Thu. Nov 21st, 2024

चीन की जलनीति से मंडरा रहा एशिया की आबादी पर खतरा, कैसे निपटेगा भारत?

china water policies in Tibet dangerous sign for Asia china building dam in Tibet
चीन की जलनीति से मंडरा रहा एशिया की 50{4f87ad8c368bc179e2d180453c56a403e7e581457176ed0e8ee6656745545539} आबादी पर खतरा, कैसे निपटेगा भारत?

चीन अपनी जलनीति को धारदार जिस तरीके से अंजाम दे रहा है, उससे आने वाले समय में विश्व की लगभग 50 प्रतिशत जनसंख्या तबाह हो सकती है. चीन उस पानी के टंकी के साथ छेड़छाड़ कर रहा है जो संवेदनशील है और एशिया के लगभग सभी देशों को प्राकृतिक तरीके से पानी उपलब्ध कराता है.

दरअसल चीन तिब्बत से निकलने वाली नदियों पर लगातार बांध बना रहा है.

तिब्बत एशिया की प्रमुख नदियों का स्रोत है. यहां सिंधु, ब्रह्मपुत्र, सतलज, करनाली, अरुणकोशी, घघरा, मानस, दिबांग, लोहित, इरावदी, सालविन, मेकांग, यांगत्से तथा हुआंगहो हैं. ये नदियां अंतर्राष्ट्रीय नदियां हैं ऐसा कहें कि वैश्विक नदियां हैं. क्योंकि नदियों को किसी देश की सीमा के अंदर नहीं बांधा जा सकता है.

एक तरह से ये तमाम नदियां तिब्बत, पाकिस्तान, भारत, नेपाल, भूटान, बंगलादेश, म्यांमार, थाललैंड, लॉस, कम्पुचिया, बियतनाम तथा चीन होकर बहती है. और यही कारण है कि ये देश विश्व की घनी आबादी वाले उपजाऊ देशों की श्रेणी में आते हैं. यहां विश्व की आधी मानव जाति निवास करती है. ये नदियां एशिया के इन देशों की प्राणधारा है. विश्व की 47 प्रतिशत जनसंख्या का इन्हीं नदियों के द्वारा भरण-पोषण होता है. ये नदियां एशिया के इन देशों की साझी विरासत है.

क्या कर रहा है चीन

ये नदियां बहुत महत्वपूर्ण है. तिब्बत के पठार पर कोई छेड़छाड़ होता है तो इके दुष्परिणाम एशिया के सभी देशों को भुगतना पड़ेगा. लेकिन चीन इस ओर ध्यान देने की बजाय पूरे एशिया महाद्वीप को तबाह करने की योजना बना रहा है. चीन ने तिब्बत में जंगलों की अंधाधुंध कटाई कर रहा है. वहां के खनिज पदार्थों के लिए पर्यावरण का ध्यान न रखते हुए, अनियंत्रित खनन कर रहा है. यही नहीं इन नदियों पर अनगिनत बांध बनाकर वह एशिया के जल स्रोतों पर नियंत्रण के फिराक में है. चीन अपने साजिश में कामयाब रहा तो जल्द ही एशिया की पानी की टंकी नष्ट हो सकती है और पूरी एशिया में तबाही आ सकती है.

कैसे हो सकती है तबाही

तिब्बतन वॉटरशेड से निकलने वाली नदियों में एशिया की प्रमुख नदियां जैसे-सिंधू (कुल लंबाई-2900 किलोमीटर, जिसमें 800 किलोमीटर तिब्बत में है), सिंधू भारत की सात पवित्र नदियों-सप्त सिंधूओं में एक है. इसके तट पर भारत की सभ्यता विकसित हुई बताई जाती है. सिंधु पंजाब-सिंध (पाकिस्तान) के 80 प्रतिशत भाग को सींचती है. सिंध को सिंधु नदी का दान कहते हैं. सिंधु विश्व की उन दस नदियों में जिनका आगामी 20 वर्षो में सूख जाने की आशंका है.

काटे जा रहे हैं लगातार पेड़

सिंधु बेसिन के 90 प्रतिशत वन काट डाले गए हैं. अब यहां केवल 0.4 प्रतिशत वन हैं. सिंधु बेसिन में चीन 60 मीटर से अधिक ऊंचाई के तीन डैम बना रहा है. सिंधु का तिब्बती नाम सिंगेखबाब है. ब्रह्मपुत्र (कुल लंबाई-2897 किलोमीटर, जिसमें 1623 किलोमीटर तिब्बत में, कैलाश मानसरोवर के अपने उदगम से 1600 किलोमीटर तीर के तरह सीधा पूर्व की दिशा की ओर बहता हुआ यह हठात पे के पास दक्षिण की ओर मुड़कर एक तंग और गहरी घाटी में प्रवेश करता है. यह घाटी नामच्छा बरवा (25445 फीट ऊँचाई) ग्यालाफेरी (23450 फीट) पर्वत के बीच में है.

क्यों कर रहा है चीन ऐसा

चूंकि तिब्बत पर चीन का अवैध कब्जा है इसलिए वह इन नदियों पर भी अपना ही प्रभुत्व मानता है. वह तिब्बत की सीमा में बड़ी तेजी से तिब्बत के संसाधनों का शोषण कर रहा है. दुनिया के देश देखकर भी अनदेखी कर रहे हैं, जिस प्रकार चीन अपनी योजना में आगे बढ़ रहा हैं उसमें वह सफल रहा तो वह न केवल अपने देश का अहित करेगा बल्कि एशिया के एक बड़े भूभाग को संकट में डाल देगा.

देखा जाए तो इस मामले पर भारत गंभीरता से सोचना होगा और इन बिन्दुओें को केन्द्र में रखकर हिमालय की नदियों से संपोषित देशों का एक मोर्चा बनाना होगा. यह तभी सफल होगा जब हिन्दुस्तान और पाकिस्ता एक मंच पर आगर पर्यावरण के मुद्दों पर सोचेंगे और आपसी कटुता मिटाएंगे.

क्या हो रहा है चीन में

चीन में बहुराष्ट्रीय कंपनियां चीन को उकसा रही है. वह उन्हीं राक्षसी प्रवृति वाली कंपनियों की चाकरी में व्यस्त है. चीन को इससे निजात दिलाने के लिए चीन जनता को भी साथ लेना होगा इसके लिए चीन में बड़ी तसल्ली से इस बात का प्रचार करना होगा कि चीन जिस प्रकार तिब्बत के वॉटर टैंक को तबाह करने की योजना बना रहा है उससे न केवल अन्य देशों को अपितु चीन की जनता को भी घाटा होगा.

चीन में जो बहुराष्ट्रीय पैसा लगा है वह तो अपना मुनाफा कमाकर चले जाएंगे लेकिन भुगतना चीन की जनता को पड़ेगा. इस दिशा में भरत को भी सतर्क रहना चाहिए और चीन मॉडल से दूर रहनी चाहिए.

By गौतम चौधरी

वरिष्ठ पत्रकार

Related Post

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *