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कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष के ग्यारहवे दिन को देवउठनी ग्यारस (devuthni gyaras) कहा जाता है. इस दिन को कई जगह पर छोटी दिवाली (choti diwali) भी कहा जाता है. इस दिन का काफी ज्यादा महत्व है क्योंकि सभी देवता इस दिन जाग जाते हैं और सारे शुभ और मांगलिक कार्य शुरू हो जाते हैं. देवउठनी ग्यारस की पूजा करने से पहले हमे पता होना चाहिए की देवउठनी ग्यारस क्या है? देवउठनी ग्यारस की कथा क्या है? देवउठनी ग्यारस का महत्व क्या है? देवउठनी ग्यारस की पूजा कैसे करें?

देवउठनी ग्यारस

दिवाली के बाद ग्यारहवे दिन को देवउठनी ग्यारस (devuthni gyaras) कहा जाता है. इस दिन सभी देवी-देवता जो निद्रा में होते हैं वो जाग जाते हैं. इन्हें उठाने के लिए पूजा की जाती है. माना जाता है की देवताओं के जागने के बाद ही सभी शुभ और मांगलिक कार्य जैसे शादी-ब्याह आदि किए जाते हैं. इस दिन तुलसी पूजा भी की जाती है.

देवउठनी ग्यारस कथा

देवउठनी ग्यारस कथा (devuthni gyaras katha) का संबंध भगवान विष्णु से है. पौराणिक कथा के अनुसार पहले भगवान विष्णु दिन-रात जागते रहते थे और सोते थे तो लाखों वर्षों तक सोते रहते थे. एक बार माता लक्ष्मी ने भगवान विष्णु से कहा की आप समय से नींद नहीं लेते. आप नियम से हर साल निद्रा लिया करें. इससे मुझे भी कुछ समय विश्राम करने के लिए मिल जाएगा. इस बात को सुनकर भगवान विष्णु मुस्कुराए और बोले देवी तुमने ठीक कहा. मेरी सेवा की वजह से तुम्हें कभी आराम नहीं मिलता इसलिए अब मैं हर साल नियम से चार महीने के लिए नींद लूँगा. ऐसा करने से सभी देवतागण को भी अवकाश मिल पाएगा. इसी के बाद ही सभी शुभ कार्यों का आरंभ होगा.

देवउठनी ग्यारस पूजा विधि

देवउठनी ग्यारस के दिन हमें विधि-विधान से पूजा (devuthni gyaras puja vidhi) करना चाहिए.
– इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करना चाहिए.
– नहाने के बाद सूर्योदय होते ही भगवान सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत करने का संकल्प करना चाहिए.
– पूरे दिन व्रत करके शाम को पूजा करना चाहिए.
– इस दिन भगवान विष्णु को बेलपत्र, शमी और तुलसी चढ़ाएं.

देवउठनी ग्यारस पर तुलसी विवाह

देवउठनी ग्यारस पर तुलसी का विवाह (devuthni gyaras tulsi vivah) शाम के समय किया जाता है. इस विवाह को पूरे परिवार के साथ मिलकर करना चाहिए और ठीक उसी तरह इसे करना चाहिए जैसे आप एक विवाह कर रहे हो.

– शाम के समय सारा परिवार तैयार होकर विवाह में शामिल हो.
– तुलसी के पौधे को एक पटिये पर रखकर आँगन, छत या पूजा घर में बिलकुल बीच में रखें.
– तुलसी के गमले के ऊपर गन्ने से मंडप सजाएँ.
– तुलसी देवी पर समस्त सुहाग की सामाग्री और लाल चुनरी चढ़ाएं.
– तुलसी के गमले में शालिग्राम रखें.
– शालिग्राम भगवान पर चावल न चढ़ाएं उन पर तिल अर्पित करें.
– तुलसी और शालिग्राम पर दूध में भीगी हल्दी लगाएं.
– गन्ने का जो मंडप आपने बनाया है उस पर भी हल्दी का लेप लगाकर उसका पूजन करें.
– इन्हें भाजी, मुली, बेर और आंवला जैसे कुछ चीजें अर्पित करें. ये इस दिन आराम से बाजार में मिल जाती है.
– कपूर से माँ तुलसी की आरती करें और प्रसाद चढ़ाएं.
– अब 11 बार माँ तुलसी तथा मंडप की परिक्रमा करें.
– प्रसाद का वितरण करें और मुख्य आहार के साथ खुद ग्रहण करें.
– पूजा की समाप्ति के बाद घर के सभी सदस्य चारों तरफ से पटिये को उठाएँ और भगवान विष्णु से जागने का आह्वान करें और कहें “उठो देव सांवरा, भाजी बोर आंवला, गन्ना की झोपड़ी में, शंकर जी की यात्रा”
– मां तुलसी से उनकी तरह पवित्रता का वरदान मांगे.

दिवाली के ग्यारहवे दिन देवउठनी ग्यारस की पूजा जरूर की जाती है. आपने ये भी देखा होगा की इस दिन कई लोगों की शादी भी होती है. इसकी यही वजह है की इस दिन सभी देवी-देवता जाग जाते हैं और सारे मांगलिक कार्य शुरू हो जाते हैं.

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By विजय काशिव

ज्योतिषी

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