Floor Test Kya hai? राजनैतिक समाचारों में आजकल फ्लोर टेस्ट का जिक्र हो रहा है. महाराष्ट्र की सियासी उठापटक ने भी अब फ्लोर टेस्ट का रंग ले लिया है. ऐसे में फ्लोर टेस्ट क्या है? ये आम नागरिकों को जरूर जानना चाहिए.
जब भी किसी देश की विधानसभा में मुख्यमंत्री पद के लिए विवाद होने लगता है तो फ्लोर टेस्ट कराने की बात कही जाती है. राजनेता और राजनीति से जुड़े लोग इसे भली-भांति समझते हैं लेकिन आम व्यक्ति की समझ से आज भी ये शब्द दूर है. तो चलिये जानते हैं फ्लोर टेस्ट क्या होता है?
फ्लोर टेस्ट क्या होता है? (What is Floor Test in Politics?)
फ्लोर टेस्ट को हिन्दी में शक्ति परीक्षण कहा जाता है. हम सभी जानते हैं कि किसी भी प्रदेश की सरकार कुछ पार्टियों की सीट को मिलाकर बनती है. जिस पार्टी के पास सबसे ज्यादा सीट होती है सरकार उसी पार्टी की बनती है.
मतलब जिसके पास बहुमत होगा सरकार भी उसी की बनेगी. लेकिन काफी सारी पार्टियों के पास बहुमत नहीं होता है और वो छोटी पार्टियों से अपना समर्थन मांगती है जिसके बाद दोनों मिलकर गठबंधन की सरकार चलाते हैं.
अब मान लीजिये कि एक राज्य की विधानसभा में तीन प्रमुख पार्टी है. जिनमें से दो पार्टियों ने मिलकर एक सरकार बनाई. वहीं दूसरी ओर तीसरी पार्टी विपक्ष में आ गई.
अब विधानसभा में विपक्षी पार्टी अविश्वास प्रस्ताव लेकर आती है. जिसमें ये कहा जाता है कि ज़्यादातर विधायकों का समर्थन मुख्यमंत्री को नहीं है. तब ऐसी स्थिति में फ्लोर टेस्ट लिया जाता है. जिससे ये जाना जा सके कि किस व्यक्ति को विधायक सपोर्ट कर रहे हैं.
महाराष्ट्र में फ्लोर टेस्ट क्यों हो रहा है? (Floor Test in Maharashtra)
पिछले काफी दिनों से महाराष्ट्र में सियासी उठापटक चल रही है. साल 2019 में हुए विधानसभा चुनाव (Maharashtra Assembly Election 2019) में भारतीय जनता पार्टी को 288 सीटों में से 105 सीट मिली थी, वहीं शिवसेना को 56 सीट मिली थी. दूसरी तरफ Nationalist Congress Party को 54 सीट और कांग्रेस को 44 सीट मिली थी.
चुनाव के बाद बीजेपी और शिवसेना ने मिलकर गठबंधन किया और देवेंद्र फड़नवीस महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने. सीएम बनने के दो दिन बाद ही सीएम ने इस्तीफा दिया और फ्लोर टेस्ट हुआ था.
उस समय शिवसेना और बीजेपी के बीच मतभेद हो रहे थे जिसके चलते शिवसेना ने Nationalist Congress Party और कांग्रेस के साथ मिलकर नया गठबंधन बनाया जिसका नाम ‘महाविकास अघाडी’ रखा.
फ्लोर टेस्ट होने के बाद महाविकास अघाडी की सरकार बनी और उद्धव ठाकरे ने सीएम के रूप में शपथ ली.
शिवसेना में ही एकनाथ शिंदे हैं जो महाविकास अघाडी के पक्ष में नहीं है और वो इस गठबंधन को तोड़ना चाहते थे. उनका कहना था कि हमारे बीच वैचारिक मतभेद है और Nationalist Congress Party और कांग्रेस के द्वारा अनुचित व्यवहार किया गया है. इस बात की शिकायत शिवसेना और उद्धव ठाकरे से की गई तो उन्होंने भी अनदेखी की.
एकनाथ शिंदे शिवसेना को बीजेपी के गठबंधन में लाने के समर्थन में थे. बाद में एकनाथ शिंदे ने अपने समर्थन के दो तिहाई विधायकों को इकट्ठा किया और वे गुजरात के सूरत में उन्हें ले जाकर बीजेपी के समर्थन में ले आए. जिसके बाद उद्धव ठाकरे ने सीएम के पद से इस्तीफा दे दिया.
30 जून 2022 को एकनाथ शिंदे ने महाराष्ट्र के सीएम के रूप में शपथ ली. लेकिन अब विधानसभा का विश्वास पाने के लिए एकनाथ शिंदे को फ्लोर टेस्ट से गुजरना होगा. जिसके बाद ये तय हो जाएगा कि एकनाथ शिंदे सीएम रहेंगे या नहीं.
फ्लोर टेस्ट एक ऐसा टेस्ट है जिसके द्वारा ये तय किया जाता है कि सदन का जो नेता है उस पर विधायकों का भरोसा है ये नहीं है. इसे राज्यपाल की उपस्थिती में किया जाता है. हर विधायक की वोटिंग होती है. अगर रिजल्ट 50 प्रतिशत से एक वोट ज्यादा आता है तो सदन का नेता वही रहता है जो पहले था.
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