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IPO क्या होता है? आईपीओ के फायदे क्या हैं? जानिए IPO में कैसे निवेश किया जाता है?

भारत में वित्तीय साक्षरता (financial literacy in india) प्रभावी नहीं है. आज भी देश में बहुत कम लोग हैं जो शेयर बाजार (share bazar kya hai) को समझते हैं. (Bombay stock exchange) बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज, (National stock exchange) नेशनल स्टॉक एक्सचेंज आज भी एक पढ़ी-लिखी आबादी की ही जिंदगी का हिस्सा है.

बहरहाल, जो लोग शेयर बाजार से जुड़े हैं उन लोगों के लिए (ipo full form) आईपीओ एक सुना हुआ नाम है. शेयर बाजार में आईपीओ (what is initial public offering (IPO) की जरूरत तब होती है जब कोई कंपनी पहली बार अपने शेयर जनता के सामने लाती है या उनके सामने साझा करती है. आईपीओ प्राइमरी मार्केट के अंदर आमंत्रित किया जाता है.

आजकल आप खबरों में सुनते होंगे की कोई कंपनी अपना आईपीओ जारी करने वाली है.आपके मन में ये सवाल आता होगा की आईपीओ क्या होता है? (what is IPO?) कंपनियांं आईपीओ क्यों जारी करती है? (why companies launch IPO?) आईपीओ जारी करने से क्या लाभ होता है? (benefit of IPO) आईपीओ को खरीदने से हमारा क्या लाभ होता है?

आईपीओ को समझने से पहले आपके लिए यह जानना जरूरी है कि शेयर बाजार में निवेश की प्रक्रिया क्या होती है. दरअसल, शेयर बाजार में दो तरह से निवेश यानी की इन्वेस्ट किया जाता है.

प्राइमरी मार्केट (Primary Market) के जरिए
और दूसरा सेकेंडरी मार्केट (Secondry Market) के जरिए.

आपको बता दें कि प्राइमरी मार्केट के जरिए आईपीओ के जरिए इन्वेस्ट किया जाता है जबकि सेकेंडरी मार्केट में स्टॉक मार्केट में पहले से लिस्टेड शेयर में निवेश किया जाता है. आइए अब समझते हैं आईपीओ को.

आईपीओ क्या होता है? (What is IPO?)

आईपीओ का फुल फॉर्म Initial Public offering जिसका मतलब होता है ‘प्रारम्भिक सार्वजनिक प्रस्ताव’. आईपीओ वह प्रक्रिया होती है जब कंपनी पहली बार अपने शेयरों को पब्लिक या सामान्य जनता के सामने खरीदने के लिए पेश करती है इसलिए इन्हें प्रारम्भिक सार्वजनिक प्रस्ताव कहा जाता है.

आईपीओ क्यों लाया जाता है? (Why IPO launch?

आईपीओ का इस्तेमाल प्राइवेट कंपनियांं या काॅॅर्पोरेशन अपने लिए बड़ी मात्रा में पूंजी जुटाने के लिए करती हैं. कभी-कभी सरकारी कंपनियां भी निवेश के लिए (ipo process steps) आईपीओ लाती है. इस प्रक्रिया में शेयर बाजार के माध्यम से किसी सरकारी कंपनी में कुछ हिस्सेदारी लोगों को बेची जाती है. जब कोई कंपनी आईपीओ लाने की योजना बनती है तो उसे अपनी प्रक्रिया पूरी करने के लिए दो चीजे तय करनी होती है.

सामान्य भाषा में कहा जाए तो आईपीओ के जरिए कंपनियां पूंजी एकत्रित करती है और उस जुटाई गई पूंजी यानी फंड का इस्तेमाल अपनी कंपनी के उत्पाद को बढ़ाने के लिए करती है. इस आईपीओ को खरीदने वाले लोगों को उतने पैसे से कंपनी की हिस्सेदारी मिल जाती है.

सबसे पहले तो उसे Underwriter और underwriters कंपनियों से संपर्क करना होता है जो उस कंपनी के शेयरों को बेचने की रूपरेखा तैयार करते हैं. और दूसरा उस (stock exchange) स्टॉक एक्स्चेंज में खुद को लिस्ट करना जहां पर उस कंपनी के शेयर बेचे जाने हैं. इन दोनों चीजों को तय करने के बाद ही कोई आईपीओ लॉंच किया जा सकता है.

IPO में Underwriting कंपनियां क्या होती हैं?

आईपीओ में अंडरराइटर का काम होता है किसी चीज से जुड़े जोखिम व फ़ायदों का आंकलन करना और सौदे के रूपरेखा तैयार करना. आईपीओ के मामले में अंडरराइटर ही ये तय करता है की कितने शेयर बेचे जाने चाहिए? कितने दाम पर बेचे जाने चाहिए? कहां बेचे जाने चाहिए? इन सभी चीजों को तय करते हुए वे कंपनी और लोगों दोनों के हितों का ध्यान रखते हैं.

अंडरराइटिंग कंपनी के काम (Work of underwriting companies?)

आईपीओ (how to apply IPO) जारी करने वाली कंपनी अपने शेयरों को बाजार में लाने के लिए अंडरराइटिंग कंपनी की सहायता लेती हैं. अंडरराइटिंग कंपनियां ही आईपीओ जारी करने वाली कंपनी की ओर से निवेशकों के पास शेयरों को बेचने का प्रस्ताव लेकर जाती है. कंपनियां इस काम के लिए एक या एक से ज्यादा अंडरराइटर कंपनियों की सहायता लेती है.

जब बड़े आईपीओ लॉंच होते हैं तो अंडरराइटिंग कंपनियों की ज़िम्मेदारी बैंकों के किसी संघटन को सौंपी जाती है. कोई एक या एक से ज्यादा बड़े निवेश बैंक उस संघटन का प्रतिनिधित्व करते हैं. अंडरराइटिंग कंपनियों को इस काम को करने पर शेयरों की बिक्री में से कमीशन मिलता है. ये कमीशन 8 प्रतिशत तक हो सकता है.

आईपीओ की कीमत कैसे तय होती है? (How to decide IPO price?)

जब कोई कंपनी आईपीओ लाती है तो उसे आईपीओ की कीमत तय करनी होती है. कंपनियों के आईपीओ की कीमत दो तरीकों से तय की जाती है.

– आईपीओ की कीमत जो तय की गई है उसी पर शेयर बिके इसे Fixed Price Issue कहा जाता है.
– आईपीओ की एक कम और एक ज्यादा कीमत तय की जाए जिसके भीतर शेयर की बिक्री हो इसे Price band issue कहा जाता है.
आईपीओ लाने वाली ज़्यादातर कंपनियां अपने शेयरों की कीमत पहले से तय कर सकती है. लेकिन इन्फ्रास्ट्रक्चर व अन्य कुछ विशेष क्षेत्रों में काम कर रही कंपनियों को अपने शेयरों की कीमत निर्धारित करने के लिए सेबी और रिजर्व बैंक की अनुमति लेनी पड़ती है.

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By रवि नामदेव

युवा पत्रकार और लेखक

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