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शनिवार का दिन शनिदेव को समर्पित होता है. शनिदेव कर्म और न्याय के देवता है. मतलब आप जैसे कर्म करते हैं उसका फल देने का कार्य शनिदेव का होता है. आप चाहे तो शनिदेव की आराधना करके शनिदेव को प्रसन्न कर सकते हैं और शनिदेव के प्रकोप से बच सकते हैं. कहा जाता है कि शनिदेव का प्रकोप राजा को रंक बना देता है और शनिदेव की कृपा रंक को राजा बना देती है. शनिवार के दिन जो व्यक्ति शनिदेव का व्रत रखता है, शनिदेव की कथा सुनता है, शनि चालीसा का पाठ पढ़ता है उन पर शनिदेव प्रसन्न होते हैं.

शनिवार व्रत कथा विधि | Shanivar Vrat Katha Vidhi

शनिवार का व्रत करने के लिए इसकी विधि पता होना बेहद जरूरी है.

– व्रत रखने के लिए सबसे पहले ब्रह्म मुहूर्त में उठें और स्नान करें.
– इसके बाद पीपल के वृक्ष पर जल अर्पण करें.
– इसके बाद शनि देव की पूजा करें.
– सबसे पहले शनि देव की लोहे की प्रतिमा को पंचामृत स्नान कराएं.
– इसके बाद शनिदेव की प्रतिमा को चावलों से बनाए चौबीस दल के कमाल पर स्थापित करें.
– शनिदेव की पूजा में काले तिल, धूप, काला वस्त्र, फूल, तेल का इस्तेमाल करें.
– इन सभी चीजों के साथ शनिदेव की पूजा करें.
– इसके बाद शनिदेव की कथा सुनें.
– शनिदेव की पूजा हो जाने के बाद पीपल के वृक्ष के ताने पर सूत के धागे से सात बार परिक्रमा करनी चाहिए.

शनिवार व्रत कथा | Shanivar Vrat katha

एक समय सभी नवग्रहओं सूर्य, चंद्र, मंगल, बुद्ध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु और केतु में विवाद छिड़ गया, कि इनमें सबसे बड़ा कौन है? सभी आपस में लड़ने लगे, और कोई निर्णय ना होने पर देवराज इंद्र के पास निर्णय कराने पहुंचे. इंद्र इससे घबरा गये, और इस निर्णय को देने में अपनी असमर्थता जतायी. परन्तु उन्होंने कहा, कि इस समय पृथ्वी पर राजा विक्रमादित्य हैं, जो कि अति न्यायप्रिय हैं. वे ही इसका निर्णय कर सकते हैं.

सभी ग्रह एक साथ राजा विक्रमादित्य के पास पहुंचे, और अपना विवाद बताया. साथ ही निर्णय के लिये कहा. राजा इस समस्या से अति चिंतित हो उठे, क्योंकि वे जानते थे, कि जिस किसी को भी छोटा बताया, वही कुपित हो उठेगा. तब राजा को एक उपाय सूझा. उन्होंने सुवर्ण, रजत, कांस्य, पीतल, सीसा, रांगा, जस्ता, अभ्रक और लौह से नौ सिंहासन बनवाये, और उन्हें इसी क्रम से रख दिया. फ़िर उन सबसे निवेदन किया, कि आप सभी अपने अपने सिंहासन पर स्थान ग्रहण करें. जो अंतिम सिंहासन पर बठेगा, वही सबसे छोटा होगा.

इस अनुसार लौह सिंहासन सबसे बाद में होने के कारण, शनिदेव सबसे बाद में बैठे. तो वही सबसे छोटे कहलाये. उन्होंने सोच, कि राजा ने यह जान बूझ कर किया है. उन्होंने कुपित हो कर राजा से कहा “राजा! तू मुझे नहीं जानता. सूर्य एक राशि में एक महीना, चंद्रमा सवा दो महीना दो दिन, मंगल डेड़ महीना, बृहस्पति तेरह महीने, व बुद्ध और शुक्र एक एक महीने विचरण करते हैं. परन्तु मैं ढाई से साढ़े-सात साल तक रहता हुं. बड़े बड़ों का मैंने विनाश किया है. श्री राम की साढ़े साती आने पर उन्हें वनवास हो गया, रावण की आने पर उसकी लंका को बंदरों की सेना से परास्त होना पढ़ा.अब तुम सावधान रहना. ” ऐसा कहकर कुपित होते हुए शनिदेव वहां से चले.

अन्य देवता खुशी खुशी चले गये. कुछ समय बाद राजा की साढ़े साती आयी. तब शनि देव घोड़ों के सौदागर बनकर वहां आये. उनके साथ कई बढ़िया घड़े थे. राजा ने यह समाचार सुन अपने अश्वपाल को अच्छे घोड़े खरीदने की अज्ञा दी. उसने कई अच्छे घोड़े खरीदे व एक सर्वोत्तम घोड़े को राजा को सवारी हेतु दिया. राजा ज्यों ही उसपर बैठा, वह घोड़ा सरपट वन की ओर भागा. भीषण वन में पहुंच वह अंतर्धान हो गया, और राजा भूखा प्यासा भटकता रहा. तब एक ग्वाले ने उसे पानी पिलाया. राजा ने प्रसन्न हो कर उसे अपनी अंगूठी दी.

वह अंगूठी देकर राजा नगर को चल दिया, और वहां अपना नाम उज्जैन निवासी वीका बताया. वहां एक सेठ की दूकान उसने जल इत्यादि पिया. और कुछ विश्राम भी किया. भाग्यवश उस दिन सेठ की बड़ी बिक्री हुई. सेठ उसे खाना इत्यादि कराने खुश होकर अपने साथ घर ले गया. वहां उसने एक खूंटी पर देखा, कि एक हार टंगा है, जिसे खूंटी निगल रही है. थोड्क्षी देर में पूरा हार गायब था. तब सेठ ने आने पर देखा कि हार गायब है. उसने समझा कि वीका ने ही उसे चुराया है. उसने वीका को कोतवाल के पास पकड़वा दिया.

फिर राजा ने भी उसे चोर समझ कर हाथ पैर कटवा दिये और नगर के बहर फिंकवा दिया गया. वहां से एक तेली निकल रहा था, जिसे दया आयी, और उसने वीका को अपनी गाडी़ में बिठा लिया. वह अपनी जीभ से बैलों को हांकने लगा. उस काल राजा की शनि दशा समाप्त हो गयी. वर्षा काल आने पर वह मल्हार गाने लगा. तब वह जिस नगर में था, वहां की राजकुमारी मनभावनी को वह इतना भाया, कि उसने मन ही मन प्रण कर लिया, कि वह उस राग गाने वाले से ही विवाह करेगी. उसने दासी को ढूंढने भेजा. दासी ने बताया कि वह एक चौरंगिया है. परन्तु राजकुमारी ना मानी.

अगले ही दिन से उठते ही वह अनशन पर बैठ गयी, कि विवाह करेगी तो उसी से. उसे बहुत समझाने पर भी जब वह ना मानी, तो राजा ने उस तेली को बुला भेजा, और विवाह की तैयारी करने को कहा. फिर उसका विवाह राजकुमारी से हो गया. तब एक दिन सोते हुए स्वप्न में शनिदेव ने राजा से कहा: राजन्, देखा तुमने मुझे छोटा बता कर कितना दुःख झेला है. तब राजा ने उससे क्षमा मांगी, और प्रार्थना की , कि हे शनिदेव जैसा दुःख मुझे दिया है, किसी और को ना दें. शनिदेव मान गये, और कहा: जो मेरी कथा और व्रत कहेगा, उसे मेरी दशा में कोई दुःख ना होगा. जो नित्य मेरा ध्यान करेगा, और चींटियों को आटा डालेगा, उसके सारे मनोरथ पूर्ण होंगे. साथ ही राजा को हाथ पैर भी वापस दिये.

प्रातः आंख खुलने पर राजकुमारी ने देखा, तो वह आश्चर्यचकित रह गयी. वीका ने उसे बताया, कि वह उज्जैन का राजा विक्रमादित्य है. सभी अत्यंत प्रसन्न हुए. सेठ ने जब सुना, तो वह पैरों पर गिरकर क्षमा मांगने लगा. राजा ने कहा, कि वह तो शनिदेव का कोप था. इसमें किसी का कोई दोष नहीं. सेठ ने फिर भी निवेदन किया, कि मुझे शांति तब ही मिलेगी जब आप मेरे घर चलकर भोजन करेंगे. सेठ ने अपने घर नाना प्रकार के व्यंजनों ने राजा का सत्कार किया. साथ ही सबने देखा, कि जो खूंटी हार निगल गयी थी, वही अब उसे उगल रही थी.

सेठ ने अनेक मोहरें देकर राजा का धन्यवाद किया, और अपनी कन्या श्रीकंवरी से पाणिग्रहण का निवदन किया. राजा ने सहर्ष स्वीकार कर लिया. कुछ समय पश्चात राजा अपनी दोनों रानियों मनभावनी और श्रीकंवरी को साभी दहेज सहित लेकर उज्जैन नगरी को चले. वहां नगरवासियों ने सीमा पर ही उनका स्वागत किया. सारे नगर में दीपमाला हुई, व सबने खुशी मनायी. राजा ने घोषणा की , कि मैंने शनि देव को सबसे छोटा बताया था, जबकि असल में वही सर्वोपरि हैं. तबसे सारे राज्य में शनिदेव की पूजा और कथा नियमित होने लगी. सारी प्रजा ने बहुत समय खुशी और आनंद के साथ बिताया. जो कोई शनि देव की इस कथा को सुनता या पढ़ता है, उसके सारे दुःख दूर हो जाते है. व्रत के दिन इस कथा को अवश्य पढ़ना चाहिये.

शनिदेव आरती

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