हर माह में दो एकादशी होती है. इस बार फरवरी माह की शुरुआत में ही एकादशी आ रही है जिसका नाम जया एकादशी है. (Jaya Ekadashi Vrat katha) जया एकादशी भगवान विष्णु की आराधना करने का दिन है. इस दिन सच्चे मन से व्रत करने से व्यक्ति को भूत-प्रेत, पिशाच जैसी योनियों में जाने का भय नहीं रहता है.
जया एकादशी कब है? (Jaya Ekadashi Kab hai?)
हिन्दू पंचांग के अनुसार माघ माह के शुक्ल पक्ष में आने वाली एकादशी को जया एकादशी कहा जाता है. ये एकादशी साल 2022 में 1 फरवरी, बुधवार को आ रही है. आप इस दिन जया एकादशी का व्रत कर सकते हैं.
जया एकादशी पूजा विधि (Jaya Ekadashi Puja Vidhi)
जया एकादशी पर भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए विधि-विधान से उनका पूजन किया जाना चाहिए.
1. जया एकादशी व्रत के लिए उपासक को व्रत से पूर्व दशमी के दिन एक ही समय सात्विक भोजन ग्रहण करना चाहिए। व्रती को संयमित और ब्रह्मचार्य का पालन करना चाहिए।
2. प्रात:काल स्नान के बाद व्रत का संकल्प लेकर धूप, दीप, फल और पंचामृत आदि अर्पित करके भगवान विष्णु के श्री कृष्ण अवतार की पूजा करनी चाहिए।
3. रात्रि में जागरण कर श्री हरि के नाम के भजन करना चाहिए।
4. द्वादशी के दिन किसी जरुरतमंद व्यक्ति या ब्राह्मण को भोजन कराकर, दान-दक्षिणा देकर व्रत का पारण करना चाहिये।
जया एकदशी व्रत कथा (Jaya Ekadashi Vrat katha)
जया एकादशी की कथा के अनुसार एक बार देवताओं के राजा इन्द्र नंदन वन में भ्रमण कर रहे थे. चारों तरफ किसी उत्सव का माहौल था. गंधर्व गया रहे थे, गंधर्व कन्या नृत्य कर रही थी. वहीं पुष्पवती नामक गंधर्व कन्या ने माल्यवान नामक गंधर्व को देखा और उस पर आसक्त होकर अपने हाव-भाव से उसे रिझाने का प्रयास करने लगी.
माल्यवान भी उस गंधर्व कन्या पर आसक्त होकर अपने गायन के सुरताल भूल गया, जिससे उसके संगीत की लय टूट गई और सारा संगीत का माहौल बिगड़ गया. सभा में उपस्थित देवगणों को देखकर बहुत बुरा लगा. यह देखकर देवेन्द्र भी रुष्ट हो गए.
कोरध के कारण इन्द्र ने पुष्पवती तथा माल्यवान को मृत्युलोक में जाने का श्राप दे दिया और कहा कि अब तुम अधम पिशाच असंयमी जैसा जीवन बितयोगे.
ये श्राप सुनकर वे बहुत दुखी हुए और हिमालय पर्वत पर जाकर पिशाच योनि में दुखपूर्वक जीवनयापन करने लगे. उन्हें इस जीवन में गंध, रस, स्पर्श आदि का तनिक भी बोध नहीं था. वे बहुत दुख भोग रहे थे, उन्हें एक क्षण भी सुख का नहीं मिलता था.
एक बार जया एकादशी के दिन भाग्य से दोनों ने न तो कुछ खाया और न ही पाप कर्म किए. जिसकी वजह से इनका जया एकादशी का उपवास हो गया. भगवान विष्णु इन पर प्रसन्न हुए और प्रातः काल होते ही इन्हें पिसाच योनि से मुक्ति मिल गई.
वे फिर से अपने पुराने रूप को पाकर स्वर्गलोक चले गए और श्रीहरि का वंदन किया. इस बारे में इन्द्रदेव ने भी उनसे पूछा और उन्होंने बताया की किस तरह जया एकादशी पर भगवान हरि की कृपा से वे इस श्राप से मुक्त हुए.
जया एकादशी के दिन यदि विधि-विधान से श्रीहरि की आराधना की जाए और व्रत रखा जाए तथा कोई पापकर्म न किया जाए तो भगवान विष्णु की बड़ी कृपा होती है और वो मनुष्य को भूत, पिशाच जैसी योनि में जाने का कष्ट नहीं देते हैं.
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