उज्जैन के ऐतिहासिक महाकाल मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट का जो फैसला आया,वह वाकई सराहनीय है. सुप्रीम कोर्ट ने बहुत सारे निर्देश जारी किए हैं. इन निर्देशों को ईमानदारी से पालन करके महाकाल मंदिर को बचाया जा सकता है. आम तौर पर धार्मिक मामलों में सरकार अदालत की दखल अंदाजी नहीं होनी चाहिए.इन मामलों में किसी तरह का कोई हस्तक्षेप अच्छा संकेत नहीं है, लेकिन आमजन में जागरूकता की कमी और स्थानीय प्रबंधकों के सही समय पर सतर्क ना होने के कारण अक्सर ऐसे दखल की जरूरत पड़ जाती है.
दरअसल, बदलते वक्त, बढ़ती आबादी और नए प्रकार की चीजों का इस्तेमाल बढ़ने से विभिन्न् स्थलों के प्राकृतिक स्वरूप मे परिवर्तन आया है. इसके मद्देनजर सावधानी ना बरती जाए तो हमारी बहुत सी ऐतिहासिक और धार्मिक महत्त्व की धरोहरों का क्षय हो सकता है.
ये हुआ महाकाल मंदिर में
ऐसी ही स्थिति उज्जैन स्थित महाकाल मंदिर में पैदा हुई. अतिशय चढ़ावों के कारण वहां स्थित ज्योतिर्लिंग का क्षरण होने लगा. चूंकि मंदिर प्रबंधन ने इसके प्रति सावधानी नहीं दिखाई, इसलिए एक नागरिक को सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा. तब सर्वोच्च न्यायालय ने भारतीय भूगर्भ सर्वेक्षण और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की टीमों से याचिका में कही गई बातों की जांच कराई. इनसे पुष्टि हुई कि महाकाल मंदिर की विश्व प्रसिद्ध आरती के समय जो भस्म चढ़ाई जाती है, उसका ज्योतिर्लिंग पर प्रतिकूल प्रभाव हुआ है. ज्योतिर्लिंग पर जो जल चढ़ाया जाता है, वह भी प्रदूषित और बैक्टीरिया-युक्त है. इसका खराब असर भी ज्योतिर्लिंग पर पड़ा है. वहां चढ़ाए जाने वाले दूध, दही, घी, शहद, शक्कर और फूलमाला भी क्षरण की वजह बन रहे हैं.
चूंकि मंदिर और आराधना का संबंध आस्था से है, इसलिए अक्सर ऐसी बातों पर लोग चुप रह जाते हैं, जिनको ये बात समझ में आती है, उन्हें भी आशंका रहती है कि उन्होंने कुछ कहा तो उससे लोगों की धार्मिक भावना आहत होगी लेकिन यह समझने की बात है कि ऐसी चुप्पी हानिकारक है. इस कारण हमारी बहुमूल्य विरासतों को नुकसान पहुंच रहा है.
स्वागत योग्य है सुप्रीम कोर्ट का फैसला
लिहाजा हर्ष का विषय है कि सुप्रीम कोर्ट ने महाकाल मंदिर में ज्योतिर्लिंग के संरक्षण की पहल की है. उसने मंदिर प्रशासन को आठ उपायों पर अमल करने को कहा है. इसके तहत अब ज्योतिर्लिंग का सिर्फ आरओ से स्वच्छ किए जल से ही अभिषेक किया जा सकेगा. जल की मात्रा भी 500 मिलीलीटर तक सीमित रहेगी. इसके अलावा कोर्ट ने सिर्फ प्राकृतिक फूलों के इस्तेमाल, गर्भगृह में सीमित मात्रा में श्रद्धालुओं के प्रवेश, श्रद्धालुओं के बाहर निकलने के लिए अलग द्वार बनाने जैसे निर्देश भी दिए हैं.
अब कोर्ट की भावना के अनुरूप इन उपायों पर प्रभावी ढंग से अमल किया जाना चाहिए. उचित यही होगा कि कोई भी इस पर विवाद खड़ा करने की कोशिश ना करे. पिछले दिनों दिवाली के मौके पर सर्वोच्च न्यायालय ने दिल्ली-एनसीआर में पटाखों की बिक्री पर रोक लगाई थी. तब कुछ हलकों से यह शिकायत की गई कि कोर्ट ने एक बड़े धार्मिक उत्सव में बेजा दखल दिया है जबकि कोर्ट की मंशा महज दिल्ली और आसपास के लोगों को वायु प्रदूषण से बचाने की थी.
जरूरी है ये कदम तभी बचेंगी विरासतें
महाकाल के मामले में भी उसका उद्देश्य महज इस विश्व-प्रसिद्ध तीर्थस्थल की पवित्रता बरकरार रखना है. इस महती कार्य में सबको सहभागी बनना चाहिए. महाकाल मंदिर का वैभव तभी बना रहेगा जबकि ये पवित्र ज्योतिर्लिंग अक्षुण्ण रहे. सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सभी को तहे दिल से स्वागत करना चाहिए. ऐतिहासिक धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहरों को बचाने हेतु जागरूकता की बेहद कमी है. धार्मिक आस्था के कारण अगर देश के ये तमाम धरोहर नष्ट हो जाते हैं तो ऐसी श्रद्धा और आस्था किस काम की.
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