कहते हैं यदि असली भारत देखना हो तो दक्षिण भारत घूमना चाहिए. यहां इतिहास, संस्कृति और परंपराओं के बीच आधुनिकता का एक अलग रंग दिखाई देता है.
यकीनन साउथ इंडिया है भी बहुत खूबसूरत. साउथ के चारों राज्यों केरल, कर्नाटक, विभाजित आंध्र प्रदेश (तेलंगाना) और तमिलनाडु सभी देखने लायक है. बात यदि तमिलनाडु की करें तो वैसे तो यहां बहुत कुछ देखने लायक है लेकिन यहां विशेष है महाबलिपुरम.
किसने बनाया महाबलिपुरम
महाबलिपुरम का निर्माण कार्य कई शासनकालों से जुड़ता है. पहला नाम आता है पल्लव वंश का. यह शासनकाल सन् 600 से 750 ई॰ के बीच माना जाता है. महेन्द्र वर्मा जैसे एक राजा ने नहीं बल्कि एक के बाद एक अनेक पल्लव राजाओं ने निर्माण कार्य में रुचि दिखाई और वर्षों तक निपुण कारीगरों इसे बेहतरीन कलाकृति को पूरा करने का प्रयत्न किया.
इसके अलावा इसे बनाने की कहानी पल्लव राजाओं के समय में आपसी विवाद का फैसला मल्लयुद्ध से करने से भी जुड़ती है. मल्लयुद्ध में विजय की लालसा पूरी करने के लिए पुरूष वर्ग शारीरिक शक्ति बनाए रखना चाहता था. इसके लिए अभ्यास के अलावा देवी-देवताओं की पूजा-अर्जना खूब होती थी.
विजयी होने पर राजा अपने उल्लास का आयोजन करता था. साथ ही अपनी उपलब्धि को चिरस्मरणीय रखने के लिए मंदिरों तथा गुफाओं का निर्माण भी करवाता था.
क्यों खास है महाबलिपुरम
राजधानी चेन्नई से तककरीबप 60 किमी. दक्षिण की ओर सागर तटपर स्थित है महाबलिपुरम. यह स्थान पुरातन मन्दिरों और स्थापत्य कला के वैभव के लिए भारत ही नहीं, पूरी दुनिया में मशहूर है. यह ऐतिहासिक तथ्य है कि पत्थरों को तराशकर कलात्मक मन्दिरों और गुफाओं के निर्माण का काम पल्लव राजवंश के राजाओं के समय हुआ था.
महाबलिपुरम का प्रचलित तमिल नाम मामल्लापुरम दूसरा रूप है जिसका अर्थ होता है, मल्लों या पहलवानों की नगरी. उस प्राचीन वैभव का गौरवपूर्ण अवशेष अब भी सागर तट के पास मौजूद है जिसकी स्थापत्य-कला को देखकर आज के इंजीनियर भी आश्चर्यचकित रह जाते हैं.
गजब की इंजीनियरिंग का नमूना
सैंकड़ों साल पहले जबकि कारीगरों के पास लोहे की छेनी और हथौड़े के अलावा और कोई विशेष औजार नहीं रहा होगा, कठिन ग्रेनाइट पत्थरों को तराश कर सजीव दिखने वाली मूर्तियां बना देना सचमुच आश्चर्यजनक है.
महाबलिपुरम के मन्दिरों के निर्माण की एक और विशेषता यह भी है कि पत्थर के टुकडे़ कहीं दूसरी जगह से नहीं लाए गए बल्कि वहीं पर स्थित पहाड़ियों और पत्थर के टीलों को तराश करके मूर्तियों और कई तरह की कलाकृतियों का निर्माण किया गया है.
यह मंदिर है सबसे ज्यादा खास
यहां का सबसे महत्त्वपूर्ण स्थल पल्लव राजाओं द्वारा निर्मित सागर तट मन्दिर है. बिलकुल समुद्र के किनारे जहां बंगाल की खाड़ी से उठकर गहरे नीले रंग की लहरें मंदिर की दीवारों से टकरा कर सफेद झाग उगलती रहती हैं.
एक छोटी पहाड़ी को तराश कर बनाया गया सैंकड़ों वर्ष पुराना मन्दिर दो भागों में विभाजित है. प्रथम में शेष शैय्याधारी विष्णु की प्रतिमा है जबकि दूसरे में शिवलिंग स्थापित हैं. हालांकि ग्रेनाइट की कठोर चट्टान सागरीय हवा और पानी के प्रहारों से घिसकर समाप्त हो रहा है.
मुख्य मंदिर की खासियत यहां का
मुख्य मन्दिर बहुत खास है. इसके गर्भगृह में स्थित शिवलिंग को किसी आक्रमणकारी ने तोड़ने की कोशिश की थी, लेकिन उसका ऊपरी भाग ही ध्वस्त हो सका, अवशेष अब तक वहीं स्थित हैं. मूर्ति भंग होने की वजह से अब इस मन्दिर में पूजा-अर्चना नहीं होती है. फिर भी अपने गौरवपूर्ण अतीत के लिए यह वंदनीय है जहां प्रतिदिन दूर-दूर से हजारों यात्री इसके दर्शन के लिए आते रहते हैं.
कई दूसरी मूर्तियां भी हैं खास
महाबलिपुरम में सागर से कुछ दूर हटकर छोटी-सी पहाड़ी ढालकों को तराश कर उन पर अनेक देवी-देवताओं और जीव-जन्तुओं की मूर्तियां खोदी गयी हैं जिनमें अनेक पौराणिक कथाओं की झांकी कलात्मक रूप में उपस्थित की गयी है.
प्रस्तर भित्ति पर खुदाई से निर्मित यह शिल्प-खण्ड संसार में सबसे विशाल माना जाता है. इसमें कई देवी-देवताओं की मूर्तियों के साथ ही जीव-जन्तुओं और नर-नारियों की सुडौल मूर्तियां हैं.
एक ओर तपस्या में तीन पुरूष मूर्ति हैं, जिसके साथ महादेव शिव आशीर्वाद देते दिखाये गये हैं, दूसरी ओर जानवरों सहित गंगा के प्रवाह को प्रदर्शित किया गया है.
इस समय खास है महाबलिपुरम
वर्तमान स्थिति में महाबलिपुरम् का एक और अनोखा रूप निखरा है जिससे यह भारतीय और विदेशी सैलानियों के लिए आकर्षण का मुख्य केन्द्र बन गया है.
यह है उसका सुनहली बालुका राशि पर नीले सागर के लहरों के मचलते रहने का मनोरम दृश्य. ऐसी स्थिति में जब उगते सूर्य की अरूणाम किरणें सागर के जल से प्रतिबिंबित होकर मन्दिर शिखरों को चूमती हैं तो एक अलौकिक छटा प्रत्यक्ष हो जाती है.
पत्थरों से अलग दूर तक बिखरे रेत पर उठते-गिरते सागर लहरों में स्नान के सुख का अपना अलग महत्व है जिसके लिए अनेक पर्यटक वहां पहुंच कर सागर तट पर स्नान और निवास कर आनन्द लाभ लेते हैं.
कैसे जाएं महाबलिपुरम
महाबलिपुर जाने के लिए सबसे पहले आपको चेन्नई पहुंचना होगा. जहां से इस ऐतिहासिक पर्यटन स्थल की दूरी तकरीबन 60 किलोमीटर है. यहां जाने के लिए तमिलनाडु टूरिजम डिपार्टमेंट परिवहन और निवास आदि की सुविधा के लिए विशेष प्रबन्ध किया है.
चेन्नई और महाबलिपुरम् स्थित टूरिस्ट ऑफिसेस से ट्रैवल और ठहरने के बारे में जानकारी आसानी से मिल जाएगी. भारत की प्राचीन संस्कृति के लिए गौरव की भावना और सागर स्नान में रुचि रखने वालों को महाबलिपुरम् के दर्शन अवश्य करने चाहिए.