गणपति बप्पा मोरिया, मोरिया रे बप्पा मोरिया रे…. गणपति चतुर्थी के दिनों में हर तरफ से सिर्फ यही आवाज ओर बप्पा के जयकारों की गूंज सुनाई देती है. हर कोई गणेश जी की भक्ति मग्न होकर बप्पा का गुणगान करते हुए उनके जयकारे लगाता है.
गणपति बप्पा मोरया, मंगळमूर्ती मोरया. गणेश जी की स्थापना से लेकर गणेश विसर्जन तक हर तरफ सिर्फ मोरिया की गुंजन की धूम बनी रहती है. बात की जाए मध्य प्रददेश के मालवा इलाके कि तो वहांं गणपति बप्पा मोरिया, चार लड्डू चोरिया, एक लड्डू टूट ग्या, न गणपति बप्पा घर अइग्या की लहर दौड़़ती है.
लेकिन सवाल यह है कि आखिर गणेश चतुर्थी से गणेश विसर्जन तक मोरिया शब्द जो हमेंं सुनाई देता है यह क्या है? क्या इसका कोई कनेक्शन मोर या मौर्य से है या फिर यह गणेश जी का ही ही कोई नाम है? मोरिया शब्द के पीछे का इतिहास बहुत ही अलग है.
क्या है गणपति बाप्पा मोरिया शब्द का अर्थ
श्री गणेश से जुड़े मोरया नाम के पीछे का इतिहास की यदि बात की जाए तो, कहा जाता है केि चौदहवीं सदी में पुणे के समीप चिंचवड़ में मोरया गोसावी नाम के सुविख्यात एक गणेश भक्त हुआ करते थे, चिंचवड़ में कठोर गणेश साधना कर उन्होने काफी ख्याति प्राप्त की थी.
कहा जाता है कि यहां पर मोरया गोसावी ने जीवित समाधि ली थी, तभी से यहां स्थित गणेश मन्दिर विश्व में विख्यात हुआ, जिसके फलस्वरूप गणेश भक्तों ने गणपति के नाम के साथ मोरया शब्द का जयघोष प्रारम्भ कर दिया.
प्रथम दृष्टया से देखा जाये तो तथ्योंं के अनुसार गणपति बप्पा मोरया के पीछे मोरया गोसावी ही हैं. दूसरे तथ्य पर ध्यान दिया जाये तो मोरया शब्द का तात्पर्य मोरगांव के प्रख्यात श्री गणेश हैं.
बहरहाल, भारत की भूमि में देवताओंं के साथ भक्त भी पूजे जाते हैं. आस्था के आगे किसी तरह का कोई तर्क, बुद्धि ज्ञान जैसे उपकरण काम नहीं करते. इतिहास के पन्नों पर आस्था की अपनी अलग जगह होती है.
आस्था के आगे अक्सर दलीलें काम भी नहीं करतीं. ईश्वर की आस्था में तर्क-बुद्धि नहीं, बल्कि महिमा प्रभावी एवं सर्वोपरी होती है.
जाहिर है गणपति बाप्पा मोरया की यह कहानी भले ही भारत के जन से दूर हो लेकिन यह गणपति के नाम का यह जयकारा मोरया के साथ जुड़कर सालों से जन के मन में है.