क्या हुआ है नेपाल में?
हाल ही में ओली के नेतृत्व वाले गठबंधन की नेपाल में इतिहासिक जीत हुई है. नेपाल में ऐसा पहली बार हुआ है कि किसी पार्टी को स्पष्ट बहुमत मिला हो. नेपाली जनता अब यह तय कर चुकी है कि नेपाल में स्थाई रूप से शांति रहे और देश तरक्की की ओर अग्रसर हो. के.पी. शर्मा ओली की हालिया भारत यात्रा कुल मिलकार इसी पर केन्द्रित रही लेकिन भारत इस यात्रा को किस रूप में लेगा यह तय भारत को करना है. दोनों देशों का संबंध बिल्कुल अलग तरीके का संबंध है. इधर के दिनों में नेपाल और भारत के बीच जो कटुता आई है उसके पीछे का कारण भारतीय नेतृत्व की अदूरदर्शिता है. साथ ही नेपाल नेतृत्व की हीन भावना एवं असुरक्षा बोध का होना है. सच पूछिए तो इसके लिए भी भारतीय नेतृत्व ही जिम्मेवार है.
नेपाल का बड़ा सहयोगी भारत
इंडिया नेपाल का बड़ा सहयोगी रहा है और वहां बदलाव में उसकी भूमिका भी रही है. लेकिन कुछ ऐसे मौके आए जिसमें भारत की अपेक्षा के विपरीत नेपाल ने काम किया. जैसे भारत चीन युद्ध के समय दुश्मन कहा जाने वाला देश पाकिस्तान भारत के साथ आकर खड़ा हो गया जबकि नेपाल रहस्यमय ढंग से चुप हो गया. हालांकि नेपाल के राष्ट्राध्यक्ष भारत को अन्य देशों की तुलना में ज्यादा महत्व देते रहे हैं.
नेपाल में परंपरा रही है कि वहां प्रधानमंत्री अपने विदेश दौरों की शुरुआत भारत से करते हैं लेकिन ओली को चीन के करीबी के तौर पर देखा जाता रहा है. साल 2016 में ओली ने सार्वजनिक तौर पर भारत की आलोचना करते हुए आरोप लगाया था कि वो नेपाल के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप कर रहा है.
भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की शनिवार को नई दिल्ली के हैदराबाद हाउस में मुलाकात हुई. मिशन ओली के इस दौरे में गर्माहट तो खूब दिखी लेकिन उनकी ओर से जारी बयान में साफ तौर पर कहा गया कि उनकी सरकार भरोसे की बुनियाद पर दोनों देशों के बीच रिश्तों की बुलंद इमारत खड़ी करना चाहती है.
ओली की ओर से जारी बयान में कहा गया, मैं इस बार हमारे रिश्तों को 21वीं सदी की वास्तविकता के आधार पर नई ऊंचाई पर ले जाने के रास्ते तलाशने का मिशन लेकर भारत आया हूं. हम आदर्श रिश्ते बनाना चाहते हैं. भारतीय मीडिया में छपी खबर के मुताबिक भारतीय विदेश सचिव विजय गोखले के हवाले से बताया गया कि दोनों देशों के बीच रक्षा और सुरक्षा, कृषि और व्यापार में साझेदारी बढ़ाने के साथ रेलवे और पानी के रास्ते संपर्क बेहतर करने पर जोर दिया गया है.
यही नहीं भारत के रक्सौल से नेपाल की राजधानी काठमांडू को इलेक्ट्रिक रेल लाइन से जोड़ने पर सहमति बनी. इसके लिए भारत वित्तीय सहायता मुहैया कराएगा. गोखले के मुताबिक मोदी ने ओली से कहा कि भारत नेपाल का विश्वसनीय साझेदार बना रहेगा और वो नेपाल के साथ रिश्ते मजबूत करने को लेकर प्रतिबद्ध भी रहेगा. लेकिन क्या ये भरोसा चीन से लगातार नजदीकी बढ़ा रहे नेपाल को ये यकीन दिला सकता है कि भारत उसका सबसे विश्वसनीय सहयोगी है? यह प्रश्न बेहद गंभीर है. इसका जवाब भी नेपाल को देना है और भारतीय कूटनीतिक को तय करना है कि 21वी सदी में आखिर भारत और नेपाल के रिश्ते कैसे होंगे?
चीन और भारत के बीच कहां झुकेगा नेपाल?
मोदी और ओली की शिखर वार्ता में जो बात आई उसमें एक नीतिगत मुद्दा तो है ही. ये साफ है कि नेपाल में चीन का प्रभाव बढ़ रहा है. खास तौर पर बीते तीन साल में चीन का असर काफी बढ़ा है और इस दौरान भारत और नेपाल के संबंध में उसी अनुपात में काफी गिरावट आई है. केपी शर्मा ओली इस बार प्रधानमंत्री बनने के बाद भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के न्योते पर जितनी जल्दी दिल्ली गए हैं, उससे लगता है कि नेपाल के साथ संबंध सुधारना भारत की भी प्राथमिकता बन गई है साथ ही नेपाली कूटनीतिक यह समझने लगे हैं कि वह जितना भारत की ओर झुकाव दिखाएंगे उतना ही अधिक चीन से फायदा उठा सकते हैं. संभवतः नेपाल उसी रास्ते पर चलने की कोशिश कर रहा है.
क्या होगी ओली की प्राथमिकता?
क्या प्रधानमंत्री ओली की प्राथमिकता सूची में चीन की जगह भारत आ गया है, ये बताना अभी मुश्किल है. ये जरूर है कि जब वो पहली बार प्रधानमंत्री बने थे उस समय नेपाल का संविधान जारी हुआ था और उसे लेकर भारत को कुछ एतराज था. नेपाल का संविधान लागू होने के बाद भारत ने एक आर्थिक नाकेबंदी लगाई. इस वजह से नेपाल में भारत विरोधी माहौल बना. ओली ने उन भावनाओं के साथ अपना जुड़ाव दिखाया और उन्होंने एक वैकल्पिक व्यवस्था खड़ी करने की कोशिश की. चीन के साथ व्यापारिक समझौते पर दस्तख्त किए. यह नेपाल के राष्ट्रीय हित में जाता है और कोई भी देश अपना हित देखकर ही द्वीपक्षीय समझौता करता है. नेपाल भी वही कर रहा है.
क्या है चीन का इरादा?
ये जरूर है कि चीन की उपस्थिति नेपाल में बढ़ गई है और बड़े पैमाने पर पूंजी निवेश भी आया है. नेपाल में चीन बड़ा प्लेयर बनकर आया है और ये भारत के लिए सिरदर्द है. जो मौजूदा स्थिति है उससे नेपाल तत्काल पीछे हट सकता है, ऐसा नहीं लगता. नेपाल और भारत का रिश्ता बहुत पुराना है लेकिन राजनीतिक और कूटनीतिक संबंधों में काफी उतार-चढ़ाव आए हैं. बीते 10-12 साल में नेपाल में भारत काफी अलोकप्रिय हुआ है.
इधर, भारत पर आरोप लगते हैं कि वो नेपाल की राजनीति को माइक्रो मैनेज कर रहा है. भारत के हस्तक्षेप को नेपाल के लोग अच्छा नहीं मानते हैं. नेपाल ने नाकेबंदी के वक्त चीन का रुख किया और उस कठिन परिस्थिति में उसे समर्थन का भरोसा मिल गया. चीन नेपाल के साथ रेल संपर्क बढ़ाने के लिए आगे आ गया है. चीन तिब्बत से लेकर लुंबिनी तक रेल संपर्क ले जाना चाहता है. यह नेपाल के विकास के लिए हितकर है और जरूरी भी है. इसे अगर यह कहा जाए कि नेपाल सभी मुद्दों पर चीन के साथ होगा तो ऐसा संभव नहीं लगता है.
चीन की ओर बढ़ता नेपाल?
हाल में नेपाल ने चीन की वन बेल्ट वन रोड परियोजना पर दस्तख्त किए हैं. इस कारण भी चीन काफी नजदीक आ रहा है लेकिन नेपाल के भारत के साथ संबंध का आयाम चीन के साथ संबंध से अलग है. मौजूदा दौर में बनी सहमति को लेकर भी नेपाल में थोड़ी आशंका है. भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब साल 2014 में पहली बार नेपाल गए थे, उस समय उन्होंने कहा था कि भारत ने नेपाल में जो परियोजनाएं ली हैं उनके अनुपालन को हम विश्वसनीय बनाएंगे.
ओली के इस दौरे के बाद दो चीज देखनी है. पहली ये कि जिन परियोजनाओं की बात हुई है, उन्हें समय सीमा के अंदर पूरा किया जाएगा या नहीं. दूसरा ये कि नेपाल की आंतरिक राजनीति में भारत हस्तक्षेप करना बंद करेगा या नहीं. दोनों देशों के संबंधों के ये दो पेंच हैं.
हाइड्रो प्रोजेक्ट या विकास के दूसरे ऐसे प्रोजेक्ट जिन्हें पांच साल में पूरा होना है अगर वो बीस साल तक पूरे नहीं होते तो विकास का लाभ लोगों को नहीं मिल पाता है और भारत विरोधी भावनाएं प्रभावी होने लगती है. इसलिए भारत को नेपाल में अपनी ताकत बढ़ाने के लिए नेपाल को कई प्रकार से सहयोग करना होगा. इधर नेपाल को भी यह सोचना होगा कि वह चीन के साथ संबंध किस शर्त पर बनाना चाहता है.
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