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आज के समय में सबसे मुश्किल काम है अभिषेक बच्चन होना. जब परिवार का हरेक सदस्य अपने पीछे कई मील के पत्थर लगाता आया हो तो उम्मीदों का सागर लहलहाना स्वाभाविक है. मिलेनियम स्टार और महानायक के इकलौते वारिस ने ऐसे समय फिल्मों में प्रवेश किया था जब सारी दुनिया वाय टू के के आतंक से अपने कम्प्यूटरों को बचाने में जुटी हुई थी.

इस दुविधाग्रस्त समय में मीडिया और आमजनो की बातों में सिर्फ कंप्यूटर ही था. स्वयं अमिताभ इस समय अपने जीवन के सबसे बुरे दौर से गुजर रहे थे. उनकी फिल्मे लगातार फ्लॉप हो रही थीं और उनकी कंपनी एबीसी एल लगभग दिवालिया हो चुकी थी.

जब कर्जे में थे अमिताभ और लॉन्च हो रहे थे अभिेषेक

‘प्रतिक्षा’ के बाहर प्रशंसकों के बजाय लेनदारों का हुजूम खड़ा था. नंबर वन के सिंहासन पर बरसों रहने के बाद भी अमिताभ का प्रभाव इतना नहीं बचा था कि अभिषेक के लिए कही सिफारिश कर सके.

ऐसे अनिश्चय भरे समय में देशप्रेम और युद्ध आधारित फिल्मों के लिए प्रसिद्ध जेपी दत्ता ने अभिषेक को ‘ रिफ्यूजी ‘ (2000 )में लांच किया. देश की सरहद पर बसे ग्रामीणों के शरणार्थी जीवन में प्रेम कहानी गूंंथ कर फिल्म का कथानक बुना गया था.

सरहद पर रहने वालों की त्रासदी को जावेद अख्तर ने शब्द दिये ‘ पंछी नदिया पवन के झोंके कोई सरहद ना इन्हे रोके ‘ अच्छी कहानी और मधुर संगीत के बावजूद ‘रिफ्यूजी’ असफल हो गई.

सपने देखने का आदी दर्शक महानायक के पुत्र को शरणार्थी के रूप में देखना सहन नहीं कर पाया. असफलता सिर्फ प्रोफेशनल लेवल पर ही नहीं आई वरन व्यक्तिगत स्तर पर भी आई. करिश्मा कपूर से सगाई के बावजूद वे विवाह के बंधन में न बंध सके.

करियर में कितने सफल रहे अभिषेक बच्चन 

यह जूनियर बच्चन के लिए हिचकोले भरी शुरुआत थी. अपने पिता की तरह उनकी कदकाठी शानदार थी और उन्ही की तरह वे चलन के हिसाब से रोमांटिक भूमिका में मिसफिट थे.

प्रेमकहानियों के लिए मिसफिट उनका व्यक्तित्व कई फिल्मों की असफलता का कारण बना परन्तु उनकी दूसरी खूबियों की तरफ कम ही निर्देशकों का ध्यान गया. जिन्होंने इस बात को समझ लिया उनकी फिल्मों में अभिषेक ने कमाल कर दिया.

राम गोपाल वर्मा की ‘ सरकार ( 2005 ) में उनका रोल अमिताभ से छोटा था परन्तु क्लाइमेक्स में जिस तरह अपने चेहरे पर कोई भाव लाये बगैर वे अपने दुश्मनों का सफाया करते है उस वक्त वे ‘ गॉडफादर ‘ के माइकेल कोर्लेऑन ( अल पचिनो ) के समकक्ष जा खड़े होते है.

अभिषेक बच्चन की असफल फिल्में

एक्टिंग की यही तीव्रता ‘ युवा ‘के लल्लन और ‘ गुरु ‘के गुरुकांत देसाई में भी नजर आती है. शुरूआती दर्जन भर फिल्मों की असफलता के बाद अभिषेक को पहली सफलता ‘ युवा ‘ ( 2004 ) में मिली थी.

Image source: official Facebook account of Abhishek bachhan
Image source: official Facebook account of Abhishek bachhan

 

इस फिल्म के अलावा उनकी लगातार पांच फिल्मेंं बैक टू बैक सफल रही धूम (2004 ) सरकार ( 2005 ) बंटी और बबली (2005 ) ब्लफ मास्टर ( 2005 ) कभी अलविदा ना कहना ( 2006 ) प्रमुख हैं.

इतनी सफलता के बाद भी अभिषेक को वह मुकाम नहीं मिला जिसके वे हकदार थे. उनकी गिनती कभी शीर्ष नायकों में नहीं हुई. इस ट्रेजेडी की एक वजह यह भी थी कि उनकी समस्त सफल फिल्मे ‘ मल्टी स्टारर ‘ थी.

42 फिल्मों में से 11 फ्लॉप कहां खड़े हैं अभिषेक

इन फिल्मों की सफलता का श्रेय उनके सहनायक ले गए. ठीक इसी तरह असफलता का ठीकरा उनके माथे फोड़ा गया. अभिषेक अब तक बयालीस फिल्मों में आ चुके हैं. इन फिल्मों में उनकी ग्यारह फिल्मे फ्लॉप रही और बारह फिल्मे सुपर फ्लॉप रही.

उनकी कुछ फिल्मों को लेकर उनकी समझ पर प्रश्न चिन्ह लगता रहा है कि क्या सोचकर उन्होंने ये फिल्में साइन की होगी. जे पी दत्ता से वे इस कदर अनुग्रहित रहे कि उनकी ‘ एल ओ सी ‘ में छोटी सी भूमिका और ‘ उमराव जान ‘ के बकवास रीमेक में भी काम करने से मना नहीं कर पाए.

अभिेषेक बच्चन की फिल्मी भूूलें

इसी प्रकार ब्लॉकबस्टर हॉलिवुड फिल्म ‘ इटालियन जॉब ‘ का घनघोर कचरा हिंदी संस्करण ‘ प्लेयर ‘ उनकी जिंदगी की सबसे बड़ी भूल मानी जा सकती है. इसी तरह अच्छी कहानी परन्तु कमजोर स्क्रिप्ट ‘ खेले हम जी जान से ‘ आशुतोष ग्वारिकर के निर्देशक होने के बाद भी सांस नहीं ले सकी.

अपने अठारह वर्षीय कैरियर में अब तक यह अभिनेता तीन ‘ बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर ‘ अवॉर्ड कमा चुका है. बतौर एक्टर प्रोड्यूसर पिता पुत्र के संबंधों पर आधारित उनकी फिल्म ‘ पा ‘ उन्हें नॅशनल अवॉर्ड दिला चुकी है.

मनमर्जियां सफलता दिलाएगी 

पिछले दो वर्षों से अभिषेक ने फिल्मों से दूरी बना ली थी. वे कुछ बेहतर करना चाहते थे. प्रसिद्ध फिल्म समीक्षक अनुपमा चोपड़ा से बात करते हुए उन्होंने साफगोई से स्वीकार किया था कि आत्म संतुष्टि के भाव ने उनकी संघर्ष करने की क्षमता ख़त्म कर दी थी.

Image source: Film Poster
Image source: Film Poster

 

अब वे पुनः लौटने वाले है. ख्यातनाम फिल्मकार आनंद एल राय की अनुराग कश्यप निर्देशित ‘ मनमर्जियां ‘ उनकी कमबैक फिल्म होगी.

शायर गीतकार साहिर लुधियानवी और जग प्रसिद्ध लेखिका अमृता प्रीतम के संबंधों पर बायोपिक को संजय लीला भंसाली बना रहे हैं. फिल्मों से इतर प्रो कब्बडी लीग और इंडियन सुपर लीग फूटबाल के सहमालिक जूनियर बच्चन से दर्शक आगामी फिल्मों में भी उम्मीद लगाए बैठे हैं. वे ही साबित कर सकते हैं कि वे खुशकिस्मत हैं और अभिषेक होना वाकई चुनौती भरा दिलचस्प काम है.

By रजनीश जैन

दिल्ली में जेएनयू से पढ़े और मध्य प्रदेश के शुजालपुुुर में रहने वाले रजनीश जैन विभिन्न समाचार पत्र -पत्रिकाओं में स्वतंत्र लेखन करते हैं. फिल्मों पर विशेष लेखन के लिए चर्चित. इंडिया रिव्यूज डॉट कॉम के नियमित स्तंभकार.

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