एक सर्वे के मुताबिक देश में अमीरों की संख्या तेजी से बढ़ रही है, दूसरी ओर गरीब भी तेजी से बढ़ रहे हैं. देश में आर्थिक विषमता की यह तस्वीर बेहद चिंताजनक है. सर्वे बताता है कि देश की 73 प्रतिशत संपत्ति का पूरा 1 फीसदी धनाढ्यों की मुट्ठी में कैद है जबकि दूसरी तरफ 130 करोड़ की आबादी वाले देश में 67 करोड़ से अधिक लोग गरीबी रेखा से नीचे जीवन जीने को मजबूर हैं. जबकि बीते एक एक साल में उनकी आर्थिक स्थिति में कोई सुधार नहीं आया है. इनमें से मात्र 1 प्रतिशत लोगों की हालत थोड़ी सी ठीक हुई है.
क्या कहता है सर्वे
ऑक्सफेम की ओर से किए गए सालाना सर्वे के मुताबिक साल 2017 में देश में हर 2 दिन में एक व्यक्ति करोड़पति से अरबपति बन गया. इस तरह अरबपतियों की संख्या बढ़कर 119 हो गई है, यानी की भारत अब दुनिया का छठा सबसे अमीर देश बन गया है. देश में 20730 करोड़पति और 119 अरबपति हैं जबकि भारत के 7000 करोड़पति विदेश में बस गए है. बता दें कि इनमें से एक प्रतिशत अमीरों की कुल दौलत 2017 के बजट के बराबर है. एक रिपोर्ट में 67 भारतीयों को देश की सबसे गरीब आबादी बताया गया है. इनकी कमाई में सिर्फ एक फीसदी का ही इजाफा हुआ.
क्यों बढ़ी गरीबी और अमीरी की खाई?
दरअसल, ग्लोबल इकॉनॉमी ने अमीर तबके ज्यादा प्रॉपर्टी और दौलत दी है. जबकि गरीबों की हालत और भी बदतर हुई है और वे लोग सरकारी योजनाओं के सहारे गुजर-बसर के लिए संघर्ष कर रहे हैं. खास बात यह है कि देश में अमीरी और गरीबी की खाई गांव और शहर के बीच साल-दर-साल और गहरी होती जा रही है. चिंताजनक यह है कि इस तरह की भयानक आर्थिक असमानता ही लोकतंत्र को कम करके भ्रष्टाचार को बढ़ावा देती है.
ये इकॉनॉमी के लिए नहीं है अच्छे संकेत
किसी देश में लगातार अमीरों का बढ़ना उस देश की इकॉनॉमी के लिए अच्छा नहीं माना जाता. एक तरह यह खराब होती अर्थव्यवस्था का संकेत है. केंद्रित संपत्ति के चलते उस देश के लोग कठिन परिश्रम करके देश के लिए अनाज उगा रहे हैं, इंफ्रास्ट्रक्चर का निर्माण कर रहे हैं, जबकि उन्हें अपने बच्चों की फीस भरने दवा खरीदने और दो वक्त की रोटी जुटाने में संघर्ष करना पड़ रहा है.
लोकतांत्रिक व्यवस्था पर होता है सीधा असर
भारत में लगातार बढ़ते भ्रष्टाचार के मामले की भी यही वजह है. देश की आधी आबादी अर्थात 67 करोड़ लोग सबसे ज्यादा गरीब हैं. वे गरीबी रेखा से भी नीचे जीने संघर्ष कर रहे हैं. जब वे संपन्न तबके को देखते हैं और उनकी जैसी आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए कई तरह से प्रयास करते हैं. विषमता में जीने के लिए फिर वे करप्शन का सहारा लेते हैं. इसके अलावा ऐसी व्यवस्था में राजनीतिक पार्टियां गरीबों की गरीबी के नाम पर राजनीतिक रोटियां सेकी जाती रही. यही वजह है कि गरीबी हटाओ, गरीबी दूर करो का नारा देकर सरकारें बनती रहीं लेकिन नारों से कभी गरीबी हटी नहीं जबकि देश में अमीरी और बढ़ गई.
क्या करती हैं सरकारें
सरकार चाहे इंदिरा, अटल, मनमोहन सिंह या नरेंद्र मोदी की रही हों, लेकिन उनके कदमों, नीति-नियमों और निर्णयों से पूंजीपतियों की तिजोरियां भरती और छलकती चली गई और गरीब की गरीबी बढ़ती गई. शेयर, सेंसेक्स और जीडीपी के आंकड़े छलांग मारते रह लेकिन इससे गरीबों का कोई सीधा कनेक्शन नहीं रहा.
विकास का तिलिस्म आम आदमी, गरीब, आदिवासी, किसान की जिंदगी में सुधार नहीं ला पाया. सड़क, बिजली, पानी, ट्रेन दुर्घटनाएं, आधारभूत समस्याएं, इंफ्रास्ट्रक्चर और यहां तक कि शौचालय भी नहीं होना बताता है कि देश की जमीन पर हालत क्या है. अमीरों की लगातार बढ़ती संख्या देश के लिए गौरव की बात नहीं बल्कि व्यवस्था में विषमता का संकेत है. यदि सरकार ने इस ओर ध्यान नहीं दिया तो जनता का असंतोष देश में कई तरह की अस्थिरताएं भी पैदा कर सकता है.