मिस्र के पिरामिडों में ‘तूतन खामेन का मकबरा‘ एक कुख्यात अभिशप्त स्थान है. इस मकबरे में जुड़ी एक बोर्ड पर अंकित इबारत आज के सैंकड़ों साइंटिस्ट के रिसर्च का विषय बनी हुई है. इस मकबरे में प्रवेश करने वाले कितने ही लोग अब तक अपने जीवन से हाथ धो चुके हैं.
क्या है इस मकबरे का रहस्य
17 फरवरी 1923 को लार्ड कैनीखान और उनके साथी हावर्ड कॉर्टर ने जानकारी प्राप्त करने के लिए राजा तूतन के मकबरे में प्रवेश किया था, लेकिन वह पिरामिड रूपी उस मकबरे से जिंदा लौटकर नहीं आ पाए थे. तब से आज तक 35 से ज्यादा संख्या में सीनियर साइंटिस्ट और आर्कियोलॉजिस्ट (पुरातत्ववेत्ताओं) ने अपने अन्य एक्सपर्ट साथियों के साथ इस मकबरे में दर्दनाक मौत को गले लगाया है.
दरअसल, मिस्र के पिरामिड विज्ञान और आधुनिकता के युग में भी आम जनता के लिए ही नहीं बल्कि वैज्ञानिकों, अनुसंधानकर्ताओं और खोजी पत्रकारों के लिए भी रहस्यमय बने हुए हैं. मिस्र के इन पिरामिडों को लेकर जन सामान्य में तो अनेक प्रकार की मान्यताएं और भ्रान्तियां प्रचलित हैं.
ये रहस्यमय धारणाएं हैं मकबरे के बारे में
एक आम धारणा तो उनमें यह भी फैली हुई है कि प्राचीन मिस्र के निवासियों ने अपने प्रियजनों के मृत शरीर को अनंतकाल तक सुरक्षित रखने के लिए अपने तत्कालीन ज्ञान-विज्ञान और अनुसंधान के आधार पर इन विशेष रचनाओं (पिरामिडों) का निर्माण करवाया था.
कुछ लोगों का ऐसा भी मानना है कि प्रियजनों के मृत शरीरों को सुरक्षित रखने के पीछे उनकी यह धारणा थी कि प्रलय की अवधि के बाद एक दिन उनके प्रियजन जी उठेंगे लेकिन अधिकांश लोग इस तर्क से बिल्कुल सहमत नहीं हैं.
ये भी हैं पहेलियां जो नहीं सुलझी
आज भी यह मूल प्रश्न अबूझ पहेली ही बनी हुई है कि सैंकड़ों मील के क्षेत्रों में फैले इन विशाल पिरामिड भवनों को बनाने की उन्हें क्यों जरूरत पड़ी? इस संबंध में इतिहासकार भी पूरी तरह चुप्पी साधे हुए हैं. शताब्दियों पूर्व जब इन पिरामिडों के लिए भवनों का निर्माण किया गया था, उनकी उपयोगिता चाहे कुछ भी रही हो पर अब तो ये भवन भुतहा जगह मात्रा बनकर ही रह गए हैं.
दरअसल, इन इमारतों के विषय में उठे कौतुहल को शान्त करने के लिए 19वीं सदी के प्रारंभ से ही सैकड़ों वैज्ञानिक, अनुसंधान शास्त्र, पुरातत्वविज्ञ, और खोजी पत्रकार जुटे हुए हैं. इससे इन पिरामिडों के विषय में एक और रहस्यमय परिचर्चा चल पड़ी है कि इन पिरामिडों में मृतात्माओं का वास है और जो भी जिज्ञासु व्यक्ति इन पिरामिड भवनों में ठहरने, उनकी जानकारी प्राप्त करने या उनके रहस्य को सुलझाने का प्रयास करता है, ये अतृप्त आत्माएं उन सभी लोगों का विनाश कर डालती हैं.
कुछ ऐसी भी हैं धारणाएं
ऐसा भी कहा जाता है कि सैंकड़ों लोगों, जिनमें कितने ही वैज्ञानिक, खोजी पत्रकार और इतिहास सम्मिलित हैं, उन्होंने स्वयं अपनी आंखों से इन भवनों में भूत-प्रेतों को विचरण करते देखा है. एक विश्वविख्यात खोजी पत्रकार फिलिप बैडन वर्ग ने ‘द कर्स ऑफ फराओज‘नामक अपनी बहुचर्चित पुस्तक में ऐसी अनेक घटनाओं का वर्णन किया है जो आधुनिक वैज्ञानिकों की सोच से बहुत दूर या फिर कल्पनालोक की बात लगती हैं. दरअसल, मि. फिलिप ने अपने जीवन का एक बड़ा हिस्सा इन पिरामिड भवनों के बीच, मुख्यतः फराओ के मकबरे और ममियों (विशेष तकनीक से सुरक्षित रखे शव) के मध्य उनके अध्ययन में व्यतीत किया था.
बाद में ऐसा भी कहा गया
वर्ष 1962 में काहिरा विश्वविद्यालय, मिस्र के एक प्रमुख अनुसंधानकर्ता और प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. इज्जेहीन ताहा, जो भूत-प्रेत, आत्माओं, वरदान-अभिशाप जैसी बातों पर तनिक भी विश्वास नहीं करते थे के साथ एक ऐसी विचित्र घटना घटित हो गई थी, जिसका रहस्य आज तक ज्यों का त्यों अनसुलझा पड़ा हुआ है.
बताया जाता है कि डॉ. ताहा मिस्र के पिरामिडों के अनुसंधान कार्य में जुटे हुए थे. उनका मानना था कि पिरामिडों में पाई जाने वाली विशेष ‘काई’ के कारण ही उनमें प्रवेश करने वाले व्यक्तियों को श्वास और त्वचा संबंधी ऐसी भयानक बीमारियां लग जाती हैं जो अन्ततः उनके लिए जानलेवा सिद्ध होती हैं. उन्होंने पिरामिडों में प्रवेश के लिए ‘काई’ को समाप्त करने की एक विस्तृत कार्य योजना बनाई थी.
और फिर घटी एक अजीब घटना
डॉ. ताहा अपनी योजना को अन्तिम रूप देने में जुटे ही थे कि अचानक उनकी कार की एक अन्य कार से टक्कर हो जाने से उनकी काहिरा में ही मृत्यु हो गई. इस तरह उनका अनुसंधान कार्य भी धरा का धरा रह गया. उनकी मौत की जांच के लिए जब पुलिस ने कारों की टक्कर की जगह परिस्थितियों और दुर्घटनाओं के कारणों की जांच पड़ताल की तब पुलिस तंत्र भी यह देख कर दंग रह गया कि जिन परिस्थितियों में कारें टकराईं थीं, उनमें ऐसी भीषण दुर्घटना होने की संभावना बहुत ही कम रहती है. डॉ. ताहा की मौत को भी अभिशप्त पिरामिडों का प्रतिशोध मानकर उनकी जांच फाइल भी बंद कर दी गई.
कई और किताबों में दर्ज है रहस्य
बैंडनवर्ग की पुस्तक के अनुसार साल 1929 तक तूतेन खामेन के पिरामिड को खोलकर और उसमें अंदर जाकर जानकारी प्राप्त करने वाले 22 शोधकर्ता अकारण ही मृत्यु की गोद में समा चुके थे, जबकि अन्य अनेक शोधकर्ता तरह-तरह की अज्ञात आधि-व्याधियों से पीड़ित हो गए थे. उनमें अधिकांश तो शेष जीवन अर्द्धविक्षिप्त जैसी हालत गुजारने पर मजबूर थे. इन शोधकर्ताओं की मौत और रोग के कारणों की जांच करने वाले वैज्ञानिकों का कहना है कि इतना सब कुछ मात्रा एक काई से ही होना कतई संभव नहीं हो सकता.
बैंडनवर्ग के अनुसार तूतन खामेन अपने समय का एक क्रूर और दुराचारी शासक था. वह रोज एक अविवाहित कन्या के साथ मौजमस्ती करता था. रात भर मौजमस्ती के बाद प्रातः होते ही वह उस लड़की के पेट को फाड़ कर मार डाला करता था. उसका यह क्रम कई वर्षों तक चलता रहा था. सम्पूर्ण जनता उसकी इस प्रवृत्ति से भयभीत थी.
एक दिन ‘नूर फातिमा‘ नामक लड़की की बारी आयी. वह अपने अधोवस्त्रों के नीचे खंजर छिपाकर ले गई थी. जैसे ही तूतन ने उसके वस्त्रों को खोलना प्रारंभ किया, फातिमा ने उसके पेट में खंजर घोंपकर उसका अंत कर दिया. कहा जाता है कि तूतन के खास सेवकों ने उसके मकबरे का निर्माण कराया था.
अध्ययनों से पता चला है कि आज भी नित्य एक-एक लड़की उसके मकबरे के पास पहुंचती दिखती है और पूर्ण संतुष्ट होकर लौटती है. यंत्रावत चलती हुई लड़कियां किस प्रभाव से वहां पहुंचती है इसकी जानकारी आज तक नहीं हो पायी है क्योंकि शोधकर्ता बचते ही नहीं हैं.
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