व्यापमं घोटाले ने एकबार फिर नया मोड़ लेता जा रहा है. मई का महीना मुख्यमंत्री शिवराज के लिए राहत भरी खबर लाया है. कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह व्यापम घोटाले में शिवराज सिंह चौहान के सीधे तौर पर शामिल होने का आरोप लगते आ रहे हैं, लेकिन इस मामले में सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दायर करके कहा है कि कि सबूत के तौर पर जिस सीडी और पेन ड्राइव को पेश किया गया था वो फर्जी है.सीबीआई का कहना है कि इसमें याचिकाकर्ताओं द्वारा छेड़छाड़ की गई है, जिसके बाद भाजपा इसे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह को क्लीन चिट दिए जाने के तौर पर पेश कर रही है.
सीबीआई के हलफनामे के बाद सूबे में सियासत गर्माई हुई है. एक तरफ भाजपा कांग्रेस महासचिव दिग्विजिय सिंह के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने की मांग कर रही है. वहीं कांग्रेस का कहना है कि क्लीन चिट देने का काम अदालत का है सीबीआई का नहीं.
जानकार बता रहे हैं व्यापमं घोटाले को लेकर सीबीआई की जांच का ट्रैक बदल सकता है, इससे याचिकाकर्ता दग्विजिय सिंह की मुश्किल में पड़ सकते हैं, क्योंकि सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है वह इस मामले में दिग्विजिय सिंह और दूसरों के खिलाफ कार्यवाही कर सकती है. व्यापमं घोटाले में भाजपा पहली बार इतनी आक्रमक नजर आ रही है. मप्र सरकार के तीन वरिष्ठ मंत्रियों द्वारा बाकायदा सीबीआई को ज्ञापन सौंपकर दिग्विजिय सिंह और दो व्हिसल ब्लोअर के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज करने की मांग की गयी है.
इधर, कांग्रेस की तरफ से इसका पलटवार भी किया गया है. नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने कहा है कि व्यापम के मामले में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह कभी क्लीन नहीं हो सकते क्योंकि इस दौरान वही मुख्यमंत्री रहे हैं, जब इस दौरान की सभी उपलब्धियां उनके खाते में है, तो व्यापमं घोटाले की कालिख से वे कैसे बच सकते हैं? मुख्यमंत्री खुद स्वयं विधानसभा में 1000 प्रकरणों में गडबडी होना स्वीकार कर चुके हैं, जिसमें 2500 से ज्यादा लोगों को आरोपी बनाया गया था. इनमें से 21 सौ से ज्यादा को गिरफ्तार किया गया. वहीं चार सौ से ज्यादा अब भी फरार हैं. इस मामले से जुड़े 50 से ज्यादा लोगों की मौत भी हो चुकी है. आज भी सैकड़ो लोग जेल में नही हैं. अजय सिंह ने मांग की है कि अगर सीबीआई वाकई में सच्चाई सामने लाना चाहती है, तो उसे मुख्यमंत्री, उनकी पत्नी और जेल से छूटे पूर्व मंत्रियों का नार्को टेस्ट कराना चाहिए. ज्योतिरादत्यि सिंधिया ने भी उनका बचाव करते हुए कहा है कि “व्यापमं एक बहुत बड़ा घोटाला है सीबीआई ने अपने हलफनामे में शिवराज सिंह को क्लीनचिट दे दी हो, लेकिन सुप्रीम कोर्ट का फैसला आना अभी बाकी है”.
इससे पूर्व इस साल मार्च के आखिरी दिनों में विधानसभा में कैग की रिपोर्ट सामने आई थी, जिसमें व्यापमं को लेकर शिवराजसिंह की सरकार पर कई गंभीर सवाल उठाए गए थे. कैग की इस रिपोर्ट में 2004 से 2014 के बीच के दस सालों की व्यापमं की कार्यप्रणाली को लेकर सरकार की कड़ी आलोचना करते हुए बताया गया था कि कैसे इसकी पूरी प्रक्रिया अपारदर्शी थी और बहुत ही सुनियोजित तरीके से नियमों को ताक पर रख दिया था.
रिपोर्ट के अनुसार व्यापमं का काम केवल प्रवेश परीक्षाएं आयोजित कराना था, लेकिन वर्ष 2004 के बाद वो भर्ती परीक्षाएं आयोजित करने लगा, इसके लिए व्यापमं के पास ना तो कोई विशेषज्ञता थी और ना ही इसके लिए म.प्र. लोकसेवा आयोग या किसी अन्य एजेंसी से परामर्श लिया गया. यहां तक कि इसकी जानकारी तकनीकी शिक्षा विभाग को भी नहीं दी गई और इस तरह से राज्य कर्मचारी चयन आयोग की अनदेखी करके राज्य सरकार ने व्यापमं को सभी सरकारी नियुक्तियों का काम दे दिया और राज्य सेवा में से इसमें शीर्ष अधिकारियों की नियुक्ति कर दी गई.
रिपोर्ट के अनुसार व्यापमं घोटाला सामने आने के बाद भी व्यावसायिक परीक्षा मंडल में परीक्षा लेने के लिए कोई नियामक ढांचा नहीं था. रिपोर्ट में जो सबसे खतरनाक बात बताई गई है वो यह है कि प्रदेश सरकार ने कैग को व्यापमं से सम्बंधित दस्तावेजों की जांच की मंजूरी देने से यह कहते हुए इनकार कर दिया था कि व्यापमं सरकारी संस्था नहीं है, जबकि व्यापमं पूरी तरह से सरकारी नियंत्रण में काम करने वाली संस्था थी.
‘कैग’ की रिपोर्ट कांग्रेस को हमलावर होने का मौका दे दिया था. विपक्ष के नेता अजय सिंह ने शिवराजसिंह का इस्तीफ़ा मांगते हुए कहा था कि “अब यह सवाल नहीं है कि मुख्यमंत्री व्यापमं घोटाले में दोषी हैं या नहीं लेकिन यह तो स्पष्ट हो चुका है कि यह घोटाला उनके 13 साल के मुख्यमंत्रित्व काल में हुआ है. उनके एक मंत्री सहित भाजपा के पदाधिकारी जेल जा चुके हैं और उनके बड़े नेताओं से लेकर संघ के वरिष्ठ पदाधिकारी सब जाँच के घेरे में हैं इसलिए अब उन्हें मुख्यमंत्री चौहान के इस्तीफे से कम कुछ भी मंजूर नहीं है.” दूसरी तरफ भाजपा ने उलटे “कैग” जैसी संवैधानिक संस्था पर निशाना साधा था और कैग’ द्वारा मीडिया को जानकारी दिए जाने को ‘सनसनी फैलाने वाला कदम बताते हुए उस पर सस्ती लोकप्रियता हासिल करने का आरोप लगाया था.
व्यापमं घोटाले ने मध्य प्रदेश को देश ही नहीं पूरी दुनिया में बदनाम किया है. यह भारत के सबसे बड़े और अमानवीय घोटालों में से एक है जिसने सूबे के लाखों युवाओं के अरमानों और कैरियर के साथ खिलवाड़ करने का काम किया है. इस घोटाले की चपेट में आए ज्यादातर युवा गरीब, किसान, मजदूर और मध्यम वर्गीय परिवारों से हैं, जो तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद अपना पेट काटकर अपने बच्चों को पढ़ाते हैं, जिससे उनके बच्चे अच्छी उच्च शिक्षा प्राप्त कर अपने जीवन में स्थायित्व ला सकें और सम्मानजनक जीवन जी सकें.
दरअसल, बहुत ही सुनियोजित तरिके से चलाए गए इस गोरखधंधे में मंत्री से लेकर आला अफसरों तक शामिल पाए गए. इसकी छीटें मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान तक भी गईं. व्यापमं घोटाले की परतें खुलने के बाद इस घोटाले से जुड़े लोगों की असामयिक मौतों का सिलसिला सा चल पड़ा. लेकिन इन सबका शिवराज सरकार पर कोई असर नहीं पड़ा. शुरुआत में तो मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान इस घोटाले की जांच एसआईटी से ही कराने पर अड़े रहे, लेकिन एक के बाद एक मौतों और राष्ट्रीय-अंतराष्ट्रीय मीडिया ने जब इस मुद्दे की परतें खोलनी शुरू की तो उन्हें सीबीआई जांच की अनुशंसा के लिए मजबूर होना पड़ा.
इधर, मामला सीबीआई के हाथों में जाने के बाद व्यापमं का मुद्दा शांत पड़ने लगा था. मीडिया द्वारा भी इसकी रिपोर्टिंग लगभग छोड़ दी गई. उधर एक के बाद एक चुनाव/ उपचुनाव जीतकर शिवराज सिंह चौहान अपनी स्थिति मजबूत करते जा रहे था. मध्य प्रदेश भाजपा द्वारा यह दावा किया जाने लगा था कि व्यापमं घोटाले का शिवराज की लोकप्रियता पर कोई असर नहीं हुआ है. कुल मिलाकर मामला लगभग ठंडा पड़ चुका था, विपक्ष थक चुका था और सरकार से लेकर संगठन तक सभी राहत मना रहे थे.
व्यापमं घोटाले को देश के सबसे बड़े भर्ती घोटालों में से एक माना जाता है. जानकार इसे केवल एक घोटाले के रूप में नहीं बल्कि राज्य समर्थित नकल उद्योग के रूप में देखते हैं, जिसने हजारों नौजवानों का कैरियर खराब कर दिया है. व्यापमं घोटाले का खुलासा 2013 में तब हुआ, जब पुलिस ने एमबीबीएस की भर्ती परीक्षा में बैठे कुछ फर्जी छात्रों को गिरफ्तार किया. ये छात्र दूसरे छात्रों के नाम पर परीक्षा दे रहे थे, बाद में पता चला कि प्रदेश में सालों से एक बड़ा रैकेट चल रहा है, जिसके अंतर्गत फर्जीवाड़ा करके सरकारी नौकरियों रेवड़ियों की तरह बांटी गईं हैं.
मामला उजागर होने के बाद व्यापमं मामले से जुड़े 50 से ज्यादा अभियुक्तों और गवाहों की रहस्यमय ढंग से मौत हो चुकी है जो इसकी भयावहता को दर्शाता है. इस मामले मैं से 21 सौ से ज्यादा को गिरफ्तारियाँ हुई हैं. लेकिन जो गिरफ्तारियां हुई हैं, उनमें ज्यादातर या तो छात्र शामिल हैं या उनके अभिभावक या बिचौलिये. बड़ी मछलियां तो बची ही रह गईं हैं. हालांकि 2014 में मध्य प्रदेश के पूर्व शिक्षा मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा जरूर गिरफ्तार हुए थे, जिन पर व्यापमं के मुखिया के तौर पर इस पूरे खेल में सीधे तौर पर शामिल होने का आरोप था, लेकिन दिसम्बर 2015 में वे रिहा भी हो गए थे. पहले पुलिस फिर विशेष जांच दल और अब सीबीआई द्वारा इस मामले की जांच की जा रही है, लेकिन अभी तक इस महाघोटाले के पीछे के असली ताकतों के बारे में कुछ भी पता नहीं चल सका है.
2017 व्यापमं के लिए बहुत नाटकीय साबित हो रहा है. पहले तो कैग रिपोर्ट में सीधे तौर शिवराज सरकार की मंशा पर सवाल उठाए गए थे, उसके बाद सुप्रीम कोर्ट में सीबीआई का हलफनामा आया है जिसमें आरोप लगाने वाले ही घेरे में नजर आ रहे हैं. ऐसा लगता है पूरा मामला गोल पहिये पर सवार हो चूका है जाहिर है इस महाघोटाले के पीड़ितों के लिए इंसाफ के दिन अभी दूर हैं.