देशभर में होली (Holi fesitval) का पर्व मानाने की तैयारी चल रही है, होली पर्व से एक सप्ताह पहले होलाष्टक लग जाता है. होलाष्टक लगते ही सारे उत्सव रुक जाते हैं और शुभ कार्यों को कुछ देर के लिए स्थगित कर दिया जाता है. रंग तो जीवन में होली के साथ प्रवेश करेंगे और इसलिए लोग होली मनाने के लिए प्रतीक्षा करने लगते हैं. होली के त्योहार से पहले आने वाले आठ दिनों के समय को होलाष्टक (Holashtak) कहा जाता है.
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से होलिका दहन तक का काल होलाष्टक (holashtak meaning) कहा जाता है. इस दौरान शुभ कार्यों के आयोजन का निषेध रहता है. माना जाता है कि इस अवधि में किए जाने वाले कार्य फलदायक नहीं होते हैं.
यही वजह है कि इन दिनों गृह प्रवेश, विवाह, गर्भाधान, पुंसवन, नामकरण, चूड़ाकरण, विद्यारंभ संस्कार जैसे महत्त्वपूर्ण आयोजन नहीं रखे जाते हैं. इस दौरान लोग किसी भी तरह के शुभ कार्यों के आयोजन को स्थगित कर देते हैं.
ज्योतिष (holashtak astrology) का मानना है कि इन दिनों किए गए शुभ कार्यों में अमंगल होने की आशंका रहती है. इनमें पीड़ा या कलह की आशंका भी पैदा हो जाती है. किसी के जन्म और मृत्यु के पश्चात किए जाने वाले कृत्यों की हालांकि इस दौरान मनाही नहीं है. प्रसूति का सूतक निवारण, जातकर्म, अंत्येष्टि आदि संस्कारों के संबंध में कोई निषेध नहीं है.
होलाष्टक के दौरान शुभ कार्यों पर प्रतिबंध के (why holashtak is inauspicious) पीछे धार्मिक मान्यता के अलावा ज्योतिषीय कारण है. ज्योतिष के अनुसार अष्टमी को चंद्रमा, नवमी को सूर्य, दशमी को शनि, एकादशी को शुक्र, द्वादशी को गुरू, त्रायोदशी को बुध, चतुर्दशी को मंगल तथा पूर्णिमा को राहु उग्र रूप लिए रहते हैं. इनके प्रभाव से मनुष्य का मस्तिष्क अनेक आशंकाओं से गस्त रहता है और उसकी विचार शक्ति कमजोर रहती है इसलिए इन दिनों में उसे बड़े निर्णयों से दूर रहने का प्रावधान रखा गया है.
विज्ञान के अनुसार पूर्णिमा के दिन ज्वार-भाटा, (Scientific aspect of Holashtak) सुनामी जैसी आपदा आती है और इस दिन व्यक्ति उग्र रहता है. यह असर निर्णय शक्ति को निश्चित ही प्रभावित करता है. जिनकी कुंडली में नीच राशि के चंद्रमा वृश्चिक राशि के जातक या चंद्र छठे या आठवें भाग में हैं उन्हें इन दिनों अधिक सतर्क रहना चाहिए.
मान्यता है कि जब देवताओं के कहने पर कामदेव ने भगवान शिव का तप भंग किया तो महादेव क्रोधित हो गए. क्रोध में उन्होंने अपने तीसरे नेत्रा से कामदेव को भस्म कर दिया. कामदेव ही संसार में प्रेम की सृष्टि करते हैं और उनके भस्म होने पर संसार में शोक व्याप्त हो गया था.
कामदेव की पत्नी रति ने शिवजी की आराधना की. अनुप-विनय किया और अपने पति के प्राण वापस मांगे. तब भोलेनाथ ने कामदेव को पुनर्जीवन का आशीष दिया. महादेव से रति को मिलने वाले इस आशीर्वाद के बाद ही होलाष्टक का अंत हुआ.
चूंकि होली से पूर्व के आठ दिन रति और कामदेव के (holashtak story) वियोग के दिन थे तो इन दिनों में कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है. कामदेव का यह प्रसंग होलाष्टक के साथ जुड़ा है. विद्वान यह भी कहते हैं कि होली से पहले के आठ दिनों में भक्त प्रहलाद को यातनाओं से गुजरना पड़ा था और इसलिए इन दिनों शुभ कार्य नहीं किया जाता है.
होलाष्टक के (Importance Of Holashtak) पहले दिन जिस जगह होली का पूजन किया जाना है वहां गोबर से लिपाई होती है और उस जगह को गंगाजल से पवित्रा किया जाता है. लोग उस जगह पर चप्पल पहनकर प्रवेश नहीं करते. यह जगह होली मनाने तक अत्यंत पवित्रा हो जाती है. यहां सूखी लकडि़यां और उपले इकट्ठा किए जाते हैं और होली की तैयारी अंतिम रूप प्राप्त करती है. आठ दिन बाद आखिर यहीं होली जलाई जाती है और यह माना जाता है कि अब जीवन में रंगों के खिलने का समय आ गया
है.
– होलाष्टक मनाए जाने का चलन उत्तर भारतीय शहरों में ही है जबकि दक्षिण भारत में ऐसी परंपरा नहीं है.
– प्रचलन के अनुसार होलाष्टक के पहले दिन होलिका दहन के लिए 2 डंडे स्थापित किए जाते हैं, एक होलिका और दूसरा प्रहलाद.
– होलाष्टक के इन 8 दिनों को व्रत, पूजन और हवन की दृष्टि से अच्छा समय माना गया है. इन दिनों भक्ति करना चाहिए.
– होलाष्टक के 8 दिनों में दान भी विशेष फलदायी होता है. इन दिनों यथासंभव दान करना चाहिए. दान से जीवन के कष्टों का निवारण होता है.