आज कार्तिक पूर्णिमा, देव दीपावली और गुरु नानक जयंती का पवित्र दिन है. (Kartik Purnima) कार्तिक माह में कार्तिक पूर्णिमा का बहुत महत्व माना जाता है. आज के दिन दान और पवित्र नदी में स्नान करने का बहुत महत्व है. आप चाहें गंगा किनारे रहते हों अथवा नर्मदा किनारे या फिर गोदावरी या किसी भी पवित्र नदी का तट आपके नजदीक हो आपको इस दिन सुबह उठकर स्नान करना चाहिए और यथा संभव दान करना चाहिए. आज के दिन भगवान विष्णु और भगवान कार्तिकेय की पूजा का विशेषा महत्व है.
शास्त्रों में कार्तिक पूर्णिमा का बहुत ही महत्व बताया गया है. इस दिन कृतिका नक्षत्र भी पड़ रहा है लिहाजा इस दिन का महत्व और भी बढ़ जाता है. यही नहीं आज के दिन गुरु नानक जयंती भी मनाई जाती है.
आज ही के दिन दुनिया को प्रेम और मानवता का संदेश देने वाले सिख धर्म के पहले गुरु नानक देव जी का जन्मोत्सव सिख समुदाय प्रकाश पर्व के रूप में मनाता है. सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव जी पंजाब के तलवंडी में कार्तिक पूर्णिमा को एक किसान परिवार में जन्में थे. अब इस स्थान को ‘नानकाना साहब’ कहा जाता है.
बचपन से ही थी असाधारण प्रतिभा
गुरु नानक (Guru Nanak Jayanti) देव का बचपन अपने गांव में ही बीता, हालांकि बाल्यावस्था से ही उनके अंदर असाधारणता और विचित्रता दिखती थी. जिस दौर में बच्चे खेल-कूद में अपना समय व्यतीत करते हैं, उस उम्र में गुरु नानक देव आत्म-चिन्तन और ध्यान में मगन रहते थे.
गुरु नानक की अंतरमुखी-प्रवृत्ति, विरक्ति-भावना और बचपना छोड़ ध्यान में मगन रहने से उनके पिता और पूरा परिवार बहुत चिन्तित रहता था. नानक की इस स्थिति को देखकर उन्हें विक्षिप्त मानकर पिता ने उन्हें भैसें चराने की जिम्मेदारी सौंप दी थी.
संतोष का सूत हो तो पहनाओ
हिंदू धर्म के अनुसार 9 वर्ष की आयु में गुरु नानक देव का जनेऊ संस्कार करवाया गया. यज्ञोपवीत के समय उन्होंने पंडित से कहा कि दया कपास हो, संतोष सूत हो, संयम गांठ हो और सत्य उस जनेउ की पूरन हो ऐसा कोई जनेऊ हो तो मुझे पहना दो. क्यों कि जीव के लिए ये ही आध्यात्म है.
पढ़ाई में नहीं लगता था मन
गुरु नानक देव जब सात वर्ष के हुए तो उन्हें गोपाल अध्यापक के पास भेजा गया. एक दिन वे कक्षा में आत्म-चिन्तन कर रहे थे, जब अध्यापक ने इस बारे में पूछा तो गुरु नानक ने कहा कि मैं सारी विद्याएं और वेद-शास्त्र जानता हूं. मुझे सांसारिक नहीं परमात्मा की पढ़ाई अधिक आनंद देती है.
ऐसे मिला मित्र मरदाना
बचपन में गुरु नानक देव को चलते-चलते एक घर से महिला के रोने की आवाज़ आई तो उन्होंने महिला से रोने की वजह पूछी. महिला ने अपनी गोद में लेटे एक शिशु की ओर इशारा कर के कहा ये मेरा पुत्र है, इसने मेरे घर में जन्म लिया है और अब ये मर जाएगा.
नानक ने इसकी वजह पूछी तो महिला ने कहा इससे पहले मेरे जितने बच्चे हुए सभी मर गए. गुरु नानक ने उस बच्चे को उठाया और कहा कि जब इसका मरना तय है तो आप इसे मुझे दे दो. महिला मान गई और बच्चा नानक को दे दिया. नानक जी ने बच्चे का नाम मरदाना रखा.
नाम रखने के बाद नानक बोले आज से ये बच्चा मेरा है और मैं इसे आपको सौंपता हूं, जरूरत पड़ने पर इसे ले जाऊंगा. यहीं बालक आगे जाकर गुरु नानक जी का परम मित्र और शिष्य बना और सारी उम्र उसने गुरु नानक की सेवा की. (इनपुट भारतकोश.कॉम)