पितृपक्ष की शुरुआत अनंत चतुर्दशी के बाद मानी जाती है. भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि से इसकी शुरुआत होती है. भगवान गणेश के विसर्जन के पश्चात् हिंदू धर्म में अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धाभाव प्रदर्शित करने और उन्हें याद कर उनकी स्मृतियों के प्रति कृतज्ञता के लिए इस पर्व की परंपरा है.
पितृपक्ष का समय सालभर में अपने घर के बड़े बुजुर्गों, वे लोग जिनकी अपघाती मृत्यु हुई है अथवा असमय काल कलवित हुआ है उनकी आत्मा की शांति के लिए आयोजित किया जाता है.
पितृ पक्ष में सारे ही शुभ कार्य वर्जित होते हैं और इन दिनों में विधि-विधान से अपने पितरों के लिए तर्पण का कार्य किया जाता है. 16 दिनों के इस पर्व में अपने परिवार पुरखों के लिए दान-दक्षिणा और ब्राह्मणों, गरीबों, भूखे लोगों को भोजन कराने का महत्व है.
श्राद्ध पक्ष में जरूर करें ये काम
श्राद्ध पक्ष में बहुत ही नियम व विधान से कार्य किया जाता है. ऐसे में हमारे लिए जरूरी हो जाता है कि पितृपक्ष के महत्वपूर्ण नियमों को जानें और वे कार्य करने से बचें जिसका परिणाम भविष्य में हमारे लिए हितकारी ना हो.
श्राद्ध पक्ष में दान का बहुत महत्व है. ऐसे में 16 दिनों में खब दान करना चाहिए और यह दान अपने पुरखों के निमित्त किया जाना चाहिए. बता दें कि शास्त्रों में पांच प्रकार के दान बताए गए हैं इनमें- गौ दान, अन्न दान, वस्त्र दान, औषधि दान और स्वर्ण का दान.
- गौ दान यानी की किसी गौशाला अथवा ब्राह्मण को गाय का दान करना. ध्यान रखें गाय बू़ढ़ी और बीमार ना हो अन्यथा दोष लगता है. अन्न का दान करें-
- पितृपक्ष में किसी मंदिर, अथवा ब्राह्मण अथवा किसी गरीब भूखे व्यक्ति को अन्न के दान का बड़ा महत्व है. मंदिर में आप कच्ची रसोई का दान कर सकते हैं.
- किसी को भोजन कराने का भी बहुत महत्व है. ध्यान रखें ब्राह्मण को भोजन पंचमी, अष्टमी, नवमी, चतुर्दशी, अमावस्या और पूर्णिमा की तिथियों को ही भोजन कराएं. हालांकि आप चाहें तो रोजाना भोजन करा सकते हैं.
- वस्त्र का दान बहुत महत्व रखता है. अपने पुरखे की उम्र, लिंग अथवा रुचि के अनुसार वस्त्र का दान सीधे पुरखों को लगता है. यह महत्वूर्ण है और इसे 16 दिन में तिथि के अनुसार कर सकते हैं.
- औषधि और स्वर्ण का दान इन दिनों में विशेष फलदायी होता है. यह बीमार, व अतृप्त पुरखों के निमित्त होता है.
- भागवत् महापुराण को नियमित रूप से पढ़ें. यदि कथा का पढ़ना संभव ना हो तो आजकल कई दूसरे माध्यमों पर यह आसानी से उपलब्ध है, आप वहां सुन सकते हैं.इसका बड़ा प्रभाव है.
- पितृ पक्ष मेंपीपल के पेड़ में कच्चे दूध में पानी और शक्कर मिलाकर उसे चढ़ाएं. पुराणों के अनुसार पीपल में पितृों का निवास माना जाता है. इसका विशेष महत्व है.
- इसके अलावा आप पीपल के वृक्ष में रोजाना शाम को आटे का दीपक लगाएं. दीपक सरसों के तेल का होना चाहिए.
- श्राद्ध पक्ष के सोलह ही दिन गाय को पहली ताजी रोटी दें और उसमें गुड़ और घी मिलाएं. यदि आप यह बारह महीने भी गाय को रोटी देते हैं तो यह कर्म विशेष फलदायी है.
- इन दिनों में पितरों के नाम पर किसी वेदपाठी एक ब्राह्मण को रोजाना भोजन कराएं और उसे दान-दक्षिणा दें.
- गाय का दान, गायों को चारा अथवा हरा चारा देना पितरों के पुण्य के रूप में दर्ज होता है. कुत्तों अथवा कौओं को भी खाना खिलाएं, इससे उनकी आत्मा को शांति मिलती है.
- पितृ दोष के निवारण के लिए आप इन दिनों में भगवान शिव का अभिषेक और महामृत्युंजय का पाठ करें.
- किसी वेदपाठी ब्राह्मण से अथवा स्वयं पितृ कवच का पाठ प्रतिदिन नियमित रूप से करें.
- श्राद्ध पक्ष के इन 16 दिनों में सबसे बड़ा कार्य होता है पितरों के नाम से वृक्षों को लगाना.
पितृ पक्ष में कौन से कार्य नहीं करने चाहिए?
- पितृ पक्ष में घर में किसी तरह की कलह ना करें, झगड़ा, मारपीट और एक दूसरे के अपमान से बचें. बुजुर्ग, बच्चों और विशेष तौर पर स्त्री का अपमान ना करें.
- किसी भी तरह का शुभ कार्य ना करें. किसी तरह की खरीदारी, नई योजना अथवा अनुष्ठान, देवस्थान की यात्रा, शादी-उद्घाटन व नये कार्य की शुरुआत ना करें.
- घर में नॉनवेज ना बनाएं ना ही घर परिवार का कोई सदस्य किसी आयोजन में जाकर नॉनवेज का सेवन करे.
शराब, सिगरेट और किसी भी तरह के नशे से बचें. - झूठ बोलना, वेश्यागमन, अथवा वैवाहिक संबंधों से परहेज करें. शास्त्रों के अनुसार इन दिनों मैथुन वर्जित है क्योंकि कहा जाता है इन दिनों पितृ पृथ्वी पर आते हैं.
- धर्मशास्त्रों का अपमान ना हों, यदि आपकी श्रद्धा पितृपक्ष में ना हों तो ठीक है, लेकिन जिनकी है उनका अपमान ना करें.
- ब्राह्मणों को भोजन करा सकें तो श्रेयस्कर है नहीं करा सकते हैं तो कोई बात नहीं लेकिन इन दिनो में ब्राह्मणों का अपमान भूलकर ना करें क्योंकि शास्त्रों में कहा गया है कि श्राद्ध पक्ष में मन, वचन और शरीर से ब्राह्मणों का अपमान करने से उसका दुष्परिणाम सौ पीढ़ियों तक भुगतना होता है.
- शास्त्रों के अनुसार घर में खान-पान का विशेष ध्यान रखें. इन दिनों में मसूर की दाल, धतूरा, असली, कुलथी और मदार जैसी दालों का सेवन नहीं करना चाहिए.