श्री कृष्ण (Shri Krishna) भारतीय संस्कृति (Indian culture) के सबसे अनूठे और विरले अवतार हैं. साहित्यिक दृष्टिकोण से उनके व्यक्तित्व का मूल्यांकन किया जाए तो यह इतना विराट, विविधता भरा और विशेषताओं से भरा है की ऐसे चरित्र की तुलना दुुनिया के किसी भी संस्कृति के व्यक्तित्व से नहीं की जा सकती. कृष्ण मनुष्य के रूप में जन्म और मृत्यु दोनों के भागी हैं. वे वैसे ही कर्म बंधन से बंधे हैं जैसे सामान्य जीव मनुष्य योनी में होता है. वे मनुष्य के रूप में मर्यादा और परंपराओं के ध्वंसी दोनों हैं.
अपने मामा (kans and krishna story) कंस द्वारा मारे जा रहे अपने हर भाइयों बहनों के बीच जन्म और जीवन पर्यन्त जीवटता व संघर्ष के बीच पुत्र, बाल-सखा, तारणहार, मित्र, सहयोगी, प्रेमी, भाई, मार्ग-दर्शक, गुरु, कलाकार, दार्शनिक, राजनीतिज्ञ, सामाजिक बुराइयों को दूर करने वाला उद्धारक, एक न्याय प्रिय धर्मवान राजा, रणनीतिज्ञ, महात्मा और आत्मज्ञानी परमात्मा के रूप एक गीताकार. (lord krishna quotes) कृष्ण विराट हैं तो बहुआयामी भी और बहुरंगी विविधताओं से भरे भी. इसलिए भारतीय संस्कृति में (Shri Krishna Ka Jeewan Parichay) श्रीकृष्ण को संपूर्ण अवतार कहा गया है.
कहा जाता है श्रीकृष्ण की लीलाओं को जानना हो तो श्रीमद् भागवत् के (Shrimad bhagwat katha) पास जाना चाहिए और यदि श्रीकृष्ण के पास जाना हो तो गीताकार श्रीकृष्ण की (geeta shri krishna) गीता के पास जाना चाहिए.
दरअसल, श्रीमद् भगवद्गीता (shri krishna geeta)एक बहुत ही महान और पवित्र ग्रन्थ है. गीता भगवान श्री कृष्ण ने (shri krishna geeta updesh) महाभारत में युद्ध के मैदान में अर्जुन को (Arjun and krishna Mahabharat) सलाह के रूप में सुनाई थी. उस समय भगवान (Bhagwan shri krishna) श्री कृष्णा ने जीवन के रहस्य अपने कथनों के माध्यम से अर्जुन को समझाए थे, वे कथन आज भी हर व्यक्ति के जीवन में उतने ही महत्वपूर्ण और सही दिशा दिखाने वाले हैंं, जितने की महाभारत के समय अर्जुन के लिए थे. गीता में जिन्दगी की परेशानियों से लड़ने के बारे में सारी बातें विस्तार से बताई गई हैं. जिसका अनुसरण करके आप भी अपनी सारी परेशानियों से आसानी से पार पा सकते हैं.
देश और दुनिया के कई महान लोगों की भगवद् गीता जीवन प्रदर्शक रही हैं. गीता के अनुसार मन को नियंत्रित रखने से ही सुख मिलता है. हर व्यक्ति चाहता है कि वह सुखी हो. सुख की तलाश में वह भटकता रहता है. लेकिन, सुख का मूल तो उसके मन में ही है. जिस मनुष्य का मन इंद्रियों, धन, वासना और आलस्य में लिप्त रहेगा तो उस व्यक्ति के मन में भावना नहीं हो सकती. इसलिए सुख प्राप्त करने के लिए अपने मन पर नियंत्रण बेहद जरूरी है.
कर्म करो फल की इच्छा मत रखो
मनुष्य को बिना फल की इच्छा से अपने कर्तव्यों का पालन पूरी निष्ठा और ईमानदारी से करना चाहिए. यदि कर्म करते वक्त फल की इच्छा मन में हो तो आप पूर्ण निष्ठा के साथ वह कर्म नहीं कर पाएंगे. निष्काम कर्म ही सर्वश्रेष्ठ रिजल्ट देता है. इसलिए बिना किसी फल की इच्छा से मन लगाकर अपना काम करते रहना चाहिए. फल देना, न देना व कितना देना ये सभी बातें परमात्मा पर छोड़ दो क्योंकि परमात्मा ही सभी का पालनकर्ता है.
अपने कर्तव्यों से न भागेंं
धर्म का अर्थ कर्तव्य से है. अक्सर हम कर्मकांड, पूजा-पाठ, तीर्थ और मंदिरों को ही धर्म समझ बैठते हैं. हमारे ग्रंथों ने कर्तव्य को ही धर्म बताया है. अपने कर्तव्यों को पूरा करने में कभी अपयश-यश और लाभ-हानि का विचार नहीं करना चाहिए. बुद्धि को सिर्फ अपने कर्तव्य पर एकाग्र करके काम करना चाहिए. इससे मन में शांति रहेगी और बेहतर परिणाम मिलेंगे.
कर्म के प्रति उदासीन न रहें
बुरे परिणामों के डर से अगर ये सोच लें कि हम कुछ नहीं करेंगे तो ये हमारी मूर्खता है. खाली बैठे रहना भी एक तरह का कर्म ही है, जिसका परिणाम हमारी आर्थिक हानि, अपयश और समय की हानि के रूप में मिलता है. इसलिए कभी भी कर्म के प्रति उदासीन नहीं होना चाहिए, अपनी क्षमता और विवेक के आधार पर हमें निरंतर कर्म करते रहना चाहिए.
इच्छाओं और अहंकार को त्यागकर कर्तव्यों का पालन करें
अगर अपने मन में कोई भी कामना या इच्छा रहती है तो आपको शांति नहीं मिल सकती हैं. हम जो कर्म करते हैं उसके साथ अपेक्षित परिणाम को साथ में देखने लगते हैं. अपनी पसंद के परिणाम की इच्छा हमें दिन पर दिन कमजोर करने लगती है. मन में ममता या अहंकार आदि भावों को मिटाकर तन्मयता से कर्तव्यों का पालन करने से ही शांति मिलती है.
अपने-अपने धर्म का करें पालन
हर मनुष्य को अपने-अपने धर्म का पालन करते हुए कर्म करना चाहिए. जैसे- विद्यार्थी का धर्म है विद्या को प्राप्त करना, सैनिक का कर्म है देश की रक्षा करना, जो लोग कर्म नहीं करते, उनसे श्रेष्ठ वे लोग होते हैं जो कर्म करते हैं. क्योंकि बिना कर्म किए तो शरीर का पालन-पोषण संभव नहीं होता है.
जैसा व्यवहार करेंगे वैसा ही हमारे साथ होगा
संसार में जो मनुष्य जैसा व्यवहार दूसरों के साथ करता है, दूसरे भी उसी प्रकार का व्यवहार उसके साथ करते हैं. उदाहरण के लिए जो लोग ईश्वर का स्मरण मोक्ष प्राप्ति के लिए करते हैं, उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है. जो किसी अन्य इच्छा से प्रभु का स्मरण करता हैं, उनकी वह इच्छाएं भी प्रभु कृपा से पूरी हो जाती है.
अपने पद और गरिमा के अनुसार व्यवहार करें
श्रेष्ठ पुरुष को सदैव अपने पद और गरिमा के अनुसार ही व्यवहार करना चाहिए, क्योंकि वे जैसा व्यवहार करेंगे, सामान्य पुरुष भी उसकी नकल करेंगे.
उदाहरण के लिए यदि किसी संस्थान में उच्च अधिकारी पूरी मेहनत और निष्ठा से काम करते हैं, तो वहां के दूसरे कर्मचारी भी वैसे ही मेहनत करते हैं, लेकिन यदि उच्च अधिकारी काम को टालते हैं तो कर्मचारी उनसे भी ज्यादा लापरवाह हो जाते हैं.
कोई भी कितना भटकाए अपने काम पर अटल रहना चाहिए
इस दौर में हर कोई आगे निकलना चाहता है. ऐसे में ज्यादातर संस्थानों में ये होता है कि कुछ चतुर छात्र अपना काम तो पूरा कर लेते हैं, लेकिन अपने साथी को उसी काम को टालने के लिए प्रोत्साहित करते हैं अथवा काम के प्रति उसके मन में लापरवाही का भाव भरने लगते हैं. श्रेष्ठ छात्र वही होता है जो अपने काम से दूसरों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन जाता है.