कारगिल के युद्ध (Kargil war) के बारे में तो आपने सुना ही होगा. ये युद्ध साल 1999 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुआ था. इस युद्ध के एक प्रमुख शूरवीर थे ‘विक्रम बत्रा’ (Kargil war) जिन्हें कारगिल का हीरो भी कहा जाता है. विक्रम बत्रा (Vikram batra) कारगिल के युद्ध में अपने एक सैनिक को बचाते हुए दुश्मन की गोली खाई जिसके बाद वे देश के लिए शहीद हो गए.
विक्रम बत्रा का जन्म (Vikram batra birth and family)
विक्रम बत्रा का जन्म पालमपुर, हिमाचल प्रदेश में 9 सितंबर 1974 को हुआ था. उनकी माँ को दो बेटियों के बाद दो जुड़वा बेटों का जन्म हुआ था. उनके भाई का नाम विशाल था.
विक्रम बत्रा ने स्कूल की पढ़ाई सेना छावनी के एक स्कूल में की. जिसके चलते वे काफी अनुशासित तथा देश-भक्त थे. अपनी पढ़ाई होने के बाद जब उनके करियर की बारी आई तो उन्हे हाँगकाँग मर्चेन्ट नेवी से बुलावा आया उनकी सारी तैयारियां हो गई थी लेकिन उन्होने आर्मी में जाने के लिए इस नौकरी को ठुकरा दिया.
आर्मी में विक्रम बत्रा (Vikram batra in ARMY)
विक्रम बत्रा ने 1996 में भारतीय सैन्य अकादमी देहरादून में प्रवेश लिया था. उनका प्रशिक्षण समाप्त होने के बाद उन्हें 6 दिसंबर 1997 को जम्मू के सोपोर में 13 जम्मू कश्मीर रायफ़ल्स में लेफ्टिनेंट के पद पर नियुक्ति मिली थी. साल 1999 में उन्हें कमांडो ट्रेनिंग भी दी गई थी.
कारगिल में विक्रम बत्रा (Vikram batra in kargil)
विक्रम बत्रा कारगिल के हीरो यूं ही नहीं थे. उन्होने हम्पी व राकी नाब जैसे स्थानों को जीता था. उनकी इस जीत के बाद उन्हें सेना में कैप्टन बना दिया गया था.
कारगिल युद्ध के दौरान जब उन्हें कैप्टन बनाया गया तो उन्हें कमांडिंग कर्नल ऑफिसर ने 5140 चौकी फतह करने की ज़िम्मेदारी दी गई. 5140 एक ऐसी चौकी थी जो ऊंचाई पर थी अगर यहाँ पर कोई नीचे से ऊपर जाता है तो ऊपर वाला आसानी से उसे निशाना बना सकता है.
विक्रम बत्रा और उनके साथियों ने रात में चढ़ाई शुरू की और सुबह होने से पहले वे वहां पहुंच गए और वहां पर हमला कर दिया. इस हमले में उन्होने पाकिस्तानी सैनिकों को बुरी तरह हराया. चौकी फतह करने के बाद विक्रम बत्रा का कोड था ‘ये दिल मांगे मोर’. चौकी फतह करते ही उन्होने इस कोड को दोहराया.
विक्रम बत्रा का शेरशाह नाम (Vikram batra named Shershah)
कारगिल के युद्ध के दौरान विक्रम बत्रा को शेरशाह भी कहा जाता था. कई लोग उन्हें इस नाम से जानते हैं. कारगिल युद्ध के दौरान सैनिक उन्हें शेरशाह के नाम से ही बुलाते और पहचानते थे.
कारगिल युद्ध के दौरान पाकिस्तानी सैनिकों को यह कहते भी सुना गया था की ‘शेरशाह तुम वापस चले जाओ नहीं तो तुम्हारी लाश वापस जाएगी.’ तब विक्रम बत्रा ने कहा था की एक घंटे रुक जाओ फिर पता चलेगा की किसी लाशे वापस जाती है.
विक्रम बत्रा कैसे शहीद हुए? (Vikram batra death)
कारगिल युद्ध में 5140 चौकी फ़तह करने के बाद उन्हें चौकी 4875 जीतने का लक्ष्य दिया गया. विक्रम बत्रा ने खुद इस चौकी को फ़तह करने की ज़िम्मेदारी ली थी. इस चौकी को फ़तह करने एक दौरान विक्रम बत्रा और उनके सैनिक पत्थरों का कवर लेकर दुश्मनों पर फ़ायरिंग कर रहे थे.
तभी उनके सामने उनके एक सैनिक को गोली लगी और वो उनके सामने आकर खुले में गिर गया. विक्रम बत्रा उसे बचाने और उठाने के लिए पत्थरों के कवर से बाहर निकले और उन्हें दुश्मन की गोली लग गई और वो वहीं देश के लिए शहीद हो गए.
विक्रम बत्रा की लव स्टोरी (Vikram Batra love story)
कैप्टन विक्रम बत्रा की एक प्रेमिका हुआ करती थी. बीबीसी के अनुसार उनका नाम डिम्पल था और वो उनके साथ कॉलेज में पढ़ा करती थी. विक्रम रोज कारगिल पर जाने से पहले उनसे साढ़े सात बजे बात किया करते थे.
अगर विक्रम बत्रा शहीद नहीं होते तो डिम्पल से ही उनकी शादी होती. डिम्पल ने भी विक्रम बत्रा की मौत के बाद किसी और से शादी नहीं की बल्कि उनकी याद में अपनी ज़िंदगी गुजारने की सोची.
विक्रम बत्रा हमारे देश के वीर जवान थे जिन्होंने अपनी वीरता के दम पर कारगिल जैसे युद्ध में एक मुश्किल चौकी को फतह किया. अब विक्रम बत्रा के जीवन पर आधारित एक फिल्म बन रही है जिसका नाम ‘शेरशाह’ है. इस फिल्म में विक्रम बत्रा की भूमिका सिद्धार्थ मल्होत्रा निभा रहे हैं.
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