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uniform civil code in hindi

भारतीय राजनीति के गलियारों में समान नागरिक (uniform civil code) आचार संहिता या कॉमन सिविल कोड पर बहस पुरानी है. एक तबका देश में एक समान कानून या एक जैसा कानून बनाने का विरोध करता रहा है, तो वहीं दूसरा बड़ा वर्ग इस कानून को जरूरी मानता है.

दरअसल, कृषि कानून की वापसी के साथ ही अब मुस्लिम संगठनों ने सरकार से यह मांग रखी है कि सरकार अब CAA जैसे कानून को वापस ले. यही नहीं हाल ही में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के जरिए ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने (Uniform Civil Code) समान नागरिक संहिता का भी विरोध किया है और इस विरोध के चलते ही यह कानून एक बार फिर से चर्चा में है. बता देंं कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड यह मानता है कि Uniform Civil Code को लाना देश की विविधता, बहुलतावादी संस्कृति को खंडित करने वाला है.

हालांकि सरकार की ओर से समान नागरिक संहिता को प्रत्यक्ष रूप से हाल ही में कुछ नहींं कहा गया है, लेकिन भाजपा सरकार के चुनावी एजेंडे में कश्मीर में धारा 370, राम मंदिर जैसे मुद्दों के साथ कॉमन सिविल कोड भी रहा है, ऐसे में एक बड़े वर्ग को लगता है कि केंद्र की मोदी सरकार अब समान नागरिक आचार संहिता जैसे बिल को भी पास करवा सकती है क्योंकि राम मंदिर और कश्मीर में धारा 370 जैसे मुद्दे तकरीबन समाप्त हो चुके हैं. 

आखिर क्या है कॉमन सिविल लॉ कोड

समान नागरिक संहिता का (Article 44 Importance) जिक्र भारतीय संविधान के भाग 4 के अनुच्छेद 44 में किया गया है. (what is uniform Civil Code) इसमें उल्लेखित है कि समान नागरिक कानून लागू हर राज्य की जिम्मेदार और लक्ष्य होगा. कॉमन सिविल कोड से आशय एक ऐसे कानून से है जिसमें हर धर्म, पंथ, और जाति के नागरिक एक समान कानून को मानें और उसके नियमों को फॉलो करें.

समान नागरिक संहिता को यदि लागू किया जाता है  (what is uniform civil code example) तो फिर देश में हर समुदाय, धर्म में होने वाले शादी, तलाक, जायदाद के बंटवारे, बच्चों को गोद लेने जैसे समुदाय अथवा पंथ के भीतर पारिवारिक मामलों का निपटारा एक ही कानून के तहत होगा.

खास बात यह है कि मौजूदा समय में परिवार, धर्म, रिवाजों और कई तरह के आंतरिक मामलों का निपटारा हर धर्म के लोग  पर्सनल लॉ के हिसाब से करते हैं. (saman nagrik sanhita kya hai) बता दें कि मुस्लिमों, इसाइयों और पारसियों का एक पर्सनल लॉ है, जबकि हिंदू सिविल लॉ के अंतर्गत हिंदू, सिख, और जैन और बौद्ध आते हैं.

क्यों हो रहा है Uniform Civil Code का विरोध?

कॉमन सिविल कोड भारतीय राजनीति का सबसे गर्म मुद्दा रहा है. (uniform civil code and bjp) कांग्रेस और भाजपा जैसी दिग्गज पार्टियों सहित कई छोटे-बड़े राजनीतिक दल भी इसे लेकर अपना अलग-अलग पक्ष रखते रहे हैं.

समान आचार सहिंता के विरोध में तर्क देने वालों का कहना है कि भारत जैसे देश में, जहां असंख्य जातियां, कई तरह के धर्म और मजहब के अनुयायी, पंथ को मानने वाले और बहुलतावाद संस्कृति के लोग रहते हैं वहां एक जैसा कानून भारत में प्रत्येक नागरिक के संवैधानिक अधिकारों का हनन होगा.

दरअसल,  इस कानून का विरोध करने वालों का मानना है कि ऐसे सेकई मामले जो किसी भी धर्म के भीतर उसकी सांस्कृतिक, पारंपरिक और रीति-रिवाज संबंधी दृष्टिकोण और नियमों से हल किए जाने चाहिए हैं, वहां स्टेट का कानून एक व्यक्ति की सांस्कृतिक और संवैधानिक अधिकारों की निजता का हनन होगा.

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड कॉमन सिविल कोड का मुखार विरोधी रहा है. बोर्ड यह मानता रहा है कि यदि समान नागरिक कानून भारत जैसे देश में लागू होता है, तो इसका सबसे ज्यादा प्रभाव मुस्लिम समाज पर पड़ेगा क्योंकि इस कानून से शरीयत की व्यवस्था में बाधा पैदा होगी और कई मसलों का हल जो समाज, समुदाय की निजता के अनुसार लिया जाता है वह भी बाधित होगा.

यही नहीं समान नागरिक संहिता कॉमन सिविल कोड (common civil code) के खिलाफ दलील देने वाले अक्सर यहां तक कहते हैं कि इस कानून को लागू करने का अर्थ, पूरे देश में हिंदू कानून को लागू करने जैसा है.

क्या कहते हैं समान नागरिक संहिता का समर्थन करने वाले? (Arguments against Uniform Civil Code in Hindi)

समान नागरिक संहिता के विरोधियों की तरह ही इसके समर्थक भी हैं. वे चाहते हैं कि सरकार इस कानून को लागू करने की दिशा में पहल करे और पूरे देश में एक जैसा कानून लागू करे. इस कानून के पक्ष में दलील देने वाले कहते हैं कि अलग-अलग कानून होने के चलते पूरी न्याय व्यवस्था पर एक अलग तरह का बोझ पड़ता है.

समान नागरिक संहिता लागू होने से न्यायपालिकाओं में लंबित पुराने कई मामले आसानी से सुलझ जाएंगे. (uniform civil code benefits) शादी, ब्याह, बच्चा गोद लेने, तलाक लेने, जमीन-जायदाद के बंटवारे को करने का सभी नागरिकों का कानून एक होगा और खासतौर पर महिलाओं की स्थिति सभी धर्मों में मजबूत होगी क्योंकि सभी धर्मों में महिलाओं के पास सिमित अधिकार हैं.

क्या है हिंदू पर्सनल लॉ? (Hindu personal laws) 

आपको बता दें कि देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की सरकार भी हिन्दुओं के लिए हिन्दू कोड बिल लेकर आई थी. (what was hindu code bill) जब यह बिल लाया गया तो तत्कालीन परिस्थितियों में व्यापक पैमाने पर इसका विरोध हुआ. धरना प्रदर्शन और मोर्चे के बीच सरकार ने इस बिल को लाने से तो नहीं रोका, लेकिन व्यवस्था के अनुसार इस बिल को चार भागों में बांट दिया गया. बिल के चार हिस्से इस तरह हुए- 

  • हिन्दू मैरिज एक्ट (Hindu marriage act) 
  • हिन्दू सक्सेशन एक्ट- (Hindu succession act 1956)
  • हिन्दू एडॉप्शन एंड मैंटेनेंस एक्ट-(Hindu adoption and maintenance act 1956) 
  • और हिन्दू माइनोरिटी एंड गार्जियनशिप एक्ट के रूप में सामने आए.(Hindu minority & guardianship act 1956)

खास बात यह है कि इस कानून के चलते महिलाओं को बहुत फायदा हुआ और वे प्रत्यक्ष तौर पर ना केवल सशक्त हुईं बल्कि उनके अधिकार बढ़े व मजबूत भी हुए.

आपको बता दें कि यह वही हिंदू कोड बिल है जिसके अंतर्गत हिंदू महिलाओं को उनके पिता और पति की संपत्ति संपत्ति में सीधे अधिकार प्राप्त होता है. जबकि यह हिंदू कोड बिल की ही ताकत है कि आज देश के अलग-अलग जातियों के लोग एक-दूसरे से शादी करने का अधिकार रखते हैं जबकि इसी बिल में उल्लेखित कानून के चलते पहले से शादीशुदा व्यक्ति यानी की एक शादी के रहते दूसरी शादी नहीं कर सकता है.

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