हमारे देश से लेकर दुनिया भर के कई देशों में महिलाएं जेंडर असमानता का सामना कर रही हैं. शायद ही ऐसी कोई फील्ड हो जहां महिलाएं कदम से कदम और कंधे से कंधा मिलकर न चल रही हों. इसके बावजूद उन्हें समानता का दर्जा नहीं मिल पा रहा है. हालांकि कुछ लोग महिलाओं को समानता देने के मुद्दे पर डटकर खड़े हैं और इसके लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं.
उपलब्धियां समान पर सम्मान नहीं
जेंडर समानता के मुद्दे पर साइंस जैसे क्षेत्र में भी महिलाएं आज तक बराबरी का दर्जा नहीं पा सकी हैं. जबकि वे कार्य और उपलब्धियों के मामले में पुरुषों से कहीं से कहीं तक पीछे नहीं है. इसके बावजूद साइंस सबंधी एकेडमिक मीटिंग्स हों या फिर किसी समिति का गठन इक्का- दुक्का महिलाओं को ही शामिल किया जाता है.
जेंडर समानता के लिए उठाए जा रहे सराहनीय कदम
महिलाओं के साथ होने वाले लिंग भेद को समाप्त करने के लिए सामूहिक व व्यक्तिगत रूप से कई लोग व संस्थाएं कार्यरत भी हैं. साइंस फील्ड में इस अासमानता को कम करने के लिए कई साइंटिस्ट सराहनीय कदम उठा रहे हैं. हाल ही में ऐसे कुछ मामले सामने भी आए हैं.
रोजर नहीं बने संपादक मंडल के सदस्य
न्यूरो साइंटिस्ट रोजर कीविट को एक जर्नल के संपादक मंडल का सदस्य बनने का आमंत्रण मिला था. इस मंडल के सदस्यों में पुरुषों और महिलाओं के अनुपात में काफी अंतर था. जिसे देखकर रोजर ने सदस्य बनने से इंकार कर अपने तरीके से जेंडर असमानता की खिलाफत की.
रोजर अक्सर उन एकेडमिक सभाओं में जाना पसंद नहीं करते जिनमें महिला और पुरुषों की संख्या में काफी अंतर हो. उनका व्यक्तिगत रूप से जेंडर असमानता को यह विरोध का तरीका सराहनीय है. रोजर से कुछ और लोगों को भी सीख लेनी चाहिए.
यह कदम भी प्रशंसनीय
जेंडर असमानता का विरोध करने कुछ साइंटिस्ट वेबसाइट्स का सहारा भी ले रहे हैं. वहीं कुछ वैज्ञानिकों ने विज्ञान के क्षेत्र में काम करने वाली महिलाओं की सूची तैयार की है. इस सूची के आधार पर समय-समय पर आयोजित होने वाली मीटिंग्स में महिला वैज्ञानिकों को बुलाया जाता है.
सभी स्वीकार नहीं करते बदलाव
“यू बायोस” की संपादकीय निदेशक और वैज्ञानिक एलिजाबेथ विक कहती हैं कि इस तरह के बदलाव को कई बोर्ड स्वीकार करते हैं. तो वहीं कुछ बोर्ड इन बदलावों को आसानी से नहीं अपनाते हैं. इन बदलावों को व्यक्तिगत प्रयास कर नहीं लाया जा सकता.
जेंडर असमानता जैसे मुद्दों को लागू करने के लिए सभी संस्थाओं, विभागों, पत्रिकाओं के साथ ही समाज को मिलकर कार्य करने होंगे. संपादक मंडल में महिलाओं की भागीदारी रहने पर इसका असर प्रकाशित होने वाले जर्नल में भी नजर आएगा.