एक शादीशुदा रिश्ते में कई बार तलाक की नौबत आ जाती है. तलाक होने के स्थिति में कोर्ट द्वारा केस चलाया जाता है जिसमें ये तय किया जाता है की आप आपसी सहमति से तलाक ले रहे हैं. इसमें कई बार ये भी होता है की महिला अपने पति से मेंटेनेंस या गुजारे की मांग करती हैं. इसे कोर्ट द्वारा भी मनयता दी जाती है लेकिन तलाक लेने से पहले पति और पत्नी दोनों को गुजारे भत्ते के बारे में पता होना चाहिए.
तलाक के बाद गुजारे भत्ते के नियम (Divorce maintenance rules in India)
तलाक होने के बाद पत्नी को कितना गुजारा भत्ता देना होता है इसके अलग-अलग धर्म के अलग-अलग नियम है.
1) हिन्दू मैरिज एक्ट 1955(2) के तहत महिलाओं को तलाक के बाद गुजारा भत्ता मांगने का हक है.
2) मुस्लिम वुमेन एक्ट 1986 के तहत बीवी को इद्दत की अवधि के दौरान गुजारा खर्च देना और मैहर की रकम वापस लेने का अधिकार है.
3) ईसाई धर्म में भारतीय तलाक अधिनियम 1869 के सेक्शन 37 के तहत तलाक़शुदा पत्नी सिविल या हाइ कोर्ट में जीवनयापन के लिए गुजारे भत्ते की मांग कर सकती है.
तलाक के बाद महिलाओं को कितना गुजारा भत्ता मिलता है?
तलाक होने के बाद महिलाएं हिन्दी मैरिज एक्ट के तहत दो तरह का भत्ता ले सकती हैं. एक तो स्थायी और दूसरा अस्थाई. अस्थाई भत्ता कोर्ट में कार्यवाही चलने के दौरान मिलता है. स्थायी भत्ता तलाक हो जाने के बाद मिलता है. इसमें जो धन स्त्री का होता है वो शामिल नहीं होता है. भत्ता इस बात पर तय होता है की पति की आय कितनी है, उसकी संपत्ति कितनी है, उसकी जिम्मेदारियाँ कितनी है? इन सभी बातों को देखते हुए कोर्ट तलाक गुजारा भत्ता तय करती है.
कामकाजी महिलाओं के लिए तलाक भत्ते के नियम
अगर कोई महिला कामकाजी है तो वो भी तलाक गुजारे भत्ते के लिए आवेदन कर सकती है लेकिन उसकी कमाई पर्याप्त नहीं होना चाहिए. यानि महिला जितना कमा रही है वो उसके खुद के लिए पर्याप्त नहीं होना चाहिए.
तलाक में धन का बंटवारा
तलाक हो जाने के बाद बंटवारे की प्रक्रिया की जाती है. इसमें पत्नी के नाम पर जितनी संपत्ति है, ज्वेलरी, गिफ्ट में मिला कैश आदि पर उसी का अधिकार होगा. इसका बंटवारा नहीं होगा.
दोनों के नाम पर कोई जाइंट एसेट है तो उसमें महिला को बराबर हिस्सेदारी मिलेगी. महिला के पास ये अधिकार रहेगा की वो अपने हिस्से को बेंचे या कुछ और करे.
पति की संपत्ति में से बंटवारे की बात करे तो कोर्ट पति की कुल संपत्ति में से पत्नी को एक तिहाई या पंचवा हिस्सा देता है. उसकी सैलरी में से भी उसे 25 फीसदी से ज्यादा रकम नहीं मिलती है.
तलाक होने के बाद बच्चा एक प्रमुख ज़िम्मेदारी होती है. तलाक होने के बाद दोनों को अपनी कमाई से बच्चे के लिए अलग से पैसे देना पड़ते हैं.
बंटवारे में सब चीजों पर पत्नी का हक नहीं होता. पत्नी के माता-पिता की तरफ से यदि पति को कोई उपहार मिलता है तो उस पर पति का हक होता है. अगर पति ने पत्नी के नाम पर कोई अचल संपत्ति ली है लेकिन उसने गिफ्ट नहीं की तो उस पर पति का हक होगा.
तलाक की नौबत कई बार रिश्तों में आ जाती है लेकिन ध्यान रखें कि इससे आप वित्तीय रूप से टूट सकते हैं. तलाक खासतौर पर मध्यांवर्गीय लोगों के लिए काफी दुखदायक हो सकता है क्योंकि उन्हें घर चलाने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ता है. ऐसे में यदि वित्तीय तौर पर बंटवारा हो जाता है और बच्चे की ज़िम्मेदारी भी दोनों को उठानी पड़ती है तो ये दोनों के लिए अच्छा नहीं होता.
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