भारत के हर प्रमुख नगर में आपको एक इस्कॉन मंदिर (ISKCON Temple) जरूर दिखाई देगा. आप कई बार दर्शन करने भी गए होंगे. इस्कॉन मंदिर शब्द सुनने में अंग्रेजी दिखाई देता है जबकि इसमें भगवान कृष्ण की पूजा होती है. तब ये जरूर सोचने में आता है कि ये इस्कॉन नाम का मतलब क्या है? इस्कॉन मंदिर कौन बनवाता है? इस्कॉन की स्थापना किसने की?
ये सभी सवाल काफी लोगों के दिमाग में आते हैं. इस्कॉन के पूरे भारत में 800 मंदिर और अन्य देशों में भी इनके काफी सारे मंदिर हैं. लेकिन सवाल वही है कि देश और दुनिया में इतने सारे इस्कॉन मंदिर कौन बनवा रहा है?
ISKCON Full Form in Hindi
ISKCON के बारे में सबसे पहला सवाल यही आता है कि इस्कॉन का पूरा नाम क्या है (ISKCON Full Form)? इस्कॉन का पूरा नाम International Society for Krishna Consciousness है. इस्कॉन का हिन्दी नाम अंतरराष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ है.
इस्कॉन की स्थापना किसने की? (Founder of ISKCON)
इस्कॉन कोई एक मंदिर नहीं है बल्कि कई मंदिरों का समूह है जो एक सोसायटी के रूप में काम कर रहा है. इस्कॉन की स्थापना करने वाले श्री अभयचरणारविन्द भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपादजी थे. उन्होंने साल 1966 में न्यूयॉर्क सिटी में पहले इस्कॉन मंदिर की स्थापना की थी.
इसके बाद दुनियाभर में कृष्णभक्ति को फैलाने के लिए ये इस्कॉन मंदिर खोलते गए. आज अकेले भारत में इनके 800 मंदिर हैं और दुनियाभर में फैले मंदिरों की कोई गिनती नहीं है. इन्होंने पूरी दुनिया में कृष्णभक्ति को फैलाने का कार्य किया है.
स्वामी प्रभुपादजी के बारे में (About Swami Prabhupada ?)
इस्कॉन की स्थापना का श्रेय पूरी तरह स्वामी प्रभुपादजी को जाता है. इनका पूरा नाम श्री अभयचरणारविन्द भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपादजी है. ये 1 सितंबर 1896 को जन्में थे. इनका वास्तविक नाम अभयचरण डे था और ये कलकत्ता में एक बंगाली कायस्थ परिवार में जन्मे थे.
साल 1922 में कलकत्ता में अपने गुरुदेव श्री भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर से मिलने के बाद उन्होंने भगवदगीता पर एक टिप्पणी लिखी और गौड़ीय मठ के कार्य में सहयोग दिया. आगे चलकर इन्होंने श्रीमदभगवदगीता का अंग्रेजी में अनुवाद किया और अमेरिका में इसके प्रचार-प्रसार के लिए चले गए.
अमेरिका जाकर इन्होंने वहाँ के लोगों को कृष्णभक्ति की ओर उन्मुख किया, उन्हें अंग्रेजी में भगवातगीता का संदेश दिया और ये इतना असरकारक रहा कि साल 1966 में उन्होंने इस्कॉन की स्थापना अमेरिका के शहर न्यूयार्क में की.
इस्कॉन मंदिर के सिद्धांत (Principles of ISKCON Temples)
आपने सोशल मीडिया पर अक्सर देखा होगा कि विदेशी लोग भारत की संस्कृति अपना रहे हैं, कृष्ण की भक्ति में लीन होकर ‘हरे कृष्ण, हरे कृष्ण’ गा रहे हैं. ये सभी भक्त इस्कॉन से जुड़े हुए भक्त हैं, जो भगवान कृष्ण की भक्ति करते हैं.
आज पूरी दुनिया में इस्कॉन के अनुयायी हैं इसकी वजह है इस्कॉन मंदिर में मिलने वाली असीम शांति. इस्कॉन मंदिर में यदि आप आस्था रखते हैं तो आपको इनके 4 सिद्धांतों का पालन करना होता है. ये सिद्धांत तप, दया, सत्य और मन की शुद्धता है.
इसके अलावा आपको इनके नियम भी मानने होते हें.
– इस्कॉन के अनुयायी को तामसिक भोजन जैसे प्याज, लहसुन, मांस, मदिरा यदि से दूर रहना होता है.
– इन्हें अनैतिक आचरण जैसे जुआ, पब, वैश्यालय आदि से भी दूर रहना होता है.
– इस्कॉन के अनुयायी को रोजाना एक घंटा शास्त्राध्ययन में बिताना होता है जिसमें इन्हें गीता के साथ-साथ भारतीय धर्म और इतिहास से जुड़े शास्त्रों का अध्ययन करना होता है.
– इसके के अनुयायियों को रोजाना ‘हरे कृष्णा-हरे कृष्णा’ नाम की माला 16 बार जपनी होती है.
इस्कॉन मंदिर का पैसा कहाँ जाता है? (ISKCON Temple Money Management)
काफी सारे लोग इस्कॉन को एक विदेशी संगठन मानते हैं और उनका ऐसा मानना है कि इसमें आने वाला दान और चन्दा सब अमेरिका जाता है. जबकि ऐसा नहीं है. ये एक धार्मिक संगठन है जिसमें आने वाला पैसा धार्मिक और सामाजिक कार्यों में खर्च किया जाता है.
ये पैसा मंदिर के संचालन, सामाजिक सेवाओं, शिक्षा, खाद्य वितरण, चिकित्सा सेवायों एवं अन्य कार्यों में खर्च किया जाता है. आमतौर पर एक मंदिर पर आने वाले दान को दूसरे मंदिर या दूसरे देश तक नहीं भेजा जाता.
भारत में कितने इस्कॉन मंदिर हैं? (How many temples of ISKCON in India?)
भारत में इस्कॉन मंदिरों की संख्या 800 बताई जाती है. भारत के पहले इस्कॉन मंदिर की बात करें तो वृंदावन में स्थित कृष्ण बलराम मंदिर देश का पहला इस्कॉन मंदिर जिसे साल 1975 में बनवाया गया था. इसके बाद भारत में एक के बाद एक कई प्रमुख शहर जैसे दिल्ली, मुंबई, बैंगलोर आदि में भी इस्कॉन मंदिर बनाये गए.
इस्कॉन मंदिर पूर्णतः कृष्ण भक्ति को समर्पित हैं. इसमें देश-विदेश के पढ़े-लिखे युवा जुड़े हैं. अगर आप मथुरा वृंदावन जाएंगे तो ये आपको कृष्णभक्ति में लीन दिखाई देंगे. ये भागवत गीता और भगवान कृष्ण से संबंधित पुस्तकों का भी प्रचार करते हैं ताकि कृष्ण की लीलाओं के बारे में पूरा संसार जाने.
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