नवरात्रि का त्योहार हिन्दू धर्म में काफी धूम-धाम (why is navratri celebrated) से मनाया जाता है. ऐसा नहीं है कि इसे सिर्फ हिन्दू या भारतीय लोग ही मनाते हैं कई विदेशी लोग भी नवरात्रि को धूम-धाम से मनाते हैं. नवरात्रि का तीसरा दिन मां दुर्गा के तीसरा स्वरूप ‘मां चंद्रघंटा’ (maa chandraghanta) है. साधकों के लिए नवरात्रि का तीसरा दिन काफी खास होता है और इनकी साधना करने से उन्हें काफी लाभ होता है.
मां चंद्रघंटा (Maa chandraghanta)
मां दुर्गा का तीसरा स्वरूप मां चंद्रघंटा (maa chandraghanta) है. जैसा इनका नाम है वैसा ही इनका श्रंगार है. मां दुर्गा का तीसरा स्वरूप परम शांतिदायक और कल्याणकारी है. नवरात्रि में तीसरे दिन पूजा करने का अत्यधिक महत्व है और इस दिन पूजा करने से साधक का मन ‘मणिपुरचक्र’ में प्रवेश करता है. मां चंद्रघंटा की कृपा होने से साधकों को आलौकिक वस्तुयों के दर्शन होते हैं, दिव्य सुगंधियों का अनुभव होता है और तरह-तरह की दिव्य ध्वनियां सुनाई देती हैं.
मां चंद्रघंटा श्रंगार (Maa chandraghanta ornaments)
मां चंद्रघंटा के मस्तक पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र है इस कारण से इन्हें चंद्रघंटा देवी कहा जाता है. इनके दस हाथ है और दसों हाथों में खड्ग, शस्त्र और बाण हैं. इनका वाहन सिंह है. इनके शरीर का रंग स्वर्ण के समान चमकीला है. इनकी मुद्रा ऐसी है जैसे ये हमेशा युद्ध के लिए तैयार हो.
मां चंद्रघंटा श्लोक (Maa chandraghanta shlok)
पिण्डजप्रवरारुढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता |
प्रसादं तनुते मह्यं चन्द्रघण्टेति विश्रुता ||
मां चंद्रघंटा कथा (Maa chandraghanta katha in hindi)
एक बार देवताओं और असुरों के बीच लंबे समय तक युद्ध चला. देवताओं के स्वामी इन्द्र थे और असुरों के स्वामी महिषासुर थे. महिषासुर ने सभी असुरों को इकट्ठा कर स्वर्ग पर हमला (war between mahishasur and god) किया और देवताओं पर विजय हासिल की जिसके बाद उसने इंद्र का सिंहासन प्राप्त कर लिया और स्वर्गलोक पर राज करने लगा.
देवताओं की हार के कारण सभी देवता पृथ्वी पर विचरण करने लगे और फिर उन्हें लगा की इसका उपाय अब ब्रह्मा, विष्णु और महेश यानि शिव जी ही निकाल सकते हैं. सभी देवतागण इन तीनों देवताओं के पास गए और सारी घटना सुनाई और बताया की महिषासुर ने इन्द्र, चंद्र, वायु और सूर्य समेत अन्य देवताओं के अधिकार छीन लिए हैं और उन्हें बंदी बना लिया है. और महिषासुर खुद स्वर्ग का राजा बन गया है.
देवताओं द्वारा ये घटना सुनकर ब्रह्मा, विष्णु और भगवान शिव को भयंकर क्रोध आया. उस क्रोध के कारण तीनों के मुख से ऊर्जा उत्पन्न हुई और इनकी तीनों की ऊर्जा एक जगह पर मिल गई. इन तीनों की ऊर्जा से एक देवी का अवतरण हुआ. इस देवी को भगवान शिव ने त्रिशूल, भगवान विष्णु ने चक्र, और अन्य देवी-देवताओं ने अपने शस्त्र दिये.
इन्द्र देव ने अपना वज्र और एरावत हाथी से उतारकर एक घंटा दिया. सूर्य ने अपना तेज और एक तलवार दी और सवारी के लिए शेर दिया. इस तरह सभी शास्त्रों से सज्जित होने के कारण देवी के इस अवतार का नाम ‘मां चंद्रघंटा’ पड़ा. इन सभी शास्त्रों से सज्जित होने के बाद माँ चंद्रघंटा युद्ध के लिए तैयार थी.
जब वे युद्ध करने के लिए पहुंची तो महिषासुर उन्हें देख के समझ गया की अब उसका काल आ गया है. उसने अपनी सेना को मां चंद्रघंटा पर हमला करने के लिए कहा. सभी दैत्य और दानव उन पर हमला करने लगे. देवी ने एक झटके में ही दानवों का संहार कर दिया. इसके बाद इस युद्ध में महिषासुर की मौत हुई और कई सारे दानवों का खात्मा हुआ. इस तरह मां चंद्रघंटा ने स्वर्गलोक को मुक्त कराया और दानवों का खत्म किया.
मां चंद्रघंटा साधना फल (Maa chandraghanta worship benefit)
मां चंद्रघंटा की कृपा से साधकों के सारे पाप और बाधाएं नष्ट हो जाती है. इनकी आराधना भक्तों और साधकों के लिए फलदायी होती है. मां भक्तों के कष्ट का निवारण शीघ्र करती हैं. इनकी उपासना से भक्त पराक्रमी और निर्भय हो जाते हैं. मां चंद्रघंटा के घंटे की ध्वनि हमेशा अपने भक्तों की रक्षा भूत-प्रेतों से करती है.
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