वृंदावन, जो भगवान कृष्ण की लीलाओं से जुड़ा हुआ शहर है. वहाँ भगवान कृष्ण के कई कई मंदिर हैं. हर मंदिर की अपनी विशेषता है लेकिन सबसे खास मंदिर है बाँके बिहारी मंदिर (Banke Bihari Temple). जहां लोग दूर-दूर से भगवान कृष्ण के बालरूप के दर्शन करने के लिए आते हैं.
इस मंदिर की सबसे खास बात ये है कि थोड़े-थोड़े समय बाद यहाँ पर्दा लगा दिया जाता है. मतलब थोड़ी-थोड़ी देर में पर्दा लगा दिया जाता है. अगर आप दर्शन करने गए होंगे तो आपने भी ये चीज नोटिस की होगी. इसके पीछे एक कहानी है जो आपको जरूर पता होना चाहिए.
बाँके बिहारी मंदिर में बार-बार पर्दा क्यों लगाते हैं? (Why does Banke Bihari repeatedly cover the temple?)
वृंदावन में स्थित बाँके बिहारी मंदिर में जो भगवान कृष्ण की मूर्ति है उसमें भगवान कृष्ण वास करते हैं. मंदिर में उनकी एक झलक पाने के लिए लोग घंटों तक लाइन में खड़े रहकर इंतज़ार करते हैं. लेकिन आप एक-टक इस मंदिर में बाँके बिहारी जी के दर्शन नहीं कर सकते. जब भी लोग दर्शन करते हैं तो पुजारी बीच-बीच में पर्दा डालकर लोगों को एक-टक दर्शन करने से रोकते हैं.
ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि भगवान कृष्ण की मूर्ति को कोई एक नजर निहार न सके. ऐसा बताया जाता है कि करीब 400 साल पहले बिहारी जी के आगे बार-बार पर्दा नहीं डाला जाता था. उस दौरान एक निःसंतान विधवा वहाँ आई और बाँके बिहारी जी के दर्शन करने लगी.
वो बाँके बिहारी जी को देर तक देखती रही. इस दौरान वो सोचने लगी कि काश उनका भी कन्हैया जैसा एक लाल होता. ऐसा सोचते-सोचते वो रोने लगी और दर्शन करके घर आ गई. कहा जाता है कि उस माँ के दुख-दर्द को दूर करने के लिए बिहारी जी मंदिर छोड़कर उस माँ के घर चले गए थे.
जब पुजारी मंदिर में आए तो उन्होंने देखा कि भगवान वहाँ नहीं हैं. इसके बाद लोगों ने उन्हें खोजना शुरू किया. खोजते-खोजते लोग उस महिला के घर पहुंचे और उन्होंने देखा कि बाँके बिहारी उस महिला के घर पर हैं. इसके बाद लोगों ने उनसे वापस लौटने के लिए अनुरोध किया. तब भगवान फिर से उस मंदिर में आए.
ऐसा कहा जाता है कि तभी से बाँके बिहारी मंदिर में पर्दा डालने की परंपरा शुरू हुई. तब से हर दो मिनट के अंतराल पर बिहारी जी के सम्मुख पर्दा डाल दिया जाता है ताकि कोई भी भक्त नजर भरकर उन्हें न देख सके.
हालांकि इसके पीछे ये भी कहा जाता है कि काफी लोग उनकी आँखों में जब देखते हैं और उनकी मूर्ति को देर तक निहारते हैं तो अपना होश खो बैठते हैं.
बाँके बिहारी मंदिर का इतिहास (History of Banke Bihari Temple)
ऐसा माना जाता है कि बाँके बिहारी मंदिर में जो मूर्ति स्थापित है वो मूर्ति राधा और कृष्ण का संयुक्त रूप है. यह मुरथी वृंदावन के संगीतकार और संत स्वामी हरीदास द्वारा प्रकट की गई थी. स्वामी हरीदास कोई और नहीं बल्कि बैजु बावरा और तानसेन के गुरु थे.
मान्यताओं के अनुसार एक बार अपने शिष्यों के अनुरोध पर स्वामी हरीदास ने श्यामा और श्याम की स्तुति में निधिवन में ये श्लोक गाया था.
माई री सहज जोरी प्रगट भाई जू, रंग की गौर श्याम घन दामिनी जइसें,
प्रथम हुं आहुति अब हुं अगेन हुं, रहिहै न तरिहै तैसैं,
अंग अंग की उजरै सुघरै, चतुराई सुंदरता अइसें,
श्री हरिदास के स्वामी श्यामा, कुंज बिहारी सम वैस वैसैं।
इस श्लोक को सुनते ही दिव्य युगल श्यामा और श्याम प्रकट हुए. स्वामी हरीदास के कहने पर वे दोनों एक दिव्य युगल में विलीन हो गए और बाँके बिहारी की श्याम रंग की मूर्ति प्रकट हुई. इस मूर्ति का नाम स्वामी हरीदास ने कुंजबिहारी या बाँके बिहारी रखा था.
उस समय ये मूर्ति निधिवन में प्रकट हुई थी तो निधिवन में ही इसकी पूजा की जाती थी लेकिन बाद में इसे वृंदावन स्थानांतरित कर दिया गया था.
बाँके बिहारी मंदिर के खुलने का समय (Banke Bihari Temple Timing)
बाँके बिहारी मंदिर सुबह और शाम को भक्तों के दर्शन के लिए खुला रहता है.
बाँके बिहारी मंदिर के सुबह की टाइमिंग की बात करें तो
- सुबह 7:45 पर इनका शृंगार किया जाता है, जिसके बाद भक्त दर्शन कर सकते हैं.
- इसके बाद 11 बजे से 11:30 तक राजभोग होता है जिसमें भक्त दर्शन नहीं कर सकते.
- 12 बजे आरती होती है जिसके बाद मंदिर को बंद कर दिया जाता है.
बाँके बिहारी मंदिर के शाम की टाइमिंग की बात करें तो
- शाम 5.30 बजे मंदिर खुलता है.
- रात 8.30 से 9 बजे तक शयन भोग होता है जिस दौरान भक्त दर्शन नहीं कर सकते.
- रात 9.30 बजे आरती होती है जिसके बाद मंदिर बंद कर दिया जाता है.
ठंड के समय मंदिर के समय में फेरबदल कर दिया जाता है.
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