बेरोजगारी देश की बड़ी समस्या है और देश की आबादी का बड़ा हिस्सा नौकरियों की तलाश में है. आर्थिक सर्वे 2017 के अनुसार रोजगार सृजन मुख्य चुनौती है. ऐसे में बड़ा सवाल है कि क्या नौकरियों का सृजन केवल सरकारी आश्वासनों और प्राइवेट सेक्टर से ही हो पाएगा? सबसे बेहतर उपाय है कि रोजगार मांगने वाला नहीं, रोजगार देने वाले बनाने होंगे. राह थोड़ी कठिन जरूर है लेकिन कदम बढ़ाने होंगे. नौकरियां कम हो रही हैं. ऐसे में युवाओं को जोखिम से नहीं घबरा कर नई संभावनाएं तलाशनी होगी.
भारत प्राचीन काल से 17वीं सदी तक विश्व की बड़ी अर्थव्यवस्था थी, रोजगार भी प्रचुर मात्रा में सभी के लिए उपलब्ध थे. प्राचीन भारत में रोजगार मुख्य रूप से कृषि तथा अन्य पेशागत तरीकों से मिलता था. रोजगार के लिए सामाजिक ढांचा था जिस आधार पर कार्य निष्पादन होता था. कृषि के साथ-साथ व्यापार संघ भी थे जिससे भी लोगों को रोजगार मिलता था. भारत 18वीं शताब्दी तक वैश्विक उत्पादन में अग्रणी था, बड़ी अर्थव्यवस्था भी थी. कपडा व्यापर में ढाका की मलमल, बनारस की सिल्क कारीगरी दुनिया में मशहूर थी. आभूषण, धातु, मिट्टी के बर्तन, चीनी, तेल और इत्रा जैसे उद्योग काफी फले-फूले.
अंग्रेजों की नीति से चौपट हुआ भारत का रोजगार-
अंग्रेजों के भारत में प्रवेश के पहले लघु और कुटीर उद्योगों में आबादी के बड़े हिस्से को रोजगार मिला हुआ था. अंग्रेजों ने भेदभावपूर्ण नीति अपना कर जब भारतीय उद्योग-धंधों को चौपट कर दिया तो बड़ी संख्या में लोग बेरोजगार हो गए. फलस्वरूप भारत औद्योगिक राष्ट्र से गरीब राष्ट्र बन गया और बेरोजगारी बड़ी समस्या बन गई. रिपोर्ट के मुताबिक आज भी करीब 6.50 लाख लोग एनसीएस पोर्टल पर पंजीकृत बेरोजगार हैं. सेना भर्ती में 4 वर्ष में 8.70 लाख युवा पंजीकृत हुए, 11,031 का सिलेक्शन हो पाया. 500 बड़ी कंपनियों में भर्ती आधी हुई. जीएसटी आय में 80 हजार करोड़ की कमी संभव है. अक्तूबर 2016 तक मिला रोजगार पिछले 3 साल के आंकड़ों से 39 प्रतिशत कम है.
युवाओं को जोखिम लेकर पैदा करने होंगे रोजगार-
सरकार द्वारा रोजगार उपलब्ध करने के कई दावे किये जाते है, लेकिन रोजगार फिर भी नहीं मिलता. संयुक्त राष्ट्र के आंकलन के मुताबिक साल 2018 तक नए रोजगार की कोई भी संभावना नहीं है. संगठित और असंगठित क्षेत्रों में जो रोजगार था भी, वो अब धीरे-धीरे खत्म हो रहा है. एक एजेंसी के मुताबिक 33 हजार लोग जॉब मार्केट में रोजगार के लिए आ जाते हैं लेकिन इसकी तुलना में सरकार की ओर से रोज लगभग 500 रोजगार के अवसर ही उपलब्ध कराए जा रहे हैं. युवाओं को जोखिम वाले क्षेत्रों में जा कर रोजगार की संभावनाएं तलाशनी होगी. सर्वे के एक आंकड़े के मुताबिक देश के आईटी सेक्टर में इस साल लाखों नौकरियों में छंटनी की आशंका जताई जा रही है. ऐसे में युवाओं को अपने कम्फर्ट जोन से बाहर निकल कर जोखिम वाले क्षेत्रों की ओर कदम बढ़ाने होंगे जिससे वे खुद के लिए भी और साथ-साथ अन्य लोगों के लिए भी रोजगार के अवसर पैदा करेें.
बदलाव के अनुरूप करना होगा काम-
दुनिया के वर्तमान में वैश्विक ग्राम (ग्लोबल विलेज) में बदलने के चलते कॉम्पिटिशन बढ़ गया है. बढ़ते कॉम्पिटिशन के साथ ही तकनीक में भी नए-नए बदलाव आ रहे हैं. इन बदलावों को समझने के लिए ‘एक्टिव लर्निंग‘ जरूरी है, यानी बदलती हुई चीजों को सक्रियता के साथ सीखना. कंपनियां भी अपने कर्मचारियों को नए बदलावों के अनुसार प्रशिक्षित करती रहती हैं. जैसे इंफोसिस और कोग्निजेंट जैसी आईटी कंपनियों ने बदलाव के अनुरूप कार्य किया.
रोजगार देने की मानसिकता बनाना होगी-
देश में जमीन जायदाद के विकास, संगठित खुदरा, सौंदर्य एवं स्वास्थ्य, परिवहन और लॉजिस्टिक के नए क्षेत्रों में सर्वाधिक रोजगार सृजित करने की क्षमता है. भारत में बेरोजगारी से छुटकारा पाने के लिए युवाओं की मानसिकता और उनमे व्यापारिक माहौल बनाने की आवश्यकता है. युवाओं को रोजगार पाने की बजाए रोजगार देने की मानसिकता बनाना होगा.