हम सभी कंज्यूमर हैं और रोजाना कई प्रोडक्ट खरीदते हैं. साल भर में हमारे घर में दो से तीन इलेक्ट्रॉनिक प्रोडक्ट खरीद ही लिए जाते हैं. घर का कोई व्यक्ति स्मार्टफोन खरीद लेता है, कोई टीवी खरीद लेता है तो कोई वाशिंग मशीन और फ्रीज खरीद लेता है. ये प्रोडक्ट कभी-कभी कुछ सालों तक अच्छे चलते हैं लेकिन कुछ प्रोडक्ट 6 महीने या साल भर में ही खराब हो जाते हैं.
प्रोडक्ट के खराब हो जाने पर उसे सही कराने के लिए जब आप जाते हैं तो खर्च इतना बता दिया जाता है कि उस खर्च में थोड़े और पैसे मिलाकर नया प्रोडक्ट ले लिया जाए. अब ऐसे में वो प्रोडक्ट सिर्फ ई कचरा बनकर रह जाता है, जो न तो हमारे काम का है और न ही दुनिया में किसी और के काम का.
इस पूरी बात से दो समस्या निकलती है. एक तो ये कि कंपनी खराब प्रोडक्ट बना रही है और उसे सुधारने के लिए कोई विकल्प नहीं है या फिर महंगे विकल्प है. मतलब कंपनी चाहती है कि आप दूसरा ही प्रोडक्ट लें. दूसरी बात ये है कि इससे लगातार धरती पर ई कचरे की मात्रा बढ़ रही है जिससे हमारा पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है. सरकार इन दोनों समस्याओं को दूर करने के लिए ही राइट तो रिपेयर पोर्टल लेकर आई है.
राइट टू रिपेयर क्या है? (What is the Right to Repair?)
जब भी कोई इलेक्ट्रॉनिक प्रोडक्ट खराब हो जाता है तो कंपनी उसे सुधारने के लिए आपसे काफी ज्यादा पैसा लेती है. दूसरी ओर यदि आप किसी और से भी उसे रिपेयर करवाते हैं तो कई बार उस प्रोडक्ट के पार्ट्स ही नहीं मिलते.
जैसे स्मार्टफोन की ही बात कर लें. यदि इनमें बैटरी खराब हो जाती है तो इनकी बैटरी मिलना बहुत मुश्किल हो जाता है. आजकल नॉन रिमुवेबल बैटरी आ रही है जिस वजह से कंपनी की ही बैटरी मिल पाना या उस स्मार्टफोन के लिए उचित बैटरी मिल पाना मुश्किल हो जाता है.
जब किसी स्मार्टफोन में बैटरी खराब हो जाएगी और नहीं मिल पाएगी तो कंज्यूमर उस खराब फोन का क्या करेगा? उसे उस फोन को कचरे में ही फेंकना पड़ेगा. इस तरह की समस्या से निजात पाने के लिए सरकार ने राइट टू रिपेयर पोर्टल लांच किया है.
राइट टू रिपेयर पोर्टल के फायदे (Right to repair portal benefits)
राइट टू रिपेयर पोर्टल हर कंज्यूमर के लिए बहुत ही फायदेमंद साबित होने वाला है.
– आपका प्रोडक्ट यदि खराब हो जाता है तो आप इस पोर्टल पर जाकर उस प्रोडक्ट की रिपेयरिंग कॉस्ट के बारे में जान सकते हैं.
– आपके प्रोडक्ट को रिपेयर करने के लिए किन पार्ट्स की जरूरत है, पार्ट्स की कीमत कितनी है? ये सारी जानकारी आपको यहाँ मिलेगी.
– इस पर आपको काफी सारी कैटेगरी के प्रोडक्ट की इनफार्मेशन मिलेगी.
राइट टू रिपेयर पॉलिसी क्या है? (What is the right to repair policy?)
भारत के अलावा कई विकसित देश पहले से ही राइट टू रिपेयर पॉलिसी को लागू कर चुके हैं. अमेरिका, ब्रिटेन और युरोपियन संघ में इसे पहले से लागू किया गया है.
असल में पिछले कुछ दशकों से कंपनियां जान-बूझकर ऐसे प्रोडक्ट बनाने लग गई हैं जो कुछ समय तक ही चलें. मतलब कुछ महीने या कुछ साल चलकर खराब हो जाए. प्रोडक्ट जब खराब हो जाएगा तो कस्टमर उसे रिपेयर करवाने की कोशिश करेगा, यदि प्रोडक्ट के पार्ट्स नहीं मिलेंगे तो उसे फिर से नया प्रोडक्ट खरीदना पड़ेगा. ऐसे में कंपनी का बिजनेस बहुत तेजी से आगे बढ़ते रहेगा.
ये कंपनियों के लिए तो सही है लेकिन लोगों के लिए और पर्यावरण के लिए ये बिल्कुल भी सही नहीं है. लोग यदि को प्रोडक्ट खरीदते हैं तो वो उसमें अपनी मेहनत की कमाई लगाते हैं, वो प्रोडक्ट उनके इमोशन से जुड़ा होता है. ऐसे में यदि वो प्रोडक्ट कुछ ही महीने के इस्तेमाल में फेंकना पड़े तो लोगों को काफी दुख होता है.
दूसरी ओर जब प्रोडक्ट खराब हो जाते हैं तो ये किसी काम के नहीं रहते और ई वेस्ट बनकर रह जाते हैं. ई वेस्ट कई तरह की गैस रिलीज करता है जो पर्यावरण को काफी ज्यादा नुकसान पहुंचाती है. मतलब आपके द्वारा फेंके गए इलेक्ट्रॉनिक प्रोडक्ट आप ही को नुकसान पहुंचाते हैं. इसलिए खराब प्रोडक्ट का फायदा दोनों तरफ से सिर्फ लोगों को ही होता है.
कई देशों ने इस बात को समझा है और कंपनियों पर अच्छे प्रोडक्ट बनाने का दबाव डाला. इसी के लिए कई देशों ने राइट टू रिपेयर पॉलिसी लागू की. ताकि कंपनी ऐसे प्रोडक्ट बनाए जो कम से कम एक दो साल तो चले.
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