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डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन (Dr sarvepalli radhakrishnan) का जन्मदिन शिक्षक दिवस (Teachers day)के रूप में पूरे देश में मनाया जाता है. 5 सितंबर 1988 को तमिलनाडु के तिरूतनी गांव में जन्में राधाकृष्णन भारत के दूसरे राष्ट्रपति रहे. वे भारत के पहले उपराष्ट्रपति भी रहे. उनका कार्यकाल 13 मई 1962 से लेकर 13 मई, 1967 तक रहा. राधाकृष्णन दर्शनशास्त्र के विद्वान थे. उन्होंने भारतीय संस्कृति, परंपरा और दर्शनशास्त्र का गहन अध्ययन किया था.

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जीवन परिचय (life of dr sarvepalli radhakrishnan)

जीवन के 40 साल से ज्यादा शिक्षक के रूप में गुजारने वाले राधाकृष्णन ब्राह्मण परिवार में जन्में थे. वे एक महान् शिक्षाविद, वक्ता तो थे ही बल्कि हिन्दू विचारक भी थे. 

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के पिता का नाम ‘सर्वपल्ली वीरास्वामी’ और माता का नाम ‘सीताम्मा’ था. पिता की सरकारी नौकरी थी. वे राजस्व विभाग में वैकल्पिक कार्यालय में कार्यरत् थे.

उनके पिता के लिए पांच पुत्र और एक पत्री के एक बड़े परिवार को पालना आसाना नहीं था. यह परिवार लंबे समय तक गरीबी और अभाव के बीच जीता रहा. यही वजह रही कि राधाकृष्णन का प्रारंभिक जीवन बहुत कठिन संघर्ष और अभाव में बीता.

क्यों देश में सबसे खास हैं डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन 

हालांकि गरीबी में भी पढ़ाई के प्रति राधाकृष्णन की दीवानगी देखते ही बनती थी. शिक्षा को लेकर उनके विचार बेहद प्रगतिशील और वैज्ञानिक थे. दर्शन और विशेष रूप से गीता को लेकर उनकी एक विशेष दृष्टि थी. खास बात यह है कि जहां डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन जन्में वह भी एक पवित्र तीर्थस्थल के रूप में विख्यात रहा.

क्यों पड़ा राधाकृष्णन के नाम के आगे सर्वपल्ली

डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन के पूर्वज पहले ‘सर्वपल्ली’ गांव में रहते थे. 18वीं शताब्दी के मध्य में वे तिरूतनी ग्राम की ओर चले गए. हालांकि उनके पूर्वज चाहते थे कि उनके नाम के साथ उनके जन्मस्थल के गांंव का बोध भी वैसा ही बना रहे, लिहाजा उनके परिजन नाम के पूर्व ‘सर्वपल्ली’ लगाने लगे और राधाकृष्णन के नाम में भी सर्वपल्ली लग गया.

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के विचार (Dr Sarvepalli Radhakrishnan Quotes In Hindi)

डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जीवन और शिक्षा-दीक्षा पर एक ओर जहां पारिवारिक मूल्यों और हिंदू संस्कृति का गहरा असर पड़ा वहीं दूसरी ओर वे पढ़ाई के सिलसिले में क्रिश्चिन मिशनरियों के संपर्क में भी आए. इस तरह उन्होंने पूर्व और पश्चिम को देखने की अनोखी दृष्टि को आत्मसात किया. 

वे देश के पहले उप-राष्‍ट्रपति और दूसरे राष्‍ट्रपति रहे. उनका निधन 17 अप्रैल 1975 को हुआ था. उन्‍हें भारत रत्‍न, ऑर्डर ऑफ मेरिट, नाइट बैचलर और टेम्‍पलटन प्राइज से भी नवाजा गया था.

हिंदू संस्कृति और दर्शन का लेकर वे बहुत प्रभावी रहे. उनके कुछ विचार आज भी बहुत प्रेरणादायक हैं.

शिक्षक वह नहीं जो छात्र के दिमाग में तथ्यों को जबरन ठूंसे, बल्कि वास्तविक शिक्षक तो वह है जो उसे आने वाले कल की चुनौतियों के लिए तैयार करें.

भगवान की पूजा नहीं होती बल्कि उन लोगों की पूजा होती है जो उनके नाम पर बोलने का दावा करते हैं.

कोई भी आजादी तब तक सच्ची नहीं होती,जब तक उसे विचार की आजादी प्राप्त न हो. किसी भी धार्मिक विश्वास या राजनीतिक सिद्धांत को सत्य की खोज में बाधा नहीं देनी चाहिए.

शिक्षा के द्वारा ही मानव मस्तिष्क का सदुपयोग किया जा सकता है. अत:विश्व को एक ही इकाई मानकर शिक्षा का प्रबंधन करना चाहिए.

शिक्षा का परिणाम एक मुक्त रचनात्मक व्यक्ति होना चाहिए जो ऐतिहासिक परिस्थितियों और प्राकृतिक आपदाओं के विरुद्ध लड़ सके.

किताबें पढ़ने से हमें एकांत में विचार करने की आदत और सच्ची खुशी मिलती है.

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