ट्रैन में सफर करना किसे अच्छा नहीं लगता है. अगर बात कालका शिमला ट्रैन की हो मजा कुछ अलग हो जाता है. इसे खिलौना गाड़ी या टॉय ट्रेन भी कहा जाता है. जो यहां घूमने आने वाले यात्रियों की पहली पसंद मानी जाती है. इस रेलमार्ग की चैड़ाई मात्रा दो फुट छः इंच है. जिसकी वजह से इसका नाम गिनीज बुक में दर्ज है.
कालका शिमला रेलमार्ग का अपना ऐतिहासिक महत्त्व है. इसका निर्माण अंग्रेजों द्वारा किया गया था जिसका दिलचस्प पहलू यह है कि अंग्रेज इंजीनियरों की मदद एक अनपढ़ ग्रामीण भलखू नाम के व्यक्ति ने की थी. बताया जाता है कि वह आगे-आगे कुदाल से निशान लगाता गया, पीछे अंग्रेज इंजीनियर उसका अनुसरण करते गए. इस काम के लिए उसे साल 1858 में सम्मानित किया गया था. बाद में हिंदुस्तान-तिब्बत राजमार्ग के सर्वेक्षण में भी उसकी मदद ली गई.
रोमांचक है सफर-
कालका से शिमला तक का सफर 95 किलोमीटर लंबा है. यह यात्रा छः घंटे में पूरी होती है. यात्रा के दौरान यह ट्रैन 102 सुरंगों से गुजरती है. सबसे बड़ी सुरंग बड़ोग नामक स्थान पर है. इसकी लंबाई 3752 फुट है. इन सुरंगों से जब ट्रैन गुजरती है तो यात्री बाहर का नजारा देखकर रोमांच से भर जाते हैं. यही नहीं, रास्ते पड़ने 869 पुल पड़ते है जिनके बनावट बेहद कलात्मक हैं.
अनेक योजनाओं और सर्वेक्षणों के बाद इस रेलमार्ग का निर्माण हुआ था. इसे बनने में 10 साल का समय लगा. 9 नवंबर 1903 को पहली ’टाॅय ट्रैन‘ शिवालिक की वादियों में से गुजरते हुए, बल खाते हुए मस्त चाल से शिमला पहुंची थी. उस समय भारत के वायसराय पद पर लार्ड कर्जन थे जिन्होंने इस रेलमार्ग के निर्माण कार्य का पूरा जायजा लिया था.
सन 1932 में इस रेलमार्ग पर 15 यात्रियों को ले जाने वाली रेल कार की सेवा शुरू की गई. 1970 में इसकी क्षमता 21 यात्रियों तक बढ़ा दी गई. वर्तमान में कालका-शिमला रेलमार्ग पर पर्यटकों के मद्देनजर एक सुपरफास्ट रेल शिवालिक डीलक्स एक्सप्रेस शुरू की गई है. इसे शताब्दी एक्सप्रेस की तरह सुविधाओं से बनाया गया है. इस ट्रैन में बीस यात्रियों की क्षमतायुक्त पांच सुन्दर कोच लगाए गए हैं. यह ट्रैन शिमला पहुंचने में 5 घंटे का समय लेती है.