अखबार, टेलीविज़न और सोशल मीडिया में राजकपूर के आइकनिक आर.के स्टूडियो के बिकने की खबर अब ठंडी पड़ने लगी है. ट्विटर और फेसबुक पर उनके प्रशंसक अफ़सोस और हताशा भरी प्रतिक्रिया के बाद चुप हैं. यह पहला मौका नहीं है जब किंवदंती बनी विरासत को उसके वारिस सहेज नहीं पाये.
भारत के पहले सुपर स्टार राजेश खन्ना के बंगले ‘आशीर्वाद’ और किशोर कुमार के खंडवा स्थित ‘ गौरीकुंज ‘ की जो गति हुई वही सब अब इस स्टूडियो के साथ घटने जा रहा है. 70 बरस पुराना स्टूडियो अब कुछ ही समय में इतिहास के गलियारों में गुम हो जाएगा और उसकी जगह ले लेगी कोई बहुमंजिला इमारत या कोई हाउसिंग कॉलोनी.
आरके स्टूडियो की त्रासदी का जिम्मेदार कौन?
आपको बता दें कि मुंबई में हार्बर लाइन पर स्थिति चेंबूर में आर. के. स्टूडियो कपूर फैमिली की पारिवारिक संपत्ति है. इस स्टूडियो को राज कपूर ने 1948 में बनवाया था. यहांं बॉलीवुड की बेहतरीन फिल्मों की शूटिंग हुई.
राजकपूर के जाने के बाद इस स्टूडियो का संरक्षण समय के हिसाब से नहीं हो पाया. रही-सही कसर चेंबूर में बढ़े ट्रैफिक, खराब रास्तों, भीड़ और बढ़ती महंगाई ने पूरी कर दी. इन्हीं कारणों से यहां फिल्मों की शूटिंग लगातार कम होती गई और बाद में हालात ये हो गए कि यहां शूटिंग पूरी तरह बंद ही हो गई. नतीजा स्टूडियो की इनकम पर हुआ.
कपूर फैमिली लंबे समय तक इसका खर्च उठाती रही, लेकिन आज हालत यह है कि कपूर परिवार इसे संभालने खुद को असमर्थ पा रहा है.
खास बात यह है कि पिछले वर्ष इस स्टूडियो में आग लगने से हिंदी सिनेमा की यह विरासत और भी जर्जर और धूमिल हो गई. इस स्टूडियो को बेचने के लिए मजबूर होने पर कपूर फैमिली के सदस्य ऋषि कपूर, करीना कपूर और रणधीर कपूर दुखी हैं लेकिन मजबूर भी हैं.
हालांकि उम्मीद अब सरकार से है क्योंकि यदि वह इसे खरीद लेती है और संग्रहालय के रूप में इसका निर्माण करती है तो यह ना केवल हिंदी सिनेमा के लिए एक विरासत का संरक्षण होगा बल्कि देश के लिए भी गौरव की बात होगी.
कब सीखेंगे हम विरासतों को बचाना?
हमारे देश का सामूहिक चरित्र जीवन के दो परस्पर विरोधी बिदुओ के बीच पैंडुलम की तरह डोलता रहता है. एक तरफ हम बेहद अतीतजीवी मानसिकता में जकड़े रहते है, अपने तथाकथित गौरवशाली अतीत के लिए मरने मारने पर उतारू हो जाते हैं.
वहीं दूसरी तरफ अपनी इमारतों और सांस्कृतिक विरासतों के प्रति बेहद लापरवाह और गैर जिम्मेदाराना रुख अपना लेते हैं. व्यक्तित्व का यही भटकाव न हमें गुजरे समय से जुड़े रहने देता है न ही भविष्य के प्रति सजग बनाता है.
अंग्रेजी और अंग्रेजियत के प्रति हमारा लगाव विश्वविख्यात है. भाषा और रहन-सहन के मान से हम ‘गोरों’ की तरह हो जाना चाहते हैं. हमारे फिल्म पुरस्कार बतर्ज़े ‘ऑस्कर’ और ‘बाफ्टा’ की फोटोकॉपी बनने का प्रयास करते हैं, परन्तु हम उनकी तरह अपनी विरासतों के प्रति संवेदनशील नहीं बन पाते.
अमेरिका के पास अपनी कोई ऐतिहासिक संस्कृति नहीं है परन्तु हॉलीवुड ने जिस तरह अपनी फिल्मों और फिल्मकारों को सहेजा है वैसा हमने अभी प्रयास करना भी आरंभ नहीं किया है.
बॉलीवुड कब सीखेगा सहजने और संरक्षण की संस्कृति
सिनेमा के शुरूआती दौर में बनी भारतीय फिल्मों के प्रिंट तो दूर की बात है हमारे पास पहली सवाक फिल्म ‘आलमआरा ‘का पोस्टर भी सुरक्षित नहीं बचा. जबकि हॉलीवुड ने उस दौर की चालीस प्रतिशत फिल्मों को नष्ट होने से बचा लिया है. अपने फिल्मकारों की स्मृतियों को आमजन में ताजा रखने के लिए कैलिफोर्निया के रास्तो पर पीतल के सितारों को जमीन पर मढ़ा गया है.
इन सितारों पर उल्लेखनीय अभिनेताओं और अभिनेत्रियों के नाम उकेरे गए हैं. उम्रदराज और असहाय फिल्मकारों की देखरेख करने के लिए ‘मूवी पिक्चर एंड टेलीविज़न फंड’ नाम की संस्था है जो उन्हें जीवन की शाम में भी सम्मान से जीने का मौका देती है.
एक जमाने के सुपरस्टार भारत भूषण, भगवान् दादा की तरह उन्हें अपना जीवन झुग्गी झोपडी में नहीं गुजारना पड़ता. ए.के हंगल जैसे वरिष्ठ और लोकप्रिय अभिनेता के इलाज के लिए चंदा नहीं करना पड़ता.
आखिर क्यों हुई आरके स्टूडियो की ऐसी हालत?
एक वर्ष पहले जब आर के स्टूडियो में आग लगी थी तब ही तय हो गया था कि अब इस महान विरासत पर पर्दा गिरने वाला है. राजकपूर ने अपनी फिल्म के कॉस्टयूम, जूते, स्मृतिचिन्ह ‘बरसात’ का छाता, ‘मेरा नाम जोकर’ का जोकर, श्री 420 का हैट, जैसी बहुत सी छोटी-छोटी चीजों को स्टूडियो में सहेजा था.
यह सारा इतिहास उस आग में भस्म हो गया. दूसरों की फिल्मों में काम करने वाले उनके पुत्र अपने पिता के सपनों की रखवाली नहीं कर पाये. यहां शशिकपूर के परिवार खासकर उनकी पुत्री संजना कपूर की तारीफ़ करना होगी जिसने विकट परिस्तिथियों में भी’ पृथ्वी थिएटर’ को चालीस वर्षों से चलायमान रखा है.
हमारे दौर के वारिसों के लिए संग्राहलय से ज्यादा उसकी जमीन का दाम महत्वपूर्ण रहा है. प्रसिद्ध फ़िल्मकार कमाल अमरोही ( पाकीजा के निर्माता) के वारिसों ने उनकी प्रॉपर्टी के लिए कितने दांव पेच लगाए इस पर अलग से एक फिल्म बन सकती है.
केलिन गोव ने अपने उपन्यास ‘बिटर फ्रॉस्ट’ में कहा है’ विरासत- इस पर गर्व हो क्योंकि आप इसकी विरासत होंगे. अपनी विरासत को सहेजने और आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी आपकी है, अन्यथा यह खो जाएगी.