च में भी निकला.
वहीं कुछ वैज्ञानिकों के अध्यन में यह भी पता चला कि अंडों के आकार में परिवर्तन पक्षियों के उड़ने की गति पर भी निर्भर करता है. एक तथ्य यह भी सामने आय कि अंडों का आकार घोंसले में कितने अंडे बनेंगे इस पर भी निर्भर करता है.