तापसी पन्नू की फिल्म मुल्क रिलीज के लिए तैयार है. निर्माता दीपक मुकुट और अनुभव सिन्हा निर्देशित ’मुल्क’ सामाजिक मुद्दे पर आधारित है. इसमें तापसी के अपोजिट प्रतीक बब्बर मुख्य भूमिकाएं निभा रहे हैं. उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में फिल्म की शूटिंग की गई है.
तापसी पन्नू ने अपने सिनेमाई सफर की शुरूआत 2010 में तेलगू फिल्म ’झुमंदी नादम’ से की. उसके बाद वह साउथ की काफी फिल्मों में नजर आईं. डेविड धवन की हास्य फिल्म चश्मे बद्दूर से उन्होंने बॉलीवुड में कदम रखा.
अक्षय कुमार के साथ ’बेबी में जबर्दस्त एक्शन करके उन्होंने साबित किया कि इस फन में भी उनका कोई सानी नहीं हैं. नीरज पाण्डेय की उस फिल्म को देखकर निर्माता निर्देशक और दर्शक यह मानने लगे कि तापसी में भरपूर अभिनय क्षमता है.
’पिंक’ और ’नाम शबाना’ में दमदार अभिनय
’पिंक’ और ’नाम शबाना’ में दमदार अभिनय के लिए एक मैग्जीन द्वारा तापसी पन्नू को मोस्ट पॉवरफुल वुमन ऑफ द ईयर का अवार्ड प्रदान किया गया.
तापसी पन्नू ’जुड़वां 2’, 100 करोड़ के क्लब में शामिल होने के बाद बहुत ज्यादा उत्साहित हैं. इसने वर्ल्ड वाइड कमाई के मामले में 200 करोड़ का आंकड़ा भी पार किया. रूप से तापसी का उत्साह ’मुल्क’ की शूटिंग के वक्त साफ नजर आ रहा था.
मुल्क में तापसी की मेहनत
’मुल्क’ में तापसी पन्नू एक वकील का किरदार निभा रही हैं. इस सिलसिले में देश की कई नामी गिरामी वकीलों से तापसी निरंतर मुलाकात कर रही है. कानून की बारीकियों को समझने के लिए कानून की किताबें भी पढ़ींं.
तापसी का इस फिल्म में ऋषि कपूर की बहू का किरदार है. फिल्म में ऋषि कपूर एक बिलकुल अनोखे किरदार और अलग तरह के गेटअप में नजर आएंगे. तापसी पन्नू ऋषि कपूर के साथ पहले भी ’चश्मे बद्दूर’ में एक साथ काम कर चुके हैं.
’मुल्क’ एक सच्ची घटना से प्रेरित फिल्म
’मुल्क’ एक सच्ची घटना से प्रेरित फिल्म है जिसमें एक संयुक्त परिवार मुश्किलों में घिर जाता है. उस वक्त तापसी अपने परिवार को मुश्किल हालात से बाहर निकालकर दोबारा खोई हुई प्रतिष्ठा हासिल करने की कोशिश करती नजर आएंगी. तापसी इस किरदार पर जमकर मेहनत कर रही हैं. तापसी पन्नू के साथ हुई एक बातचीत के अंश प्रस्तुत हैं:
क्या ’जुड़वां 2’ के बाद अब आपका स्ट्रगल खत्म हो चुका है?
नहीं, अभी तो बस शुरूआत हुई है. अभी काफी स्ट्रगल बाकी है. किसी कलाकार के दिलो दिमाग में असुरक्षित होने का जो भाव होता है वह तो शायद सारी जिंदगी बना रहता है.
निजी जिंदगी पर कैरियर और फिल्मों का कितना असर है?
मेरी लाइफ में फिल्मों से ज्यादा और भी चीजें होनी चाहिए. सिर्फ फिल्मों में ही मुझे अपनी पूरी जिंदगी नहीं बितानी है, इसलिए मैं चाहती हूं कि मेरा काम सिर्फ फिल्मों तक सीमित न रहे.
फिल्मों में किस तरह के किरदार निभाना चाहती हैं?
ऐसे किरदार जो डिफरेंट हों और खासकर ऐसे हों जिनके बारे में ऑडियंस ने कभी मुझसे अपेक्षा ही ना की हो ताकि दर्शकों को मेरा किरदार सरप्राइजिंग लगे.
क्या हिंदी फिल्मों में कामयाबी के बाद साउथ की फिल्मों से नाता टूट गया है ?
नहीं, नाता खत्म नहीं किया है. बस साउथ की फिल्मों के लिए वक्त नहीं मिल पा रहा है. शायद इस वजह से आनंदोब्रम्हा’ के बाद मेरे पास वहां की कोई फिल्म नहीं है.
आज के दौर के सिनेमा को आप खुद के लिए कितना अच्छा और कितना खराब मानती हैं ?
हिंदी सिनेमा लगातार बेहतर हो रहा है. मुझे लगता है कि सुधार की काफी गुंजाइश होने के बावजूद आज का दौर हिंदी सिनेमा के लिए बड़ा अच्छा है जहां दर्शक ऐसी फिल्म को भी देख रहे हैं जिनमें मसाला और मनोरंजन से ऊपर उठकर समाज के लिए सोचने वाला एक ज्वलंत मुद्दा भी होता है.
कंगना के बाद आपका नाम एक ऐसी एक्ट्रेस के रूप में लिया जाता है, जिन्होंने फिल्म इंडस्ट्री में औरतों की स्थिति को मजबूत किया है?
इसे आप किसी भी रूप में देख सकते हैं लेकिन मैने जब एक्टिंग शुरू की, मेरे मन में सिर्फ एक ही बात थी कि अब लड़कियों को बचाने के लिए कोई हीरो नहीं आने वाला, इसलिए अब उन्हें खुद ही हीरो बनना होगा.
मैं चाहती हूं कि महिलाओं को अब रील और रियल लाइफ, दोनों में शिकायती लहजा छोड़कर खुद एक्शन करना होगा.
लेकिन कंगना का कहना है कि महिलाएं आज भी पुरूषों के मुकाबले शारीरिक रूप से कमजोर हैं जिसके कारण पुरूष अक्सर उनका फायदा उठाते रहते हैं?
यदि कंगना ने इस तरह की कोई बात कहीं है तो मैं उससे कतई इत्तफाक नहीं रखती. महिलाओं को ऐसा कतई नहीं सोचना चाहिए कि वे शारीरिक रूप से कमजोर हैं. उन्हें आत्मरक्षा के गुर पूरी तरह मालूम होने चाहिए.
साउथ की फिल्मों में शुरूआत करने से पहले आप एक मॉडल के रूप में भी काम कर चुकी हैं. मॉडलिंग से फिल्मों में आने का मन किस तरह हुआ?
मेरे मन में बस एक ही बात थी कि लोग मॉडल को याद नहीं रखते और बस सिनेमा की चर्चा करते हैं. बस इसी किस्म की सारी बातें सोचकर मैं अभिनय की दुनिया में आई थी.
आपकी दिलचस्पी ऑफबीट या कमर्शियल, किस तरह के सिनेमा में ज्यादा है
हर शख्स की पसंद अलग-अलग होती है. यहां कुछ एक्ट्रेस ऐसी हैं जो ऑफबीट फिल्में करना चाहती हैं. बहुत सी सिर्फ कमर्शियल फिल्मों का हिस्सा बनना पसंद है लेकिन मैं किसी खास जेनर में फंसना नहीं चाहती . मैं दोनों तरह की फिल्में संतुलन बनाकर करना चाहती हूं.
आज हिंदी फिल्मों में बायोपिक का जोर है. क्या इस तरह की फिल्में करने का मन होता है ?
मैं अलग-अलग तरह की फिल्में कर रही हूं, लेकिन बायोपिक करने की इच्छा है. यदि कभी इंदिरा गांधी की बायोपिक बने तो उसमें उनका किरदार निभाना चाहूंगी. सानिया मिर्जा की जिंदगी को भी सिल्वर स्क्रीन पर उतारना चाहती हूं. उन्होंने जो उपलब्धियां हासिल की हैं मैं उनसे बेहद प्रभावित हूं.
एक्शन, रोमांस, कॉमेडी या इमोशनल, किस तरह के रोल निभाने में आपको ज्यादा मुश्किल आती हैं?
मुश्किल तो नहीं आतीं लेकिन फिर भी लगता है कि मेरे लिए कॉमेडी उतनी आसान नहीं है जितने दूसरे जॉनर. आज हर इंंसान अपनी जिंदगी में इतना ज्यादा समस्याग्रस्त है कि उसे हंसाना सबसे मुश्किल है.
अभी आपको फिल्मों में आये हुए ज्यादा वक्त नहीं हुआ लेकिन आपने राष्ट्रीय पुरस्कारों को लेकर कुछ ऐसी बातें कहीं हैं जिसके कारण उनकी विश्वसनीयता संदेह के घेरे में आ चुकी है?
बिलकुल, जो मुझे महसूस हुआ, वही मैने कहा. यदि मन की बात मन में रखकर कुछ और कहती तो हिप्पोक्रेट कहलाती. मुझे लगता है कि अवार्ड पाने के लिए किसी को भी रणनीति और कूटनीति खेलनी पड़ती है.
मुझे यह भी लगता है कि इस तरह के पुरस्कार अपनी पसंद के लोगों को दिये जाते हैं. मैं तो अभी भी ’ए’लिस्टेड हीरोइन नहीं हूं, इसलिए मैं खुद को इनसे काफी दूर मानती हूं.
(यह इंटरव्यू पिछले साल 2017 में इंडिया रिव्यूज के लिए फिल्म पत्रकार सुभाष शिरढोनकर द्वारा लिया गया है.)