पंजाब नेशनल बैंक घोटाले ने पूरी सरकार को बैकफुट पर ला दिया है. नई बात यह है कि प्रधानमंत्री कार्यालय को पता होने के बाद भी जांच तब शुरू हुई जब आरोपी देश छोड़कर भाग गया. विपक्ष मामले को 2जी एपेक्ट्रम और कोयला घोटाले की तरह ही उछालने की कोशिश मेें है. सरकार के दिग्गज मंत्री से लेकर अफसर तक बार-बार दलील दे रहे हैं कि यह घोटाला आज का नहीं कांग्रेस के जमाने का है. बात ठीक है कि किसी भी बड़े घोटाले की पृष्ठभूमि एकदम से नहीं बन जाती, लेकिन आरोपी एनडीए शासनकाल में ही फरार हुआ है और उस पर सरकार की जवाबदेही बनती है.
क्या पीएम के करीबी हैं नीरव मोदी,
इस घोटाले में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि मुख्य आरोपी नीरव मोदी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का करीबी बताया जा रहा है. हो सकता है नीरव मोदी राहुल गांधी और कांग्रेस के नेताओं का भी करीबी हो क्योंकि बिजनेस और इंडस्ट्री चलाने वाले लोग हर पार्टी के लोगों से संपर्क रखते हैं. यहां तक कि वे पार्टियों के नेताओं को चंदा भी देते हैं. लेकिन जहां तक नीरव मोदी और पीएम मोदी की निकटता का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि जब प्रधानमंत्री मोदी बर्लिन प्रवास पर थे, तो नीरव मोदी की कंपनी की ब्रांड एम्बेस्डर प्रियंका चोपड़ा उनसे मिलने गईं थीं.
चर्चा यह भी है कि उस मुलाकात को नीरव मोदी ने ही आयोजित करवाया था. हालांकि उन दिनों उस मुलाकात की चर्चा मीडिया में महज प्रियंका चोपड़ा के डिजाइन वाले कपड़े तक ही सीमित रह गई, लेकिन अब जबकि नीरव मोदी का मामला प्रकाश में आया है, तो उस चर्चा के पंख लगने लगे हैं.
एक्शन में क्यों नहीं हैं पीएम? जांच पर कितना सही बोल रही है सरकार?
इस घोटाले पर सरकार बचने की सबसे बड़ी दलील यही दे रही है कि मामला सामने आते ही उन्होंने जांच करवा ली. लेकिन सच यह भी है कि पीएमओ कोो इसकी घालमेल की सूचना 2015 से थी. कई बार विभागीय रिपोर्ट प्रधानमंत्री कार्यालय को भेजी गई, लेकिन पीएम इस मामले में कुछ भी करने को तैयार नहीं हुए. हर मामले पर एक्टिव रहने वाले पीएम इस मामले पर जरा भी एक्शन में नहीं दिखाई दिए.
बहुत कुछ पहले से पता था पीएमओ को?
इधर सन् 2016 में नीरव मोदी और उसके बिजनेस पार्टनर मेहुल चोकसी के बारे में बेंगलूरु के उद्यमी हरि प्रसाद ने पीएमओ को सारी जानकारी दी थी, लेकिन तब भी पीएमओ की ओर से कुछ एक्शन नहीं लिया गया. इससे पहले भी कुछ मामले की जानकारी प्रधानमंत्री कार्यालय को दी गई, लेकिन मेहुल और नीरव पर कोई कार्रवाई नहीं हुई. क्या कार्रवाई नहीं करने का मतबल यही माना जाए कि दोनों प्रधानमंत्री कार्यालय के बेहद निकट नहीं थे?
वाकई क्या ये खेल पहले से चल रहा था
सत्ता पक्ष के लोग आरोप लगाते हैं कि यह घोटाला उनकी सरकार के पहले का है. हो सकता है कि पहले का हो, लेकिन अब तो साफ हो गया है कि पहले जब कभी भी उसने बैंक से पैसे लिए वह दबाव और डर के कारण पूरे के पूरे पैसे लौटाए, लेकिन जैसे ही सरकार बदली उसने बड़े पैमाने पर बैंक का पैसा लिया और बैंक को ठेंगा दिखाने लगा. इससे यह साबित होता है कि खेल जरूर पहले से चल रहा था, लेकिन उस खेल में खिलाड़ी को डर था और पैसा अवैध रूप से निकालने के बाद भी वह बैंक का पैसा चुकता कर रहा था, लेकिन जैसे ही सरकार बदली घोटालेबाज बेखौफ हो गया और बैंक का पैसा लेकर फरार हो गया.
फिर इस सरकार ने क्या किया
दूसरी बात यह है कि पहले से घोटाला जरूर हो रहा था. पिछली सरकार तो घोटालेबाजों की ही थी और उसी अनियमित्तओं के कारण लोगों में असंतोष बढ़ा. लेकिन नरेन्द्र मोदी की सरकार इन्हीं शर्तों पर लाई गई कि मोदी के नेतृत्व में जनता के पैसे का बंदरबांट नहीं होगा, लेकिन आंकड़े बता रहे हैं कि पिछली सरकार की तुलना में नीरव ने कई गुणा ज्यादा बैंक का पैसा अनाधिकृत और अवैध रूप से निकाला. यही नहीं सबसे बड़ी बात यह है कि अपराधी नरेन्द्र मोदी जैसे प्रभावशाली चैकीदार के रहते भाग गया.
सरकार सक्रिय है ये अच्छी बात है, लेकिन?
इस पूरे मामले में मोदी सरकार जवाबदेहियों से भाग नहीं सकती है. हाल ही में एक जनहित याचिका के जरिये इस पूरे मामले की विशेष जांच दल से जांच करवाने की मांग गई, लेकिन उस जनहित याचिका पर सरकार के अधिवक्ता के.के वेणुगोपाल ने कहा है कि सरकार इस मामले में मुकम्मल तरीके से जांच करा रही है और एसआईटी की कोई जरूरत नहीं है.
सवाल यह है कि अगर सरकार इस मामले में ईमानदार है तो उसे एसआईटी के गठन पर आपत्ति क्यों है? यदि यह मामला भी कांग्रेस की देन है तो देश की जनता का भ्रम भी टूटना चाहिए और साबित होना चाहिए कि कांग्रेस कितनी भ्रष्ट है. जब दामन साफ है तो सरकार को पीछे हटने की कोई जरूरत नहीं है. अच्छा यही होता कि सरकार इसे कोई स्वतंत्र एजेंसी से जांच करवाती.
हालांकि नीरव मोदी के भाग जाने के बाद सरकार सक्रिय है. कई स्थानों पर छापे मारे गए हैं. बताया जा रहा है कि नीरव के सारे कारोबार को सीज करके बैंक का पैसा वसूला जाएगा. पांच हजार कारोड़ के हीरे जवाहरात जप्त करने की बात भी बताई जा रही है. यह तेजी अच्छी है, लेकिन आखिर देश की जनता को समझ आना चाहिए कि इस पूरे मामले का असली गुनहगार कौन है.
पीएम लेंगे कुछ एक्शन
इस पूरे मामले में यह बात सामने आई है कि हमारे पीएम को हल्के लोगों से मिलनेे से बचना चाहिए. देश का विश्वास अभी भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ऊपर है. उसे बचाए रखने की जरूरत है अन्यथा देश के उपर बड़ा संकट आने वाला है. इसकी समझ सरकार समर्थक संगठनों को भी होनी चाहिए. निःसंदेह रूप से इस घोटाले ने प्रधानमंत्री के धवल और उद्दात व्यक्तित्व पर सवाल खड़ा किया है. यदि इसका जवाब जनता को नहीं मिलता है तो अहित केवल पार्टी संगठन का ही नहीं, देश का भी होगा.
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