खेलकूद के मैदान में खिलाड़ी यदि किसी चीज से सबसे ज्यादा घबराता है तो वह है चोट. चोट से शारीरिक दर्द तो होता ही है बल्कि मानसिक रूप से भी खिलाड़ी डिस्टर्ब होता है. जाहिर है वह फिर खेल में हिस्सा नहीं ले पाता और अपनी टीम को सपोर्ट नहीं दे पाता, उसे मैदान के बाहर ही बैठे रहना पड़ता है. खिलाड़ी इस सोच में रहता है कि किसी तरह दर्द को पहले कम किया जाए और फिर लगी हुई चोट से मुक्ति पाई जाए.
‘उपचार से सावधानी अच्छी‘ ऐसे करें उपाय
एक प्रसिद्ध कहावत है कि ‘उपचार से सावधानी अच्छी‘. कुछ चोटें अवश्य वक्त बेवक्त लग सकती हैं पर वे चोटें जो उचित प्रशिक्षण न पाने के कारण लगती हैं या फिर शरीर के शिथिल होने के कारण लगती हैं, उनसे बचने के उपाय हैं.
खिलाड़ी की ट्रेनिंग से पहले यह जरूरी है कि उसकी पूर्ण डॉक्टरी जांच विशेष प्रशिक्षित डॉक्टरों से कराई जाए जिससे यह पता लग सके कि उसकी बॉडी के दूसरे पार्ट्स क्या स्थिति है और मसल्स में कितनी चुस्ती-फुर्ती है और कहां शिथिलता है. ऐसी जांच से दो बड़े फायदे होते हैं. एक तो यह पता लग पाता है कि व्यक्ति को पहले कभी चोट लगी थी और वह किसी स्थिति में है. दूसरा यह कि शरीर के कौन-से कमजोर अंग और मांसपेशियां हैं जिससे उन्हें शक्तिशाली बनाने में मदद मिलती है.
करें ये उपाय
शरीर में फिटनेस के लिए यह जरूरी है कि इस पर होने वाले दबाव को धीरे-धीरे बढ़ाया जाए. ट्रेनिंग प्रोग्राम कुछ इस तरह से बनाया जाए कि मांसपेशियों पर दबाव धीरे-धीरे बढ़ाते हुए उन्हें पूर्ण क्षमता का उपयोग करना सिखाया जाए.
बॉडी पार्ट्स शरीर कितने पावरफुल हो पाएंगे और पूरी क्षमता का पूर्ण उपयोग कर पाएंगे, यह इस बात पर निर्भर करता है कि उन्हें कितनाआराम दिया जाता है. सबसे शानदार सिस्टम वह होता है जब जिसमें बड़े खेल के अवसर से कुछ समय पहले शरीर का हर भाग स्फूर्ति की अपनी चरम सीमा पर पहुंच जाये.
अपनाएं ये ट्रिक्स
जब आप पूरी क्षमता के साथ ट्रेनिंग लेते हैं, तो उसके बाद आपको उतने ही विश्वास की और नींद की आवश्यकता होती है. रात में 8-9 घंटे सोना चाहिए. नींद की कमी के कारण मांसपेशियों में थकावट आ सकती है. प्रशिक्षण के जूतों में पैर की ‘आर्च‘ को सहारा देने वाले तलुवे होना आवश्यक है.
इसी प्रकार एडि़यों को सुरक्षा प्रदान करने वाले जूते होने चाहिए. इन प्रशिक्षण वाले जूतों से पांव की अंगुलियों को भी सुरक्षा मिलती है. इसके अलावा इन जूतों के निर्माण के समय इस बात का भी ध्यान रखा जाता है कि इनके तलुवे और ऊपरी भाग में लगी कैनवास और नायलॉन पांव को ठंडा रखें. प्रशिक्षण केंद्रों में इस बात की सावधानी रखना भी आवश्यक है कि जमीन समतल और बाधा रहित तथा रोशनी की उचित व्यवस्था हो.
मांसपेशियो के काम करने का तरीका
व्यायाम करने से शरीर का तापमान बढ़ता है, तो उसमें लचीलापन आता है. पहले से की गई ट्रेनिंग में मांसपेशियों में खिंचाव पैदा करने वाली ट्रेनिंग जरूरी है. जब मांसपेशियों में तापमान बढ़ता है तो उनमें संकुचित होने की रफ्तार भी तेज हो जाती है. ऐसा होने से उनमें कार्यशीलता ज्यादा आती है, शक्ति बढ़ती है और पूर्ण रूप से प्रशिक्षित हो पाती है.
मांसपेशियों में ऑक्सीजन का संचार बढ़ाने के लिए खिलाड़ी को कम से कम दस मिनट तक एक ही रफ्तार से दौड़ लगानी चाहिए. यदि वह प्रारंभिक अवस्था में तेज रफ्तार से दौड़ता है तो वह अपनी मांसपेशियों की ऊर्जा को काम में ले लेता है. इस तरह से मांसपेशियों में लेक्टेड की मात्रा बढ़ जाती है और उनमें ज्यादा थकावट आ जाती है. यह आवश्यक है कि मांसपेशियों का तापमान, ऑक्सीजन का संचार और उनकी कार्यक्षमता एक स्तर पर बनी रहे.
ट्रीटमेंट का तरीका और फायदे
खिलाडि़यों की चिकित्सा में चोट से बचाव और उपचार में पट्टियों का काफी महत्त्व है. पट्टियों के कारण घावों को सुरक्षा मिलती है या चोट की प्रारंभिक अवस्था में पट्टी बांध देने से चोट वाले अवयव पर दबाव आता है, उसकी कार्यशीलता कम हो जाती है. इससे क्षतिग्रस्त भाग को सहारा मिलता है.
जब चोट पुरानी और लंबी चलने वाली हो तो बहुत ध्यानपूर्वक उत्तम होमियोपैथी की दवाइयों से उपचार करना चाहिए. इसमें कई उपचार के साधन हैं जो शरीर के अंदर और बाहर समान रूप से अपना प्रभाव डालते हैं और व्यक्ति को इन चोटों से पूर्णरूप से काम दिलाते हैं. इनमें कोई हानिकारक प्रभाव भी नहीं होता. ऐसे व्यक्तियों की चोटों के बारे में पूर्ण विश्लेषण और जानकारी के बाद उनके लिए उपयुक्त दवा ज्ञात करके उनका उपचार किया जाये. कोई नजदीकी होम्योपैथी विशेषज्ञ बेहतर उपचार कर सकता है.
आकस्मिक चोट लगे तब क्या करें
आकस्मिक लगने वाली चोटों की तरफ ज्यादा ध्यान देने की आवश्यकता होती है, इन्हें तुरंत उपचार की भी आवश्यकता होती है. इनके उपचार में यह तुरंत तय करना पड़ता है कि कौन-सी दवा काम में ली जाये. जांच के तरीके जैसे एक्स-रे इत्यादि से चोट कितनी है तथा उनमें कौन कौन से अवयव सम्मिलित हैं, की जानकारी मिलने से इन खिलाडि़यों को उसी वक्त दर्द कम करने की दवा दी जा सकती हैं. यदि ठीक समझा जाये तो होमियोपैथी दवाएं भी उसी वक्त प्रारंभ की जा सकती हैं. इस प्रकार दोनों के सम्मिश्रण से रोगी पूर्णरूप से ठीक हो सकता है और उसका कुछ भी कुप्रभाव बाद में दिखलायी नहीं देता.
जब इस प्रकार की आकस्मिक चोट का उपचार होता है तो रोगी तेजी से निरोग होकर सक्रिय हो सकता है. यह खिलाड़ी के लिए अत्यंत उत्साहवर्धक बात है और वह अपनी सेवाएं खेल और राष्ट्र को समर्पित कर सकता है. होमियोपैथी दवाएं व्यक्तिगत चोट को देखते हुए तय की जाती हैं. चोट कहां, कितनी और किस प्रकार की हैं, इसका प्रभाव भी दवाइयों के चयन पर पड़ता है.
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