साल 2023 के मई महीने में एक विशेष दिन है जिसे नरसिंह चतुर्दशी के रूप में जाना जाता है. ये दिन इसलिए खास है क्योंकि इस दिन भगवान विष्णु ने अपने भक्त प्रह्लाद को बचाने के लिए नरसिंह अवतार लिया था.
नरसिंह चतुर्दशी का विशेष महत्व है. हिन्दू शास्त्रों में भगवान नरसिंह को बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना गया है. धार्मिक ग्रंथों में भी भगवान नरसिंह की महानता का वर्णन विस्तार स किया गया है. भगवान नरसिंह आपके दुर्भाग्य को समाप्त करके आपको विजय का आशीर्वाद देते हैं.
नरसिंह चतुर्दशी कब है? (Narsingh Chaturdashi Kab hai)
हिन्दू कैलेंडर के हिसाब से वैसाख माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को नरसिंह चतुर्दशी के रूप में मनाया जाता है. साल 2023 में 4 मई 2023, बुधवार को नरसिंह चतुर्दशी मनाई जाएगी.
नरसिंह चतुर्दशी की कथा (Narsingh Chaturdashi katha)
नरसिंह चतुर्दशी की कथा के अनुसार ऋषि कश्यप और पत्नी दिति के दो पुत्र थे. एक का नाम हिरण्यकश्यप और दूसरे का नाम हिरण्याक्ष था. दोनों ही पुत्रों ने अपने तप से ब्रह्माजी को प्रसन्न किया था, इसके बदले में ब्रह्माजी ने उन्हें अजेय होने का वरदान दिया था.
हिरण्यकश्यप आने भाई हिरण्याक्ष से भी ज्यादा शक्तिशाली हो गया था. उसने अपनी शक्तियों से तीनों लोकों को जीतना शुरू कर दिया. उसने स्वर्ग पर विजय के लिए अपने भाई हिरण्याक्ष को भेजा.
स्वर्ग में हिरण्याक्ष का युद्ध भगवान विष्णु से हुआ और भगवान विष्णु ने वराह अवतार लेकर हिरण्याक्ष को परास्त किया.
हिरण्यकश्यप ने अपने तप के बल पर ब्रह्माजी को प्रसन्न करके वरदान लिया कि उसे न को पशु मार पाए, न वह घर के अंदर मरे और न ही घर के बाहर, न उसे दिन में मारा जाए और न ही रात में. ब्रह्माजी ने प्रसन्न होकर उसे ये वरदान दे भी दिया.
देवता इसी वरदान के कारण हिरण्यकश्यप को हराने में असमर्थ थे. हिरण्यकश्यप का एक पुत्र प्रहलाद था जो भगवान विष्णु का परम भक्त था. प्रहलाद की भक्ति से हिरण्यकश्यप काफी क्रोधित होता था.
हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र को मारने के कई प्रयास किए लेकिन भगवान विष्णु उसे बचा लेते. हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका मदद से भी प्रहलाद को मारने की कोशिश की लेकिन होलिका स्वयं जल गई पर प्रहलाद पर कोई आंच न आई.
जब हिरण्यकश्यप के सभी योजनाएं विफल हो गई तो उसने गुस्से में प्रहलाद से कहा कि तुम्हारे भगवान कहाँ है, यदि वो है तो दिखाई क्यों नहीं देते. तब प्रहलाद ने कहा कि भगवान विष्णु तो हर जगह और चीज में विधमान है. यहाँ तक कि वो इस महल के स्तंभों में भी हैं.
यह सुनकर हिरण्यकश्यप ने महल के स्तम्भ पर प्रहार किया तब एक स्तम्भ से भगवान विष्णु नरसिंह का अवतार लेकर प्रकट हुए. और फिर भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार में हिरण्यकश्यप का वध किया.
ये दिन वैसाख माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी थी, इसी दिन को नरसिंह चतुर्दशी के रूप में मनाया जाता है.
नरसिंह चतुर्दशी पूजा विधि (Narsingh Chaturdashi Puja Vidhi)
नरसिंह चतुर्दशी के दिन यदि आप भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार की पूजा करना चाहते हैं तो नीचे दिए तरीके से कर सकते हैं.
– इस दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में सोकर उठें और पूरे घर की साफ-सफाई करें.
– घर में गंगाजल और गौमूत्र का छिड़काव करें.
– नृसिंह देवदेवेश तव जन्मदिने शुभे, उपवासं करिष्यामि सर्वभोगविवर्जितः
– दिए गए मंत्र का जाप करते हुए तिल, गोमूत्र, मृत्तिका और आंवला मल कर पृथक-पृथक चार बार स्नान करें।
– स्नान करने के बाद ‘नृसिंह देवदेवेश तव जन्मदिने शुभे, उपवासं करिष्यामि सर्वभोगविवर्जितः॥’ मंत्र बोलें.
– इसके बाद शुद्ध जल से स्नान करना चाहिए.
– पूजा के स्थान को गोबर से लीपकर तथा कलश में तांबा इत्यादि डालकर उसमें अष्टदल कमल बनाना चाहिए.
– अष्टदल कमल पर सिंह, भगवान नृसिंह तथा लक्ष्मीजी की मूर्ति स्थापित करना चाहिए.
– तत्पश्चात वेदमंत्रों से इनकी प्राण-प्रतिष्ठा कर षोडशोपचार से पूजन करना चाहिए.
– इस दिन व्यक्ति को दिनभर उपवास रखना चाहिए और ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए. – अपने सामर्थ्य के अनुसार भू, गौ, तिल, स्वर्ण तथा वस्त्रादि का दान देना चाहिए.
– क्रोध, लोभ, मोह, झूठ, कुसंग तथा पापाचार का त्याग करना चाहिए.
– रात्रि में गायन, वादन, पुराण श्रवण या हरि संकीर्तन से जागरण करें.
– दूसरे दिन फिर पूजन कर ब्राह्मणों को भोजन कराएं.
इस तरह आप नरसिंह चतुर्दशी का व्रत करके भगवान का पूजन कर सकते हैं.
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