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Dhanteras : धनतेरस की कहानी क्या है? क्योंं मनाई जाती है धनतेरस? यहां पढ़ें धनतेरस पौराणिक कथा

dhanteras ki kahani

दीपावली के दो दिन पहले धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है. इस दिन लोग सोने-चांदी की ख़रीदारी करते हैं, बर्तन खरीदते हैं, भगवान गणेश और लक्ष्मी जी की मूर्ति खरीदते हैं. काफी सारे लोग आज भी ये नहीं जानते हैं कि धनतेरस की पूजा क्यूँ की जाती है? (dhanteras ki katha) धनतेरस की कहानी क्या है? आखिर क्यों मनाया जाता है धनतेरस का पर्व? क्यों इस दिन धन्वंतरि की पूजा की जाती है.  

कब है धनतेरस? (Dhanteras Timing 2021) 

हर साल दीपावली से दो दिन पहले धनतेरस को मनाया जाता है. हिन्दू धर्म के पांचांग के अनुसार कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को धनतेरस कहा जाता है. इसे धन्वन्तरी जयंती भी कहा जाता है. साल 2023 में धनतेरस 10 नवंबर, शुक्रवार को है. 

धनतेरस शुभ मुहूर्त (Dhanteras Shubh Muhurat) 

धनतेरस 10 नवंबर, शुक्रवार को शाम 05 बजकर 47 मिनट से शाम 07 बजकर 47 मिनट तक रहेगी. इस शुभ मुहूर्त में आप मां  लक्ष्मी की पूजा करें.  आप यदि धनतेरस पर कुछ बड़ी वस्तु खरीदना चाहते हैं तो पंचांग के अनुसार 10 नवंबर दोपहर 12 बजकर 35 मिनट से लेकर 11 नवंबर की सुबह तक खरीदारी का शुभ मुहूर्त है.

धनतेरस क्यों मनाई जाती है? (Dhanteras ki Kahani) 

धनतेरस को हम सभी मनाते हैं. (dhanteras ki katha sunate hain) इस दिन लक्ष्मी जी और कुबेर की पूजा भी करते हैं. लेकिन काफी सारे लोग ये नहीं जानते कि धनतेरस क्यों मनाई जाती है? धनतेरस की कहानी क्या है? (dhanteras ki pauranik katha या धनतेरस की कथा क्या है?)

एक बार भगवान विष्णु मृत्युलोक में विचरण करने आ रहे थे. तभी लक्ष्मी जी ने भी उनके साथ चलने का आग्रह किया. विष्णु जी ने कहा कि यदि तुम मेरी कही बात मानोगी तो हो तुम मेरे साथ चल सकती हो.

लक्ष्मी जी ने उनकी बात मान ली और वे उनके साथ मृत्युलोक में आ गई. भगवान विष्णु ने कहा कि मैं दक्षिण दिशा में जा रहा हूँ, तुम उधर मत आना. जब तक मैं न आऊ, तुम यहीं ठहरो. उनके जाने के बाद लक्ष्मी जी के मन में जानने की इच्छा हुई कि विष्णु जी का ऐसा क्या रहस्य है जो उन्होने मुझे मना कर दिया.

लक्ष्मी जी कुछ देर ठहरी और फिर उसी दिशा में चल पड़ी. कुछ ही दूर पर उन्हें सरसों का खेत दिखाई दिया. पीले फूलों को देखकर वे मंत्रमुग्ध हो गई. और अपना श्रंगार करने लगी. इसके बाद एक गन्ने का खेत दिखा तो वहाँ बैठकर गन्ना का रस चूसने लगी.

तभी विष्णु जी आए और उन्होने लक्ष्मी जी को इस अवस्था में देखा. वे उन पर नाराज हुए. विशुन जी ने कहा कि तुम्हें मैंने मना किया था. तुम किसान की चोरी का अपराध कर बैठी. इस अपराध के जुर्म में तुम्हें किसान की 12 वर्षों तक सेवा करनी होगी.

लक्ष्मी जी गरीब किसान के घर रहने लगी. एक बार लक्ष्मी जी ने किसान की पत्नी से कहा कि तुम मेरी बनाई देवी लक्ष्मी की मूर्ति की पूजा करो और फिर रसोई बनाओ. तुम जो मांगोगी तुम्हें वो मिलेगा. किसान की पत्नी ने ऐसा ही किया. अगले दिन माँ लक्ष्मी ने उन्हें धन, अन्न, रत्न, स्वर्ण आदि से पूर्ण कर दिया.

किसान के यहां लक्ष्मी जी के 12 वर्ष आनदपूर्वक कट गए. 12वर्ष बीतने के बाद विष्णु जी उन्हें लेने आए तो किसान  ने उन्हें मना कर दिया. भगवान ने किसान से कहा कि इन्हें कौन जाने देता है, यह तो स्वयं चंचल हैं, कहीं ठहरती नहीं है, तुम्हारे यहाँ तो 12 वर्ष ठहर गई.

किसान अपनी जिद पर अड़ गया. तब लक्ष्मी जी ने कहा, यदि तुम मुझे रोकना चाहते हो तो कल तेरस (त्रयोदशी) है. तुम घर को शुद्ध करके रात्री में घी का दीपक जलाकर रखना, शाम को मेरा पूजन करना, तांबे के कलश में रुपये भरकर मेरे लिए रखना. मैं उस कलश में निवास करूंगी. लेकिन तुम्हें दिखाई नहीं दूँगी.

इस एक दिन की पूजा से मैं वर्षभर तुमहार घर से नहीं जाऊँगी. इतना कहकर माँ लक्ष्मी दीपकों के प्रकाश के साथ सभी दिशाओं में फैल गई. इसके बाद किसान ने वैसा ही किया. उसका घर धन-धान्य से हमेशा पूर्ण रहने लगा. इसी वजह से धनतेरस पर लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है.

धनतेरस पूजा विधि (Dhanteras Puja vidhi) 

धनतेरस पर विधिविधान से पूजा की जाए तो भगवान धनवंतरी और माँ लक्ष्मी दोनों प्रसन्न रहते हैं.

– धनतेरस की शाम को शुभ मुहूर्त में उत्तर की दिशा में कुबेर और धनवंतरी की स्थापना करें.

– इन्हीं के साथ गणेश जी व माँ लक्ष्मी को भी स्थापित करें.

– दीप जलाए और विधिवत पूजा करें.

– तिलक करें, पुष्प अर्पित करें.

– कुबेर देवता को सफ़ेद मिष्ठान का और धनवंतरी को पीले मिष्ठान का भोग लगाएँ.

– पूजा के दौरान ‘ॐ ह्री कुबेराय नमः’ का जाप करें.

– भगवान धन्वन्तरी को प्रसन्न करने के लिए धनवंतरी स्त्रोत का पाठ करें.

धनतेरस की पूजा आप अपने अनुसार कर सकते हैं. लेकिन इस दिन कुबेर जी, धनवंतरी जी और माँ लक्ष्मी की पूजा अवश्य करें. 

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By विजय काशिव

ज्योतिषी

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