ग्रहों के अरिष्ट निवारण या ग्रहों के शुभ प्रभाव बढ़ाने के लिए रत्नो को पहनने की प्रथा प्राचीन काल से चली आ रही है. ज्योतिष शास्त्र में इनका उपयोग अधिक बताया गया है. लेकिन रत्नो को पहनते समय कई सावधानियों का ध्यान रखना होता है.
दोषरहित और शुद्ध रत्न है कारगर-
रत्नों का प्रयोग एक और बहुत लाभकारी है वहीं बिना सावधानी, बिना जन्म कुंडली देखे रत्नो को धारण करना नुकसानदायक हो सकता है. सिर्फ राशि के मुताबिक रत्न पहन लेना या फिर किसी की बात में आकर कोई भी रत्न धारण कर लेना उचित नहीं है. वास्तव में रत्नों का प्रभाव होता है. इनमे संबंधित ग्रहों की रश्मियाँ समाहित रहती है, अतः ये निश्चित ही प्रभाव बढ़ाने में कारगर है. किन्तु ये संबंधित भाव का शुभ ही प्रभाव बढ़ाएंगे, यह निश्चित नहीं है. इसके लिए एक तो रत्न का दोष रहित होना आवश्यक है. रत्न असली हो और उसके उप रत्न साफ होने चाहिए. रत्न किसी तरह से खंडित नहीं होना चाहिए.
रत्नों के चयन में ध्यान रखे ये बात-
ज्योतिष विज्ञान के मुताबिक 9 ग्रहों में सूर्य, चन्द्र को छोड़कर हर एक ग्रह को दो राशियों का स्वामी माना गया है. अर्थात सूर्य-चन्द्र के अलावा हर ग्रह जन्मकुंडली के दो भावों से सम्बंधित है यानी उनका स्वामी है. यदि कुंडली के किसी भाव के प्रभाव को बढ़ाना है तो उस भाव में जो राशि है, उसके स्वामी से सम्बंधित ग्रह के अनुसार रत्न धारण करवाया जाता है. यह उस स्थिति में तो सही कहा जा सकता है जब वह ग्रह कुंडली के ऐसे दूसरे भाव का भी स्वामी हो जो कि शुभ ही समझा जाता हो, जैसे कोई ग्रह केंद्र त्रिकोण दोनों ही शुभ भावों का स्वामी हो.
उदाहरण : जैसे मेष लग्न है जिसका स्वामी मंगल ग्रह है. इस भाव का स्वामी मंगल शत्रु राशि पर या कुंडली में ऐसी पोजीशन में जिसके कारण हम इसे कमजोर समझ रहे हैं, जिसके लिए रत्न के रूप में मूंगा धारण एक उपचार है. निश्चित ही मूंगा मंगल ग्रह को मजबूती दे सकता है लेकिन यहां पहला भाव (लग्न) के साथ मंगल के स्वामित्व से संबंधित दूसरी राशि वृश्चिक है जो कुंडली के आठवें भाव में है, इसके प्रभाव में भी बढ़ोत्तरी होगी, लिहाजा मंगल की दशा अन्तर्दशा में भी शुभ एवं अशुभ दोनों तरह के फल प्राप्त होंगे. अतः ऐसी स्थिति में मूंगा रत्न पहनना सही नहीं है.