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मध्य प्रदेश में इस साल 2018 के अंत तक होने वाले विधानसभा चुनाव को देखते हुए कांग्रेस और भाजपा दोनों प्रमुख पार्टियों के अलावा “जय आदिवासी युवा शक्ति” जैसे संगठन भी मैदान में हैं.

जय आदिवासी युवा शक्ति का नेतृत्व युवाओं के हाथों में है और विचारधारा के मामले में अन्य संगठनों से अधिक मजबूत है. वहीं कांग्रेस को सत्ता से बेदखल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली गोंडवाना गणतंत्र पार्टी भी अपनी ज़मीन तलाश रही है.

कैसे हुई जयस की शुरुआत 

जयस की सक्रियता दोनों पार्टियों को बैचैन कर रही है. डेढ़ साल पहले आदिवासियों के अधिकारों की मांग के साथ शुरू हुआ यह संगठन आज “अबकी बार आदिवासी सरकार” के नारे के साथ 80 सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर  रहा है.

जयस द्वारा निकाली जा रही “आदिवासी अधिकार संरक्षण यात्रा” में उमड़ रही भीड़ इस बात का इशारा है कि बहुत ही कम समय में यह संगठन प्रदेश के आदिवासी सामाज में अपनी छाप छोड़ने में कामयाब रहा है.

जयस ने लम्बे समय से मध्य प्रदेश की राजनीति में अपना वजूद तलाश रहे आदिवासी समाज को स्वर देने का काम किया है. आज इस चुनौती को कांग्रेस और भाजपा दोनों ही पार्टियां महसूस कर पा रही हैं.

फोटो साभार : The Print
फोटो साभार : Social Media.

 

जयस के राष्ट्रीय संरक्षक डॉ. हीरालाल अलावा कह रहे हैं कि “आज आदिवासियों को वोट बैंक समझने वालों के सपने में भी अब हम दिखने लगे हैं”. आदिवासी वोटरों को साधने के लिए आज दोनों ही पार्टियों को नए सिरे से रणनीति बनानी पड़ रही है.

शिवराज अपने पुराने हथियार “घोषणाओं” को आजमा रहे हैं तो वहीँ कांग्रेस आदिवासी इलाकों में अपनी सक्रियता और गठबंधन के सहारे अपने पुराने वोटबैंक को वापस हासिल करना करना चाहती है.

जयस की सक्रियता से कांग्रेस, भाजपा बैचेन 

जय आदिवासी युवा शक्ति संगठन 80 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहा है. मध्य प्रदेश में 21 प्रतिशत से अधिक आदिवासियों की आबादी है और विधानसभा की 230 में से 47 सीटें आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित हैं. इसके अलावा करीब 30 सीटें ऐसी आदिवासी बाहुल्य हैं. 

मध्य प्रदेश में आदिवासी के परंपरागत वोटर माने जाते थे. लेकिन 2003 के बाद में स्थिति में बदली और आदिवासियों के लिए आरक्षित 41 में से कांग्रेस महज 2 सीटें ही जीत स्की। वहीं भाजपा ने 34 सीटों पर कब्ज़ा जमा लिया था.  

छत्रसंघ चुनाव में जयस की दमदार जीत

पिछले साल छात्रसंघ चुनाव में जयस ने एबीवीपी और एनएसयूआई को पीछे छोड़ते हुए झाबुआ, बड़वानी और अलीराजपुर ज़िलों में 162 सीटों पर जीत दर्ज की थी. आज पश्चिमी मध्यप्रदेश के आदिवासी बहुल जिलों अलीराजपुर, धार, बड़वानी और रतलाम में “जयस” की प्रभावी उपस्थिति लगातार है.

सरकार से “जयस” की प्रमुख मांगें

• 5वीं अनुसूची के सभी प्रावधानों को पूरी तरह से लागू किया जाए.
• वन अधिकार कानून 2006 के सभी प्रावधानों को सख्ती से लागू करें.
• जंगल में रहने वाले आदिवासियों को जमीन का स्थयी पट्टा दिया जाए.
• ट्राइबल सब प्लान के पैसे अनुसूचित क्षेत्रों की समस्याओं को दूर करने में खर्च हों.

सरकारें नहीं देती आदिवासियों पर ध्यान

पिछले चार सालों के दौरान मध्य प्रदेश सरकार आदिवासियों के कल्याण के लिए आवंटित बजट में से 4800 करोड़ रुपए खर्च ही नहीं कर पायी है.

फोटो : Facebook Page जय आदिवासी युवा शक्ति संगठन
फोटो : Facebook Page जय आदिवासी युवा शक्ति संगठन

 

2015 में कैग की रिपोर्ट में भी आदिवासी बाहुल्य राज्यों की योजनाओं के क्रियान्वयन को लेकर सवाल उठाए गए थे. ऐसे ही कारणों ने ‘जयस’ जैसे संगठनों के लिए जमीन तैयार करने का काम किया है. आने वाले समय में भी अगर वे अपने इस गति को बनाए रखने में कामयाब रहे तो मध्यप्रदेश की राजनीति में बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है

शिवराज का आदिवासियों को लुभाने का प्रयास

शिवराज सरकार ने 9 अगस्त को आयोजित होने वाले आदिवासी दिवस को आदिवासी सम्मान दिवस के रूप में मनाया. जिसके तहत आदिवासी क्षेत्रों में व्यापक स्तर पर कार्यक्रम आयोजित कराए गए थे.

इस दौरान मुख्यमंत्री ने कई सारी घोषणाएं भी की हैं. जिसमें राज्य के कुल बजट का 24 फीसद आदिवासियों पर ही खर्च करने, आदिवासी समाज के लोगों पर छोटे-मोटे मामलों में दर्ज केस वापस लेने, जिन आदिवासियों का दिसंबर 2006 से पहले तक वनभूमि पर कब्जा है, उन्हें वनाधिकार पट्टा देने, जनजातीय अधिकार सभा का गठन करने जैसी घोषणाएं की हैं.

Shiv Raj Singh Chouhan Madhya Pradesh. Image Source: mp.bjp.org
Shiv Raj Singh Chouhan Madhya Pradesh. Image Source: mp.bjp.org

 

यही नहीं भाजपा द्वारा जयस के पदाधिकारियों को पार्टी में शामिल होने का ऑफर भी दिया जा चुुका है, जिसे  उन्होंने ठुकरा दिया गया है.

डॉ हीरालाल अलावा ने साफ़ तौर पर कहा है कि “भाजपा में किसी भी कीमत पर शामिल नहीं होंगे क्योंकि भाजपा धर्म-कर्म की राजनीति करती है, उनकी विचारधारा ही अलग है वे आदिवासियों को उजाडऩे में लगे हैं.”

एमपी में कांग्रेस भी मार रही हाथ-पैर

वहींं कांग्रेस भी आदिवासियों को अपने खेमे में वापस लाने के लिये रणनीति बना रही है इस बारे में कार्यकारी अध्यक्ष बाला बच्चन ने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ को एक रिपोर्ट सौंपी है, जिसमें पार्टी से बीते चुनावों से दूर हुए इस वोट बैंक को वापस लाने के बारे में सुझाव दिए हैं.

कांग्रेस का जोर आदिवासी सीटों पर वोटों के बंटवारे को रोकने की है इसके लिये वो छोटे-छोटे दलों के साथ मिलकर चुनाव लड़ना चाहती है. अगर कांग्रेस ‘गोंडवाना पार्टी’ और जयसको अपने साथ जोड़ने में कामयाब रही तो इससे भाजपा की मुश्किलें बढ़ सकती हैं.

हालांकि ये आसन भी नहीं है, कांग्रेस लम्बे समय से गोंडवाना गणतंत्र पार्टी से समझौता करना चाहती है, लेकिन अभी तक बात बन नहीं पायी है उलटे गोंडवाना गणतंत्र पार्टी ने शर्त रख दी है कि ‘उनका समर्थन कांग्रेस को तभी मिलेगा जब उसका सीएम कैंडिडेट आदिवासी हो.’

कुल मिलाकर कांग्रेस के लिए गठबंधन की राहें उतनी आसान भी नहीं है जितना वो मानकर चल रही थी. आने वाले समय में मध्यप्रदेश की राजनीति में आदिवासी चेतना का यह उभार नये समीकरणों को जन्म दे सकता है और इसका असर आगामी विधानसभा चुनाव पर पड़ना तय है.

बस देखना बाकी है कि भाजपा व कांग्रेस में से इसका फायदा कौन उठता है या फिर इन दोनों को पीछे छोड़ते हुए सूबे की सियासत में कोई तीसरी धारा उभरती है.

(इस लेख के विचार पूर्णत: निजी हैं. India-reviews.com यहां प्रकाशित होने वाले लेख और प्रकाशित व प्रसारित अन्य सामग्री से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है. आप भी अपने विचार या प्रतिक्रिया हमें editorindiareviews@gmail.com पर भेज सकते हैं.)

By जावेद अनीस

वरिष्ठ स्तंभकार

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