हर लड़की के जीवन में एक ऐसा समय आता है, जब उसे अपने पिता का घर छोड़ ससुराल में जाना होता है और यही समय एक लड़की के जीवन का सबसे कठिन समय भी होता है, जिस घर में वह पली बढ़ी होती है उसे छोड़ना उसके लिए बहुत कठिन होता है पर फिर भी इस कठिन राह से उसे गुजरना ही होता है.
इस तरह वह प्रवेश करती है, एक ऐसे घर में जहां उसके लिए सब अनजान होते हैं. इस समय उसे सबसे अधिक जरूरत होती है अपनेपन और प्यार की, जो उसे उसके पति व ससुराल के सदस्यों से मिलना चाहिए और अगर वह यह सब पा लेती है तो कब वे अनजान परिचित बन जाते हैं, पता ही नहीं चल पाता.
इस परिचित वातावरण के लिए उसे सबसे ज्यादा सहयोग उसके पति का चाहिए होता है, लेकिन हमारे भारतीय समाज में अगर बेटा पत्नी के साथ सहयोग देता नजर आता है, तो उसे संज्ञा दी जाती है ‘जोरू का गुलाम’ की शायद माता-पिता के लिए असह्य होता है कि जो बेटा अभी तक उनकी हां में हां करता आया है, वह किसी और की हां में हां करें.
अगर माता-पिता एक संतान के प्रति अपना फर्ज निभाते हैं, तो उस नववधू की कल्पना कीजिए जो उनके बेटे की खातिर अपना घर, माता-पिता, भाई-बहन छोड़ कर आती है, क्या उसके प्रति माता-पिता का कोई फर्ज नहीं होता? क्या उनका प्यार सिर्फ बेटे तक ही सीमित होता है?
शायद यही कारण है कि जब नववधू नए घर में प्रवेश करती है तो उसके मन में यह डर पहले से होता है कि वह नए घर में एडजस्ट कैसे करेगी. इस समय में पति व ससुराल के अन्य सदस्यों को चाहिए कि वे नववधू के साथ सहजता से व्यवहार करें और अपने प्यार से लड़की के मन में बैठे इस डर को निकालें अगर नववधू को अपने माता-पिता का प्यार अपने सास-ससुर से मिल जाए तो शायद आज बहुत से संयुक्त परिवार देखने को मिल सकते हैं.
हर नववधू बहुत से सपने सजाए अपनी गृहस्थी में कदम रखती है, पर जब उन्हें अपने सपनों का संसार टूटता हुआ नजर आता है तो उसे अलग रहना ही बेहतर लगता है और तब उस पर यह तोहमत लगा दी जाती है कि देखो, माता-पिता से बेटे को अलग करा दिया.
घर तोड़ने में न केवल ससुराल वाले बल्कि रिश्तेदार भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. कई रिश्तेदार इतने खाली होते हैं कि उन्हें दूसरों के घर में मजे लेने के अतिरिक्त कुछ नहीं आता वे लड़के के माता-पिता को तरह-तरह की सलाहें देते रहते हैं, ताकि वे अपनी बहू को काबू रख सकें और माता-पिता भी उनकी बातों में आकर अपनी मूर्खता दिखा जाते हैं जिसका परिणाम न उनके लिए हितकर होता है और न ही उनके बेटे बहू के लिए.
ऐसे रिश्तेदारों से सावधान रहें क्योंकि घर बनाने में तो बहुत समय लगता है, पर टूटने में बहुत कम नववधू आपकी बेटी ही होती है और उसे बहू नहीं बेटी के रूप में ही देखने का प्रयास करें उसकी भावनाओं और इच्छाओं को सम्मान दें उस पर अपने विचार थोपें नहीं बल्कि उसके विचार जानें और उसकी पसंद नापसंद का ख्याल रखें.
अगर नववधू को आप प्यार देंगे तो बदले में आपको भी प्यार व सम्मान मिलेगा जिसकी आशा ससुराल वाले बहू से रखते हैं अगर ससुराल वाले बहू से यह आशा रखते हैं कि वह उनके परिवार में एडजस्ट हो जाए तो कुछ एडजस्टमेंट आप भी करिए.