दिल्ली देश में वायु प्रदूषण का सबसे खतरनाक उदाहरण बन गई है. इस साल सुप्रीम कोर्ट ने पूरे एनसीआर क्षेत्र में पटाखों की बिक्री पर पाबंदी लगा दी. हालांकि कोर्ट के इस कदम से लोगों में पर्यावरण के प्रति ज्यादा जागरूकता नहीं दिखाई दी और बंदिशों के बावजूद दीपावली पर पल्यूशन को लैवल एनसीआर में खतरनाक स्तर को छू गया. दिल्ली के अलावा उत्तर भारत के लुधियाना, दिल्ली, गुरुग्राम व फरीदाबाद आदि शहरों में प्रदूषण का जो स्तर दिखाई दिया वह खतरे की घंटी है.
डराते हैं ये आंकड़े
ऑन लाइन पोर्टल फर्स्ट-पोस्ट और प्रमुख अंग्रेजी समाचार-पत्र ‘द हिंदू’ में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया भर में प्रदूषण से होने वाली कुल मौतों में से सबसे अधिक 28 प्रतिशत मौत भारत में होती है. अखबार ने ‘लांसेट कमीशन ऑन पॉल्यूशन एंड हेल्थ’ का उल्लेख करते हुए लिखा है कि दुनिया में भारत सबसे प्रदूषित देश है. वर्ष 2015 में यहां प्रदूषण की वजह से करीब 25 लाख लोग मौत के मुंह में चले गए. इसी तरह केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने दीपावली पर हुए प्रदूषण के जो आंकड़े प्रस्तुत किए हैं, उससे यह स्पष्ट हो जाता है कि केवल सरकारी प्रयासों से प्रदूषण से मुक्ति नहीं पाई जा सकती.
कब तक निर्भर रहेंगे अदालतों पर
हर मामले में हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट द्वारा ही आदेश पारित किए जाने की उम्मीद भी नहीं की जानी चाहिए. दीपावली पर सुप्रीम कोर्ट की बंदिश के बजाय यदि केंद्र और राज्य सरकारों की ओर से इस प्रकार की प्रतिबंधात्मक कार्रवाई की गई होती तो शायद इतना भी प्रभाव नहीं हो पाता. क्या यह नहीं मान लेना चाहिए कि सामाजिक जिम्मेदारियों और प्रशासनिक व्यवस्था के हर मामले में कोर्ट को ही दखल देना पड़ेगा.
क्या होगी विकास की दिशा?
हमारा देश जिस रफ्तार से विकास की ओर बढ़ रहा है उससे यह भी तय है कि प्रदूषण फैलाने वाले कारकों पर नियंत्रण सहज नहीं है. औद्योगिक विकास, बड़े पैमाने पर भवन निर्माण, वाहनों की बढ़ती संख्या और जनसंख्या वृद्धि के साथ अन्य अनेक कारणों से बढ़ रहे प्रदूषण को सरकारी उपायों या कोर्ट के दिशा-निर्देशों से रोका जाना किसी भी प्रकार संभव नहीं है.
चौंकाती है ये सच्चाई
पर्यावरण वैज्ञानिकों से लेकर पर्यावरणविद व सभी जागरूक लोग यह तय कर चुके हैं कि प्रदूषण रोकने का एकमात्र रामबाण उपाय ज्यादा से ज्यादा पौधे लगाना है. लेकिन पौधारोपण की ओर अभी भी आम आदमी का कहीं कोई रुझान देखने को नहीं मिल रहा है. हालांकि आम आदमी में पर्यावरण के प्रति चिंता और जागरूकता आई है, लेकिन इसेे संरक्षित और समृद्ध करने में पूरा समाज फिसड्डी ही साबित हो रहा है.
कारगर नहीं हो रहे उपाय
पौधारोपण की सरकारी योजनाएं और प्रयास भी अपेक्षित फलदायी साबित नहीं हो पा रही हैं. इन योजनाओं को फलदायी बनाने के लिए इनकी समीक्षा कर इन्हें नये सिरे से तैयार करने की जरूरत है. ज्यादा पौधारोपण करने के विषय में लोग यह कहकर बचने का प्रयास करते हैं कि उनके पास पौधे लगाने का स्थान नहीं है या वे पौधे तो लगाना चाहते हैं पर समय ही नहीं मिलता आदि. जहां तक स्थान उपलब्ध न होने की बात है तो वैज्ञानिक और पर्यावरणविद ऐसे कई पौधों की पहचान कर चुके हैं जिन्हें घरों की छत, बालकनी या इनडोर में लगाया जा सकता है. इन पौधों से न केवल घर की खूबसूरती भी बढ़ती है बल्कि आस-पास का पर्यावरण भी शुद्ध होता है.
क्या कहते हैं वैज्ञानिक
नासा वैज्ञानिक डॉ. बीसी वोलवर्टन ने अपनी किताब ‘हाउ टू ग्रो फ्रैश एयर’ (स्वच्छ हवा कैसे उगाएं) में ऐसे करीब पचास पौधों का उल्लेख किया है, जो पर्यावरण सुधार में बेहद कारगर साबित हो सकते हैं. इनमें कई पौधे घरों में उगाए जा सकते हैं. भारतीय आयुर्वेद में अपना अहम स्थान रखने वाले ग्वार पाठा अथवा घृत कुमारी (ऐलोवेरा) का डॉ. वोलवर्टन ने खासतौर से उल्लेख किया है. उन्होंने तो यहां तक लिखा है कि यह बूटा पीपल की तरह मंदिम रोशनी में भी आक्सीजन उत्सर्जित करता है. उन्होंने नीम, रामा तुलसी, स्नेक प्लांट (मदर इन लॉ टंग के नाम से भी जाना जाता है), पीपल और क्रिसमस कैकटस आदि पौधों का खासतौर से उल्लेख किया है.
आप भी घर पर लगाएं ये पौधें
एक पर्यावरण वैज्ञानिक जेसी ग्रे ने हालांकि इस बात की पुष्टि तो नहीं की कि ऐलोवेरा रात में भी आक्सीजन उत्सर्जित करता है, पर इतना अवश्य कहा कि प्रदूषण नियंत्रण में एलोवीरा काफी कारगर है. जाने-माने पर्यावरणविद कमल मित्तल ने भी अपनी किताब ‘‘खुद के लिए स्वच्छ हवा कैसे उगाएं (हाउ टू ग्रो ओन फ्रैश एयर) में ऐसे कई पौधों का उल्लेख किया है जिन्हें इनडोर या घर में लगाया और उगाया जा सकता है.
भारतीय मानसिकता
दिलचस्प तथ्य यह है कि लगभग सभी भारतीय घरों में इन पौधों के प्रति खासा आकर्षण रहता है. इनमें औषधीय प्रयोग में लाये जाने वाले एलोवेरा के अलावा एरिका पाम, मनी प्लांट, पीस लिली, स्नेक प्लांट और रामा तुलसी आदि प्रमुख हैं.
वैज्ञानिकों का मत है कि पांच फुट ऊंचाई के एरिका पाम के चार पौधे एक व्यक्ति द्वारा लगाने पर, पर्यावरण शुद्ध करने के लिए काफी हैं. स्नेक प्लांट की भूमिका भी इनडोर वातवरण को शुद्ध करने में अहम बताई गई है. यदि आम जागरुक शहरी अपने घरों में ऐसे पौधे लगाने में अपना योगदान दे तो न केवल उनके घर की शोभा बढ़ेगी बल्कि वातवरण शुद्ध रखने में भी उनका योगदान बढ़ेगा. जहां जगह उपलब्ध हो, वहां बड़े पौधे लगाने में भी आम आदमी को आगे आना चाहिए. जिस दिन हम प्रत्येक नागरिक बिना दूसरों से अपेक्षा किये पर्यावरण संरक्षित रखने में अपनी जिम्मेदारी तय कर लेंगे उस ही दिन पर्यावरण संतुलित रखने का हमारा अपना योगदान भी हमारे लिए ही अहम हो जाएगा.
(इस लेख के विचार पूर्णत: निजी हैं. India-reviews.com इसमें उल्लेखित बातों का न तो समर्थन करता है और न ही इसके पक्ष या विपक्ष में अपनी सहमति जाहिर करता है. यहां प्रकाशित होने वाले लेख और प्रकाशित व प्रसारित अन्य सामग्री से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है. आप भी अपने विचार या प्रतिक्रिया हमें editorindiareviews@gmail.com पर भेज सकते हैं.)
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