महिलाएं साल भर में कई सारे व्रत रखती हैं लेकिन उस सब में हरतालिका तीज (hartalika teej 2021 in hindi) की महिमा अपरमपार है. ये व्रत कई सारी महिलाएं पूरे उत्साह के साथ एक त्योहार की तरह करती है. इस व्रत को रखना कोई आसान काम नहीं है क्योंकि इसमें बिना कुछ खाये पीए 24 घंटे से अधिक समय तक रहना पड़ता है और भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करनी पड़ती है.
हरतालिका तीज (hartalika teej) का व्रत करने के दौरान हरतालिका तीज की कथा पढ़ना अनिवार्य होता है. इस लेख में आप हरतालिका तीज की कथा हिन्दी में पढ़ पाएंगे और साथ ही हरतालिका तीज का महत्व भी जान पाएंगे.
हरतालिका तीज का महत्व | Hartalika Teej 2022 Importance
पूरे सालभर की तीज में हरतालिका तीज का विशेष महत्व (hartalika teej mahatv) है. ‘हरतालिका’ शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है ‘हरत’ और ‘आलिका’ हरत का मतलब होता है अपहरण और आलिका का मतलब सहेली. पौराणिक मान्यता के अनुसार मांं पार्वती की सहेली उन्हें घने जंगल में ले जाकर छिपा देती है क्योंकि उनके पिता उनका विवाह भगवान विष्णु से करना चाहते हैं और माँ पार्वती भगवान शिव से विवाह करना चाहती है. इस गुप्त जगह पर जाकर माँ पार्वती ने हरतालिका तीज का व्रत किया और भगवान शिव से विवाह करने का संकल्प लिया.
भारत में सुहागिन महिलाओं की हरतालिका तीज में गहरी आस्था है. महिलाएं अपने पति की दीर्घायु के लिए निर्जला व्रत रखती हैं. मान्यता है कि इस व्रत को करने से सुहागिन स्त्रियों को शिव-पार्वती अखंड सौभाग्य का वरदान देते हैं. वहीं कुंवारी लड़कियों को मनचाहे वर की प्राप्ति होती है.
हरतालिका तीज की कथा (Hartalika teej katha in hindi)
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार शिव जी ने माता पार्वती जी को इस व्रत के बारे में (hartalika teej story) विस्तार पूर्वक समझाया था. मां गौरा ने माता पार्वती के रूप में हिमालय के घर में जन्म लिया था. बचपन से ही माता पार्वती भगवान शिव को वर के रूप में पाना चाहती थीं और उसके लिए उन्होंने कठोर तप किया. 12 सालों तक निराहार रह करके तप किया. एक दिन नारद जी ने उन्हें आकर कहा कि पार्वती के कठोर तप से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु आपकी पुत्री से विवाह करना चाहते हैं. नारद मुनि की बात सुनकर महाराज हिमालय बहुत प्रसन्न हुए. उधर, भगवान विष्णु के सामने जाकर नारद मुनि बोले कि महाराज हिमालय अपनी पुत्री पार्वती से आपका विवाह करवाना चाहते हैं. भगवान विष्णु ने भी इसकी अनुमति दे दी.
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फिर माता पार्वती के पास जाकर नारद जी ने सूचना दी कि आपके पिता ने आपका विवाह भगवान विष्णु से तय कर दिया है. यह सुनकर पार्वती बहुत निराश हुईं उन्होंने अपनी सखियों से अनुरोध कर उसे किसी एकांत गुप्त स्थान पर ले जाने को कहा.
माता पार्वती की इच्छानुसार उनके पिता महाराज हिमालय की नजरों से बचाकर उनकी सखियां माता पार्वती को घने सुनसान जंगल में स्थित एक गुफा में छोड़ आईं. यहीं रहकर उन्होंने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कठोर तप शुरू किया जिसके लिए उन्होंने रेत के शिवलिंग की स्थापना की. संयोग से हस्त नक्षत्र में भाद्रपद शुक्ल तृतीया का वह दिन था जब माता पार्वती ने शिवलिंग की स्थापना की. इस दिन निर्जला उपवास रखते हुए उन्होंने रात्रि में जागरण भी किया.
उनके कठोर तप से भगवान शिव प्रसन्न हुए माता पार्वती जी को उनकी मनोकामना पूर्ण होने का वरदान दिया. अगले दिन अपनी सखी के साथ माता पार्वती ने व्रत का पारण किया और समस्त पूजा सामग्री को गंगा नदी में प्रवाहित कर दिया. उधर, माता पार्वती के पिता भगवान विष्णु को अपनी बेटी से विवाह करने का वचन दिए जाने के बाद पुत्री के घर छोड़ देने से व्याकुल थे. फिर वह पार्वती को ढूंढते हुए उस स्थान तक जा पंहुचे.
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इसके बाद माता पार्वती ने उन्हें अपने घर छोड़ देने का कारण बताया और भगवान शिव से विवाह करने के अपने संकल्प और शिव द्वारा मिले वरदान के बारे में बताया. तब पिता महाराज हिमालय भगवान विष्णु से क्षमा मांगते हुए भगवान शिव से अपनी पुत्री के विवाह को राजी हुए.
इस तरह हरतालिका तीज की पूजा करनी है. हरतालिका तीज की पूजन विधि आपको किताब में भी मिल सकती है जिसमें काफी विस्तार से आपको बताया जाता है. कई लोग पूजा करने के लिए किताब लाते हैं जिंसमें हरतालिका तीज की पूजन विधि, कथा तथा महत्व के बारे में बताया जाता है. अगर आप विस्तार से इसकी पूजा के बारे में जानना चाहते हैं तो किताब को जरूर पढ़ें.
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