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सोशल मीडिया के खतरे और आंतरिक सुरक्षा, कितना सेफ है इंडिया?

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सोशल मीडिया और आंतरिक सुरक्षा, कितना सेफ है इंडिया?

ब्रिटिश रिसर्च कंपनी कैंब्रिज एनालिटिका द्वारा 5 करोड़ यूजर्स के डेटा के इस्तेमाल ने जहां फेसबुक की प्राइवेसी को लेकर सवाल खड़े किए हैं, वहीं इंटरनेट और सोशल मीडिया के असामाजिक और आतंकी गुटों द्वारा गलत इस्तेमाल ने पूरी दुनिया में चिंता बढ़ा दी है. बीते कुछ सालों में सांप्रदायिकता, कट्टरता से लेकर कई तरह की घरेलू हिंसा में भी सोशल मीडिया और इंटरनेट की भूमिका रही. 

वी आर सोशल एंड हूटसूइट की सालाना डिजिटल रिपोर्ट के मुताबिक फेसबुक यूजर्स की संख्या के मामले में भारत पहले नंबर पर है. ‘इंटरनेट इन इंडिया 2017’ रिपोर्ट के मुताबिक इंडिया में दिसंबर 2017 में इंटरनेट यूजर्स की संख्या लगभग 48 करोड़ थी और यह संख्या जून 2018 तक इंटरनेट यूजर्स की संख्या 50 करोड़ की संख्या को पार कर सकती है. बहरहाल इन आंकड़ो के साथ चिंता की बात सेफ्टी और सिक्योरिटी को लेकर है.

कैसे बढ़ी सोशल मीडिया पर कट्टरता

साइबर पीस फाउंडेशन दिल्ली की मानें तो देश में असामाजिक तत्वों ने फेसबुक और सोशल मीडिया का गलत इस्तेमाल कर कई हिंसा की घटनाओं को अंजाम दिया है. कुछ समय पहले बेंगलुरु में उत्तर पूर्वी राज्यों के युवाओं के साथ गलत व्यवहार हुआ. इसमें सोशल मीडिया की गलत सूचनाओं का इस्तेमाल हुआ. इधर पंजाब सहित कुछ राज्यों में आतंकवाद फैलाने के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल किया गया जो कि देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए बड़ी चुनौती बन गया.

पंजाब में तो फेसबुक पर 1984 सिख दंगे की घटना के बारे में भ्रामक और मिथ्या प्रचार किया गया. ये मैसेजेस थे जो सिखों पर जुल्म करने वाले और दंगे को आरोपी नेताओं की हत्या करने के लिए उन्हें उकसाने वाले थे. यकीनन ये समाज की शांति को भंग करने वाला काम था. ऐसे ही यूपी, बिहार, बंगाल, राजस्थान, तमिलनाडु, महाराष्ट्र जैसे राज्यों में होने वाली छिटपुट घटनाओं में सोशल मीडिया का गलत इस्तेमाल सामने आया. इससे हमारे पुलिस प्रशासन की मुश्किलों को बढ़ाया ही.

कैसे बनता है सोशल मीडिया हथियार

दरअसल, सोशल मीडिया पर झूठे आंकड़े, झूठी घटनाएं एवं सूचनाओं को प्रभावी तरीके से फोटो, वीडियो एवं ऑडियो के जरिए प्रसारित कर लोगों के अंदर कट्टरवाद एवं सांप्रदायिकता फैलाई जाती है. यह बहुत ही खतरनाक है. बल्क मैसेजेस वायरल किए जाते हैं. फोटोशॉप के जरिये प्रतिष्ठित लोगों की फोटो को भ्रामक जानकारी के आधार पर फैलाया जाता है और समाज का माहौल बिगाड़ा जाता है.

बीते साल जुलाई महीने में बंगाल के बशीरहाट की हिंसा के बाद तो सोशल मीडिया को लेकर बड़ी चिंता सामने आई. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक बशीरघाट हिंसा की शुरुआत के पीछे फेसबुक पर डाली गई एक ऐसी तस्वीर थी जिससे एक विशेष धर्म के लोग नाराज हो गए. ऐसे ही कश्मीर में पत्थरबाजों से लेकर अलगाववादी भारी भीड़ को इकट्ठा करने के पीछे जमकर वाट्सएप का इस्तेमाल हुआ. पिछले एक साल में कई जगह फैले सामाजिक और धार्मिक तनाव में कहीं ना कहीं सोशल मीडिया का चेहरा सामने आया है.

सोशल मीडिया का दूसरा पक्ष

कई देशों की खुुफिया एजेंसियों ने सोशल मीडिया के जरिये आतंकी संगठनों पर नजर रखने का सफल प्रयास किया. लेकिन आतंकी संगठन सोशल मीडिया के इस्तेमाल में आगे निकल गए. मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो ब्रिटेन में फेसबुक, टेलीग्राम, वाट्सएप, ट्विटर के जरिए इस्लामिक स्टेट (आइएस) ने घुसपैठ की.

आइएस ने ऑनलाइन जेहादी तैयार किए और इसमें फेसबुक का यूज किया. वहीं ऑनलाइन मैगजीन के जरिए अपना प्रचार-प्रसार किया. कुल मिलाकर सोशल मीडिया की शुरुआत के साथ ही खतरे कम नहीं रहे. हालांकि साइबर कंपनियां ऐसी टेक्नॉलॉजी विकसित करने की कोशिश कर रही हैं, जिससे फेक न्यूज, हेट स्पीच, फेक फोटो, फेक वीडियो का नोटिफिकेशन होते ही, सोशल साइट से खुद ही हट जाए. लेकिन इसमें अभी समय लगेगा.

By गौतम चौधरी

वरिष्ठ पत्रकार

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