हमारे दूर के पड़ोसी ईरान में कुछ दिनों से लगातार प्रदर्शन जारी है. ईरानी मीडिया के मुताबिक प्रदर्शन में कम से कम 20 लोगों की जानें जा चुकी हैं और सोमवार की शाम तक लगभग 450 आन्दोलनकारियों को गिरफ्तार किया जा चुका है. इस आन्दोलन के पीछे आर्थिक विषमता और गरीबी के प्रति रोष को बताया जा रहा है.
क्या है संकट की कूटनीतिक वजह
ईरान का हालिया संकट एक छोटे से शहर से प्रारंभ हुआ. जो पूरे ईरान में फैल गया. माना जा रहा है कि इस संकट की वजह अरब और इस्लामिक विश्व में लगातार ईरान की बढ़ती धाक है. लाख कोशिशों के बाद भी सउदी अरब सीरिया की असद सरकार को अपदस्थ करने में नाकाम रहा है. दुनिया को पता है कि इसके पीछे ईरानी कूटनीति काम कर रही थी. इराक में भी सउदी कूटनीति को बड़ी बुरी तरह से मात खाना पड़ा है. साथ ही अरब प्रायद्वीप के देश यमन में भी ईरान ने अपनी पकड़ मजबूत कर ली है. इस रणनीति से केवल सउदी अरब ही घबराया हुआ नहीं है उसके परम मित्र संयुक्त राज्य अमेरिका को भी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है.
रूस भी है ईरान की ताकत
इसके पीछे का कारण एशिया में रूसी रणनीति की सफलता है. संयुक्त राज्य अमेरिका को यह लगने लगा है कि चूकि ईरान रूसी खेमें में है इसलिए उसे चीन का भी सहयोग मिल रहा है और यही कारण है कि वह अपनी सामरिक रणनीति में सफल होता जा रहा है. अमेरिका, सउदी अरब और इजरायल, ईरान की बढ़ती ताकत को रोकने की पूरी कोशिश करते रहे हैं, लेकिन जब से ईरान के उपर से प्रतिबंध हटा है ईरान अपनी रणनीति में लगातार सफल होता जा रहा है. संभवतः ईरान उत्तर इराक और सीरिया को मिलाकर एक बड़े गठबंधन को अंजाम देना चाहता है.
सफल ईरान से प्रभाव
इस रणनीति में यदि ईरान सफल हो गया तो फिर सउदी अरब और इजरायल दोनों के लिए ईरान बड़ा संकट बनकर खड़ा होगा. तब संभव है कि तुर्की, लेबनान, जौर्डन एवं मध्य एशिया के मुस्लिम देश ईरान को अपना चौधरी मानने लगेंगे और इस्लामिक दुनिया में जो सउदी अरब की चौधराहट है उसे बड़ी चुनौती मिलने लगेगी. फिर दुनिया को संचालित करने वाली एनर्जी पेट्रोलियम पदार्थों पर भी ईरान का सिक्का जम जाएगा. इसलिए सउदी अरब, संयुक्त राज्य और इजरायल, ईरान को कमजोर बनाने के फिराक में हैं. इसलिए हालिया ईरानी आंतरिक संकट को इस अरब-इस्लामिक चौधराहट की जंग से भी जोड़कर देखा जा सकता है. जो भी हो लेकिन ईरानी आंतरिक कलह से भारतीय कूटनीतिज्ञों को सतर्क रहना चाहिए.
क्या प्रायोजित है संकट
ईरान में यह संकट प्रायोजित भी हो सकता है. ईरान में इन दिनों लगातार यूरोपीय देश, चीन, भारत और रूस का निवेश हो रहा है. यह संकट निवेशकों को डराने के लिए भी प्रयोजित किया जा सकता है. इसलिए भारत को इस बात के लिए सतर्क रहना होगा कि ईरान का संकट कही भारत के आर्थिक हितों पर न चोट पहुंचा दे. साथ ही हमारी सरकार को ईरान को इस संकट से उबरने के लिए सहयोग भी करना चाहिए क्योंकि ईरान में हमारे लिए बड़ी संभावनाएं हैं. इन संभावनाओं का विदोहन हम ईरान को ऐसे मोर्चों पर सहयोग पहुंचाकर भी कर सकती हैं.
ये भी हैं कारण
वैसे ईरान के इस आन्दोलन के पीछे जो कारण प्रचारित किए जा रहे हैं वह कारण जायज है. रोजगार, सुरक्षा, अच्छा जीवन तो लोगों को चाहिए ही. यदि रोजगार के लिए लोग सड़क पर उतर रहे हैं, तो वहां की सरकार को इस समस्या का समाधान करना ही होगा नहीं तो आने वाले समय में इसी समस्या को हथियार बनाकर ईरान के दुश्मन ईरान को परेशान करेंगे.
क्या करना चाहिए भारत को
कुल मिलाकर ईरान को अपने आंतरिक कलह को अपने ढंग से सुलझाना चाहिए और भारत जैसे शांति समर्थक देशों को इस परिस्थिति में ईरान की सरकार का सहयोग करना चाहिए. हालांकि इन दिनों सउदी अरब भी भारत के प्रति सकारात्मक सोच रखने लगा है लेकिन हमारे कूटनीतिज्ञों को यह नहीं भूलना चाहिए कि जब सउदी अरब हमारे खिलाफ हुआ करता था, तो ईरान हमारे साथ खड़ा होता था.
इन संबंधों को बचाकर रखने की जरूरत है. भारत की रणनीति किसी कीमत पर एकपक्षीय नहीं होनी चाहिए. इससे अंततोगत्वा अरब-मुस्लिम राष्ट्रों में भारत की सकारात्मकता का प्रचार होगा और भारत अपनी रणनीति के तहत अपनी कूटनीति में सफल होता चला जाएगा. हमारी साफ्ट पॉलिसी और शांतिप्रियता ही हमारी ताकत है. इसी के सहारे हम दुनिया में अपना प्रभाव जमा सकते हैं.