गणेश चतुर्थी के अगले ही दिन Rishi Panchami Vrat किया जाता है. हिन्दू धर्म की अधिकतर महिलायें और लड़कियां इस व्रत को करती हैं. इस व्रत की खास बात ये है कि इसमें किसी देवी या देवता को नहीं बल्कि ऋषियों की पूजा की जाती है. ये एक खास व्रत होता है. ऋषि पंचमी का व्रत अपने आप में खास होता है. काफी सारे लोग तो ये भी नहीं जानते हैं कि ऋषि पंचमी का व्रत क्यों मनाया जाता है?
ऋषि पंचमी कब है? (Rishi Panchami Vrat Kab hai?)
हिन्दू धर्म के प्रमुख व्रत में से एक ऋषि पंचमी भी है. ये व्रत भाद्रपद माहके शुक्ल पक्ष की पंचमी को आता है जिसे हम ऋषि पंचमी कहते हैं. इस वर्ष ऋषि पंचमी का व्रत 1 सितंबर 2022, गुरुवार को है.
ऋषि पंचमी का व्रत क्यों रखा जाता है? (Reason of Rishi Panchami Vrat)
ऋषि पंचमी का व्रत लड़कियों और महिलाओं दोनों के द्वारा रखा जाता है. इस व्रत के महिला के शादीशुदा होने या न होने से कोई संबंध नहीं होता है. इस व्रत में किसी देवी-देवता की पूजा भी नहीं की जाती है.
हम सभी जानते हैं कि महिलाओं को महीने के कुछ मासिक धर्म के होते हैं. इन दिनों में महिलाओं को किचन और मंदिर से दूर रहने के लिए कहा जाता है. इन दिनों यदि उनसे कोई गलती हो जाती है तो उस भूल को सुधारने के लिए इस व्रत को रखा जाता है.
ऋषि पंचमी व्रत कथा (Rishi Panchami Vrat Katha)
ऋषि पंचमी की व्रत कथा में ही ये बात छिपी हुई है कि ऋषि पंचमी का व्रत क्यों करना चाहिए.
एक बार युधिष्ठिर ने प्रश्न किया हे देवेश! मैंने आपके श्रीमुख से अनेकों व्रतों को श्रवण किया है। अब आप कृपा करके पापों को नष्ट करने वाला कोई उत्तम व्रत सुनावें। राजा के ‘इन वचनों को सुनकर श्री कृष्ण जी बोले- हे राजेन्द्र ! अब मैं तुमको ऋषि पंचमी का उत्तम व्रत सुनाता हूँ, जिसको धारण करने से स्त्री समस्त पापों से छुटकारा प्राप्त कर लेती है.
हे नृपोत्तम, पूर्व समय में वृत्रासुर का वध करने के कारण इन्द्र के उस पाप को चार स्थानों पर बांट दिया. पहला अग्नि की ज्वाला में, दूसरा नदियों के बरसाती जल में, तीसरा पर्वतों में और चौथा स्त्री के रज में उस रजस्वला धर्म में जाने अनजाने उससे जो भी पाप हो जाते हैं उनकी शुद्धि के लिए ऋषि पंचमी व्रत करना उत्तम है.
सतयुग में विदर्भ नगरी में स्वेनजित नामक राजा हुए. वे प्रजा का पुत्रवत पालन करते थे। उनके आचरण ऋषि के समान थे. उनके राज्य में समस्त वेदों का ज्ञाता समस्त जीवों का उपकार वाला सुमित्र नामक एक कृषक ब्राह्मण निवास करता था. उनकी स्त्री जयश्री पतिव्रता थी. ब्राह्मण के अनेक नौकर-चाकर भी थे. एक समय वर्षाकाल में जब वह साध्वी खेती के कामों लगी हुई थी तब वह रजस्वला भी हो गई.
उसे रजस्वला होने का पता तो लग गया किन्तु वह गृहस्थी के कार्यों में लगी रही. घर पहुँचने पर उसका पति भी उसके संपर्क में आया. दोनों कुछ समय के पश्चात अपनी आयु भोगकर मृत्यु को प्राप्त हुए. इस दोष के कारण ब्राहमण बैल बन गया और उसकी पत्नी कुतिया बन गई.
जब इनका दूसरा जन्म हुआ तो इन्हें सब याद था. ये दोनों अपने पुत्र के यहाँ रहने लगे. इनका पुत्र सुमित एक धर्मात्मा था. वह अतिथियों का पूर्ण सत्कार किया करता था.
एक बार श्राद्ध पक्ष में उसने घर पर ब्राह्मणों को भोजन के लिए आमंत्रित किया. सुमित की पत्नी खान बनाकर बाहर चली गई और तभी एक सर्प ने रसोई के बर्तन में अपना विष उड़ेल दिया. सुमित की माँ ने ये सब देख लिया और उसने उसकी बहु के सामने कुतिया बनकर उसे झूठा कर दिया ताकि उसके बेटे को ब्राह्मण हत्या का पाप न लगे.
सुमित ने जब ये सब देखा तो उससे रहा नहीं गया और उसने एक जलती लकड़ी कुतिया को दे मारी. वहीं दूसरी ओर उसने खेतों में बैल को भी खूब मारा. शाम को बैल और कुतिया जो सुमित के माता-पिता थे वे आपस में बात कर रहे थे.
सुमित की माँ ने कहा कि उसने बेटे को ब्राह्मण हत्या से बचाने के लिए ऐसा किया. उसके पुत्र ने तो आज उसे झूठा भोजन भी नहीं दिया. वहीं बैल ने कहा कि आज पुत्र ने उसे खूब मारा और खूब काम कराया और उसे भी भोजन नहीं दिया. ये सब तुम्हारे उस पाप के कारण हो रहा है जो तुमने मनुष्य के जन्म में किया था.
उनकी ये बाते सुमित सुन रहा था. सुमित ने बाद में दोनों को भोजन कराया और अगली ही सुबह वह जंगल में ऋषियों के पास गया. उसने इस पूरी घटना को सुनाया तो ऋषि ने कहा कि ये सब तुम्हारे माता-पिता के पाप के कारण हुआ है. ऋषि पंचमी का व्रत रखने से उन्हें मुक्ति मिलेगी.
श्री कृष्णजी बोले– हे राजन! महर्षि सर्वतपा के इन वचनों को श्रवण करके सुमित अपने घर लौट आया और ऋषिपंचमी का दिन आने पर उसने अपनी स्त्री सहित उस व्रत को धारण किया और उस के पुण्य अपने माता पिता को दे दिया. व्रत के प्रभाव से उसके माता-पिता दोनों ही पशु को योनियों से मुक्त हो गए और स्वर्ग को चले गए. जो स्त्री इस व्रत को धारण करती है वह समस्त सुखों को पाती है.
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