भगवान श्री गणेश को सभी देवताओं में प्रथम पूजा जाता है. वे भक्तों के दुखों को हरते हैं इसलिए उन्हें विघ्नहर्ता कहते हैं. आपके जीवन में भी यदि कोई दुख या कष्ट है तो आप संकष्टी चतुर्थी (Sankashti Chaturthi 2023) व्रत करके अपने संकटों से मुक्ति पा सकते हैं.
संकष्टी चतुर्थी कब है? (Sankashti Chaturthi Kab hai?)
संकष्टी चतुर्थी भगवान श्रीगणेश से संबंधित है. ये हर माह में एक बार आती है. हिन्दू पंचांग के अनुसार आने वाले प्रत्येक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है. इसे संकटा चतुर्थी भी कहा जाता है. कई बार आपने इसे अंगारकी चतुर्थी के नाम से भी देखा होगा. जो चतुर्थी मंगलवार के दिन आती है उसे अंगारकी चतुर्थी कहा जाता है.
इस बार नए साल की शुरुआत में 10 जनवरी 2023, मंगलवार को संकष्टी चतुर्थी आ रही है. इसलिए इसे अंगारकी चतुर्थी भी कहा जाता है.
संकष्टी चतुर्थी व्रत विधि (Sankashti Chaturthi Vrat Vidhi)
आप यदि संकष्टी चतुर्थी का व्रत करना चाहते हैं तो नीचे दी गई विधि के अनुसार व्रत कर सकते हैं.
– संकष्टी चतुर्थी के दिन सुबह सूर्योदय से पहले नित्य कर्मों से निवृत्त होकर स्नान करें.
– स्नान करने के बाद हल्के रंग के स्वच्छ वस्त्र धारण करें.
– गणेश जी के मंत्र उच्चारण के साथ स्नान के बाद गणेश भगवान की पूजा आराधना करें.
– पूजा में गणेश जी को उनकी पसंदीदा चीजें जैसे लड्डू, मोदक और दूर्वा आदि अर्पित करें.
– इसके बाद गणेश मंत्र का जाप करें और गणेश चालीसा का पाठ करें.
– पूजा पूरी होने के बाद गणेश जी की आरती करें.
– इसके बाद दिनभर व्रत रखें तथा एक बार पूजा शाम को चाँद निकालने के बाद की जाती है.
– शाम के पूजा के लिए गणेश जी की मूर्ति के बाजू में दुर्गा जी की भी फोटो या मूर्ति रखें, इस दिन दुर्गा जी की पूजा बहुत जरुरी मानी जाती है.
– मूर्ति/फोटो पर धुप, दीप, अगरबत्ती लगाएँ, फुल से सजाएँ एवं प्रसाद में केला, नारियल रखें.
– गणेश जी के प्रिय मोदक को तिल या गुड के बनाकर अर्पित करें.
– गणेश मंत्र का जाप करते हुए कुछ मिनट तक ध्यान करें.
– इसके बाद संकष्टी चतुर्थी की कथा पढ़ें या सुनें और भगवान से प्रार्थना करें.
– इसके बाद चंद्रमा की पूजा करें और उन्हें जल अर्पण करके, फूल, चंदन, चावल, आदि अर्पित करें.
– पूजा की समाप्ति पर सभी को प्रसाद वितरित करें एवं गरीबों को यथाशक्ति दान करें.
संकष्टी चतुर्थी की कथा (Sankashti Chaturthi Vrat Katha)
कथा के अनुसार एक बार भगवान शिव के साथ माता पार्वती माँ नर्मदा के तट पर गायें. वहाँ एक सुंदर स्थान पर पार्वती जी ने चौपड़ खेलने की इच्छा व्यक्त की. तब शिवजी ने कहा कि हमारी जीत और हार का साक्षी कौन होगा?
तब पार्वती जी ने तत्काल वहाँ मौजूद घास के तिनके को बटोरकर एक पुतला बनाया और उसमें प्राण दिए. इसके बाद उससे कहा ‘बेटा हम चौपड़ खेलना चाहते हैं किन्तु यहाँ हार जीत का कोई साक्षी नहीं है, तुम्हें साक्षी होकर बताना होगा कि अंत में कौन जीता और कौन हारा?
खेल प्रारंभ हुआ और तीन बार खेला गया. देवयोग से तीन बार ही माता पार्वती जी विजयी हुई. अंत में बालक से हार जीत का निर्णय कराया गया तो बालक ने भगवान शिव को विजयी बताया. बालक के परिणाम से क्रोधित होकर माता पार्वती ने उसे एक पाँव से लंगड़ा होने और वहाँ कीचड़ में पड़े रहकर दुख भोगने का श्राप दे दिया.
तब उस बालक ने विनम्रतापूर्वक कहा कि ‘हे माँ! मैंने अज्ञानवश ऐसा किया. मैंने किसी कुटिलता या द्वेष के कारण ऐसा नहीं किया है. मुझे क्षमा करें और श्राप से मुक्ति का कोई उपाय बताएं.’
तब माता पार्वती को उस पर दया आ गई और वो बोलीं कि यहाँ नाग कन्या गणेश पूजन करने के लिए आएंगी. उनके उपदेश से तुम गणेश व्रत करके मुझे प्राप्त करोगे. इतना कहकर माता पार्वती और भगवान शिव कैलाश पर्वत चले गए.
एक वर्ष के बाद वहाँ नाग कन्या गणेश पूजन के लिए आईं. उन्होंने व्रत करके उस बालक को भी गणेश पूजा की विधि बताई. बालक ने 12 दिन तक भगवान गणेश का व्रत किया. तब गणेश जी ने उसे दर्शन दिए और कहा कि मैं तुम्हारे व्रत से प्रसन्न हूँ, तुम मनवांछित वर मांग सकते हो.
तब बालक ने कहा कि ‘भगवान मेरे पाँव में इतनी शक्ति दे दो कि मैं कैलाश पर्वत पर अपनी माता और पिता के पास पहुँच सकूँ और वे मुझ पर प्रसन्न हो जाएं. गणेश जी तथास्तु कहकर अन्तर्धान हो गए.
बालक के पैर ठीक हो गए और वो अपने पैरों पर चलकर कैलाश पर्वत पहुँचा. वहाँ पहुंचकर बालक ने सारी कथा शिवजी को सुनाई. तब शिवजी ने भी 21 दिन तक श्रीगणेश का व्रत किया और विमुख पार्वती जी के अंदर महादेवजी से मिलने की इच्छा जागृत की.
वे शीघ्र ही कैलाश पर्वत पर पहुंची और उन्होंने महादेवजी से पूछा कि भगवान आपने ऐसा कौन सा उपाय किया जिसके फलस्वरूप मैं भागी-भागी यहाँ आ गई. तब उन्होंने इस व्रत के बारे में पार्वती जी को बताया.
उस समय माता पार्वती के मन में अपने पुत्र कार्तिकेय से मिलने की इच्छा थी. इसी इच्छा के साथ उन्होंने 21 दिन तक गणेशजी का पूजन और व्रत किया. जिसके फल स्वरूप कार्तिकेजी भी उनसे मिलने आ पहुंचे.
भगवान श्री गणेश अपने भक्तों के दुख इसी तरह दूर करते हैं. यदि आप संकष्टी चतुर्थी के दिन विधि विधान से उनका व्रत करते हैं तो वे आपके हर दुख दूर करते हैं और आपकी सभी मनोकामना पूरी करते हैं.
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