हिन्दू धर्म में धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सालभर में कई सारे व्रत होते हैं. इन व्रतों के पीछे पौराणिक कथाएँ जुड़ी होती हैं और इनकी अपनी-अपनी मान्यताएँ होती है. ऐसा ही एक व्रत ‘प्रदोष व्रत’ (Pradosh Vrat in Hindi) है. इसका नाम आपने कैलेंडर में देखा होगा. यदि आप प्रदोष व्रत करना चाहते हैं तो आपको प्रदोष व्रत की सम्पूर्ण जानकारी (Pradosh Vrat Katha) होनी चाहिए.
प्रदोष व्रत कब होता है?
सबसे पहले तो हम ये जानते हैं कि आखिर प्रदोष व्रत क्या होता है? हिन्दू धर्म में दो पक्ष का एक माह होता है. प्रत्येक माह में कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष होते हैं जो 15-15 दिन के होते हैं. इनमें 15 तिथियाँ होती हैं. इन्हीं में से एक तिथि त्रयोदशी या तेरस भी होती है. (Pradosh Kab hai) ये एक महीने में दो बार आती है. त्रयोदशी के दिन जो उपवास रखा जाता है उसे प्रदोष व्रत कहा जाता है. ये तिथि भगवान शिव से जुड़ी होती है.
प्रदोष व्रत की विधि
प्रदोष व्रत करने के लिए आपको प्रदोष व्रत की कथा की विधि (Pradosh Vrat Vidhi) के बारे में जानकारी होना बेहद जरूरी है. इस व्रत को करने के लिए नीचे बताया गया तरीका अपना सकते हैं.
– प्रत्येक पक्ष की त्रयोदशी तिथि को इस उपवास को रखना होता है.
– व्रत वाले दिन सूर्योदय से पहले उठें और नित्य कार्यों से मुक्त हो जाएँ.
– स्नान करें और सफ़ेद रंग के स्वच्छ और धुले हुए कपड़े पहनें.
– अपने पूजा घर की सफाई करें और उसे शुद्ध करें.
– गाय के गोबर से लीपकर मंडप तैयार करें.
– 5 अलग-अलग रंगों का प्रयोग करके रंगोली बनाएँ.
– उत्तर-पूर्व की ओर मुख करके शिवजी की पूजा करें.
– प्रदोष व्रत की कथा सुनें और शिवजी की आरती करें.
– पूरे दिन किसी प्रकार का अन्न ग्रहण न करें.
प्रदोष व्रत में क्या खाएं?
प्रदोष व्रत की विधि के बारे में आप जान गए हैं. चलिये अब ये जानते हैं कि प्रदोष व्रत में क्या खाना चाहिए (Pradosh Vrat Niyam) और क्या नहीं?
– प्रदोष व्रत में आप यदि किसी चीज का सेवन करना चाहते हैं तो आपको सिर्फ हरे मूंग का सेवन करना चाहिए. हरा मूंग पृथ्वी तत्व है और मंदाग्नि को शांत रखता है.
– प्रदोष व्रत में कोई अन्न, चावल, लाल मिर्च और सादा नमक नहीं खाना चाहिए.
– प्रदोष व्रत में आप फल का सेवन कर सकते हैं.
प्रदोष व्रत कथा
प्रदोष व्रत को लेकर कई सारी पौराणिक कथाएँ (Pradosh Vrat Katha in Hindi) है. स्कन्द पुराण में वर्णित एक कथा के अनुसार प्राचीन काल में एक विधवा ब्राह्मणी अपने पुत्र को लेकर भिक्षा लेने जाती थी. एक दिन वह शाम को घर लौट रहही थी तभी नदी किनारे उसे एक सुंदर बालक दिखाई दिया.
यह बालक विदर्भ देश का राजकुमार था. उसका नाम धर्मगुप्त था. शत्रुओं ने युद्ध करके विदर्भ के राजा को मार डाला और उसकी माता भी अकाल मृत्यु को प्राप्त हुई. ब्राह्मणी उस बालक के बारे में नहीं जानती थी. वो उसे वहाँ से ले आई और अपना पुत्र बना लिया.
एक दिन ब्राह्मणी देव मंदिर गई. वहाँ संयोग से उनकी भेंट ऋषि शांडिल्य से हुई. ऋषि ने ब्राह्मणी को बताया कि तुम्हें जो बालक मिला है वह विदर्भ का राजकुमार धर्मगुप्त है. इसके माता-पिता युद्ध में मारे गए हैं. ऋषि ने कहा कि यदि आप और आपके पुत्र प्रदोष व्रत रखें तो पुत्र को उसका खोया हुआ राजपाट मिल सकता है.
ऋषि की आज्ञा पर ब्राह्मणी और उसके पुत्रों ने प्रदोष व्रत करना शुरू किए. काफी दिन बीते. एक दिन दोनों बालक वन में घूम रहे थे. उस समय वहाँ कुछ गंधर्व कन्याएँ भी आई थी. धर्मगुप्त उनसे बात करने लगे. एक गंधर्व कन्या को धर्मगुप्त पसंद आ गए. कन्या ने विवाह करने के लिए राजकुमार को अपने पिता से मिलने के लिए बुलाया.
दूसरे दिन जब धर्मगुप्त कन्या के पिता से मिलने गए तो गंधर्व राजा ने उन्हें देखते ही पहचान लिया कि यह गंधर्व राजकुमार धर्मगुप्त हैं. इसके बाद गंधर्वराज ने दोनों का विवाह करा दिया. कुछ दिन बीते तो धर्मगुप्त ने गंधर्वराज की सेना की सहायता से विदर्भ पर आक्रमण किया और अपना खोया हुआ राज्य वापस ले लिए.
राजकुमार को यह सभी फल प्रदोषव्रत करने और शिवजी की आराधना करने से मिला. प्रदोष के दिन जो भी व्यक्ति एकाग्र होकर प्रदोष व्रत कथा सुनता है उसे सौ जन्मों तक कभी भी दरिद्रता नहीं होती है.
प्रदोष व्रत आरती
प्रदोष व्रत लाभ
प्रदोष व्रत के दौरान आप भगवान शिव की आराधना करते हैं. इस व्रत को रखने से कई चमत्कारी लाभ (Pradosh Vrat labh) मिलते हैं.
1) प्रदोष व्रत नियमित करने से आपकी कुंडली में चन्द्र की दशा में सुधार आता है.
2) आपकी शारीरिक और मानसिक स्थिति अच्छी रहती है. आप पर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ता.
3) प्रदोष व्रत से शुक्र और बुध की स्थिति भी सुधरती है जिनसे स्त्री सुख मिलता है और नौकरी और व्यापार में तरक्की होती है.
4) प्रदोष व्रत करने वाला व्यक्ति जीवन में कभी संकटों से नहीं घिता.
प्रदोष व्रत करने वाले व्यक्ति पर भगवान शिव अपनी कृपा दृष्टि बनाए रखते हैं.
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